मुनेश त्यागी
आज यानि 14 जून, 1928 दुनिया के सबसे बड़े सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावादी क्रांतिकारी कॉमरेड चे ग्वेरा का जन्म दिवस है. वे अर्जेन्टाइना के मूल निवासी थे. चे ग्वैरा बोलीविया में क्रांतिकारी संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे. इसी संघर्ष में बोलीविया के जंगलों में सीआईए और बोलीविया की सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. उनका पूरा नाम अर्नेस्टो चे ग्वेरा था. वे बहुत पढ़ाकू थे. उनके पास तीन हजार से ज्यादा पुस्तकें थी. वे दुनिया के महान पुरुषों की किताबें और जीवनियां पढ़ते थे और लेनिन, रूसो, बुध उनके प्रिय लेखक थे. उन्होंने यूरोप और दक्षिणी अमेरिका के कई महान लेखकों का अध्ययन किया था.
चे ग्वेरा एक अर्जेंटाइनी क्रांतिकारी डॉक्टर थे जिन्होंने पूरी दक्षिणी अमरीका का मोटरसाइकिल से दौरा किया था और विभिन्न देशों में अमेरिका के पूंजीवादी साम्राज्यवाद का खूंखार चेहरा देखा था. अपनी मोटरसाइकिल यात्रा के दौरान चे ग्वेरा ने दक्षिणी अमेरिका में भुखमरी, गरीबी, शोषण, अन्याय, असमानता और पिछड़ेपन के दर्शन किए थे और उन्होंने अपनी आंखों से देखा था कि किस तरह साम्राज्यवादी लुटेरा अमेरिका, दक्षिण अमेरिकी देशों में हस्तक्षेप करता है, वहां अपनी पिट्ठू सरकार कायम करता है और वहां की जनता का, प्राकृतिक संसाधनों का और किसानों मजदूरों का निर्मम शोषण करता है. उनके साथ घनघोर अन्याय और जुल्म ज्यादतियां करता