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मोदी सरकार की फासीवादी सत्ता के खिलाफ महागठबंधन का एकजुटता अभियान

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मोदी सरकार की फासीवादी सत्ता के खिलाफ महागठबंधन का एकजुटता अभियान
मोदी सरकार की फासीवादी सत्ता के खिलाफ महागठबंधन का एकजुटता अभियान

एक पूंजीवादी लोकतंत्र को फासीवादी तानाशाही के ब्लैकहोल में समाने के पहले एक दौर आता है जब देश की तमाम राजनीतिक दल अगर एकजुटता के साथ फासीवाद के खिलाफ खड़े हो जाये तब इसे चुनाव के माध्यम से ही कुछ हद तक रोकने में कामयाबी मिल सकती है या कुछ देर के लिए टाला जा सकता है. एक ऐसा ही दौर जर्मनी में भी आया था, लेकिन राजनीतिक दलों ने अपनी एकजुटता कायम न कर जर्मनी को फासीवाद की ओर धकेल दिया, और उसके बाद हिटलर की फासीवादी सत्ता ने जिस नृशंसता को जन्म दिया, उसकी हृदयविदारक गाथाएं आज भी लोगों (खासकर यूरोप) के रोंगटे खड़े कर देती है.

भारत में भी चुनाव के जरिए सत्ता पर काबिज मोदी सरकार की फासीवादी सत्ता ने सत्ता पर मजबूत पकड़ बना लिया है. 2019 में एक ऐसा ही दौर आया था जब इस फासीवादी मोदी सरकार को चुनाव के माध्यम से ही सत्ता से हटाया जा सकता था लेकिन तमाम राजनीतिक दलों ने इस मौके का फायदा नहीं उठाया और आपस में बंटकर मोदी सरकार की फासीवादी सत्ता के जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया. अब एक बार फिर इस देश में 2024 में मोदी सरकार को चुनाव के जरिए ही सत्ता से बेदखल करने का एक स्वर्णिम अवसर मिला है.

भारत की सत्ता पर काबिज मोदी सरकार की यह फासीवादी सत्ता के खिलाफ तमाम चुनावी दलों ने 2024 के लोकसभा को ध्यान में रखते हुए तैयारी शुरू कर दिया है और एकजुटता के मुहिम में जुट गया है. यह अभी भविष्य की गोद में है कि लगातार एक दशक से सत्ता पर काबिज फासीवादी मोदी सरकार को सत्ता से हटाया जा सकता है या नहीं, लेकिन देश की जनता औऋ विभिन्न राजनीतिक दलों ने जिस तरह मुहिम चलाया है, उससे एक उम्मीद तो बंधती है कि 2024 के चुनाव में इसे चुनाव के ही जरिए उखाड़ फेंका जा सकेगा.

इसी कोशिश में बिहार में विभिन्न चुनावी राजनीतिक दलों ने मिलकर पटना में विगत 15 जून को एक धरना का आयोजन किया था और इसके माध्यम से बिहार के साथ साथ देश की जनता को एक संदेश देने का प्रयास किया है. इस धरने हेतू जारी पर्चा जनसमस्याओं का उल्लेख करते हुए लिखता है –

मोदी शासन के 9 साल जनता की चरम तबाही, बर्बादी, लूट-दमन और नफरत का भयावह दौर साबित हुआ है. महंगाई की मार से जनता त्रस्त है. यह पहली ऐसी सरकार है जो खाद्य पदार्थों से लेकर पाठ्य पुस्तकों व सामग्रियां पर भी टैक्स (जीएसटी) लगा रही है. रसोई गैस की कीमत 1300 रु. प्रति सिलेंडर पार कर गई है और लोग एक बार फिर से गोइठा व लकड़ी के युग में लौटने को विवश हैं. उज्जवला यौजना के नाम पर गरीबों को केवल मूर्ख बनाया गया.

प्रत्येक साल दो करोड़ रोजगार का वादा भी पूरी तरह झूठ साबित हुआ. केंद्र सरकार के कार्यालयों में लाखों पद खाली पड़े हैं, लेकिन सरकार उनपर कोई बहाली नहीं कर रही है. विगत 75 वर्षों में बेरोजगारी की ऐसी भयावह स्थिति कभी सामने नहीं आई थी. लुढ़कते रुपए के बीच विदेशी कर्ज साल-दर-साल बढ़कर 620.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया है.

2014 के पहले देश की तमाम सरकारों ने कुल मिलाकर 55 लाख करोड़ का कर्ज लिया था. मोदी सरकार ने अपने 9 साल के शासन में ही अकेले 85 लाख करोड़ का कर्ज लिया है. देनदारियों को निपटाने में इस कर्ज का इस्तेमाल हो रहा है. इसका कोई फायदा आम लोगों को नहीं पहुंच रहा है. उलटे, 2027 में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अनुसार देश के हर व्यक्ति के माथे पर करीब 32 हजार रुपये का कर्ज हो चला है.

केंद्र सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, मनरेगा स॒हित अन्य ग्रामीण विकास और कल्याणकारी योजनाओं के मद में लगातार कटौती कर रही है. उसने मनरेगा में 429 रु. मजदूरी देने से साफ इंकार कर दिया. देश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और प्रवासी मजदूरों के प्रति केंद्रीय सरकार की चर॒म उपेक्षा को कोविंड और लॉकडाउन ने बेनकाब किया था, फिर भी आज तक प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया.

मोदी सरकार ने 2022 तक सभी गरीबों के लिए आवास उपलब्ध कराने का भी वादा किया था, लेकिन उसने वादा तो पूरा नहीं ही किया उलटे उसके पूरा हो जाने का झूठा दावा कर रही है. जनवितरण प्रणाली और खाद्यान्न योजना को भी खत्म करने की साजिशें कर रही है. वैश्विक भूख सूचकांक की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 27 देशों की सूची में भारत 107 वें स्थान पर पहुंच गया है. देश में चौतरफा भूखमरी का विस्तार हो रहा है.

नोटबंदी और जीएसटी की मार से छोटे-मंझोले व्यवसायी अभी तक उबर भी नहीं पाए थे कि इधर 2000 रुपया का नोट बंद कर कालाधन पर हमले का एक बार फिर भ्रम पैदा किया जा रहा है. भाजपा शासन में कॉरपोरेट लूट व उनको हासिल सरकारी संरक्षण अपने चरम पर है. कॉरपोरेटॉं कर ने देश की 60 प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा जमा रखा है लेकिन जीएसटी में उनका योगदान महज 3 प्रतिशत है. वहीं, दूसरी ओर देश की 50 प्रतिशत जनता जिनके पास महज 3 फीसदी संपत्ति है, जीएसटी में 60 प्रतिशत से अधिक का योगदान करती है.

असामनता की यह खाई लगातार बढ़ती ही जा रही है. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने अडानी की धोखाधड़ी की पोल खोल दी लेकिन मोदी सरकार बेशर्मी के साथ अडानी के पक्ष में लगातार खड़ी है और विपक्ष द्वारा जेपीसी जांच की मांग कर रही है लेकिन वह इस मसले पर बहस तक नहीं चाहती है.

भाजपा द्वारा दलितों-पिछड़ों के आरक्षण में समुदाय के लिए न्यायसंगत व समावेशी विकास की थी, जिसे उसने नकार दिया. केन्द्र सरकार के इंकार के बाद भी बिहार सरकार ने अपने पहलकदमी पर जाति सर्वे का काम शुरू किया था लेकिन भाजपा को यह भी नागवार गुजरा और वह इसके खिलाफ हाथ धोकर पीछे पड़ गई. आखिर भाजपा जाति सर्वे से क्यों भाग रही है ?

किसानों की आय दुगुनी करने का वादा था, लेकिन मोदी सरकार किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर कॉरपोरेटों के हाथों में जमीन सौंप देने का कानून लेकर आईं. उन कानूनों को वापस कराने के लिए किसानों को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और उसे एमएसपी पर कानून बनाने का वादा करना पड़ा लेकिन अपने चरित्र के मुताबिक वह एक बार फिर अपने वादे से मुकर गई.

संघ-भाजपा के फासीवादी उन्माद भी आज अपने चरम पर है. 28 मई को वैदिक मंत्रोच्चार के बीच जिस प्रकार से एक राजा के राज्याभिषेक की तरह नरेन्द्र मोदी ने संसद के नए भवन का उद्घाटन किया, वह पिछले 9 सालों में मोदी शासन के वास्तविक चरित्र और उसके भविष्य को सबसे ज्यादा स्पष्टता के साथ प्रकट करता है. संसद के नए भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति श्रीमति द्रौपदी मुर्मू को बुलाया तक नहीं गया. यह न केवल संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं का घोर अपमान है बल्कि आदिवासी समुदाय और महिलाओं का भी अपमान है.

विदित हो कि संसद भवन के शिलान्यास कार्यक्रम में भी तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीरामनाथ कोबिन्द को नहीं बुलाया गया था. दलितों के प्रति घड़ियाली आंसू बहाने वाली भाजपा का दलित विरोधी चेहरा उस समय भी खुलकर सामने आया था. उसी प्रकार, जगजीवन राम छात्रावास अनुदान योजना को बदलकर प्रधानमंत्री योजना कर देना दलित समुदाय के एक बड़े नेता के प्रति उसकी घृणा को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है.

ज़िस समय नरेन्द्र मोदी संसद के नए भवन का उद्घाटन कर रहे थे, ठीक उसी समय, उसी दिल्ली में, यौन उत्पीड़क बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग कर रहीं महिला पहलवानों को सड़कों पर घसीटा गया, उनके आंदोलन स्थल को तोड़ दिया गया और महिला पहलवानों व उनके साथ प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे नागरिक समुदाय के लोगों की अपमानजक तरीके से गिरफ्तारी की गई. मोदी सरकार, संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य के मौलिक सिंद्धांतों के खिलाफ अब खुलकर सामने आ गई है. विपक्ष के नेताओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है. उनके पीछे ईडी और सीबीआई लगा दिया जा रहा है. देश के संघीय ढांचे और लोकतंत्र को केंद्रीय एजेंसियों के जरिए नेस्तनाबूद करने के हर प्रयास हो रहे हैं.

संघ-भाजपा के मुख्य निशाने पर मुस्लिम, दलित-गरीब और महिलाएं हैं. बिहार में सांप्रदायिक उन्माद और डॉ. अंबेडकर की मूर्तियों व दलितों पर हमले साथ-साथ चल रहे हैं. डॉ. अंबेडकर ने हिंदू राष्ट्र के प्रति दलित समुदाय को आगाह करते हुए इसे बड़ी विपत्ति के रूप में चिन्हित किया धा. लेकिन भाजपा दलित-गरीबों की धार्मिक भावना का इस्तेमाल उन्हें सांप्रदायिक उन्माद – उत्पात की राजनीति और ध्रुवीकरण में खींच लाने की लगातार साजिश रच रही है. दूसरी ओर, मुस्लिम समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित कर उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना कर दलितों की एक नई श्रेणी बनाने की भी कोशिश कर रही है.

बिहार में सत्ता से बाहर होने के बाद बौखलाई भाजपा बिहार की न्यायसंगत हिस्सेदारी में कटौती करके बिहार के विकास में अवरोध पैदा कर रही है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से भागने वाली भाजपा को सबक सिंखाने की जरूरत है. 2024 में भाजपा के वापस लौटने का मतलब होगा संविधान और लोकतंत्र का खात्मा,  आरक्षण व्यवस्था की समाप्ति. ऐसी सरकार को आने वाले चुनावों में सत्ता से बाहर क्वुर देना ही देश की जनता और सभी लोकतंत्र व अमन पसंद नागरिकों का पहला कार्यभार होना चाहिए.

महागठबंधन की ओर से जारी यह पर्चा फासीवादी मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के आह्वान के साथ पूरा होता है. महागठबंधन की ओर से 15 जून को आयोजित धरना की सफलता इस दिशा की ओर आगे बढ़ने की दिशा में एक कदम है. यह उम्मीद की जानी चाहिए तमाम चुनावी दल एकजुट होकर भाजपा-आरएसएस की इस फासीवादी सत्ता को आम जनसमुदाय के सहयोग से आगामी लोकसभा चुनाव में सत्ता से बेदखल करने में कामयाब होगी. अन्यथा, देश फासीवादी ब्लैकहोल में समाकर समूची मानव सभ्यता को विनाश के उसी रास्ते पर ले जायेगा, जहां उसका आका हिटलर-मुसोलिनी ले जाना चाहता था.

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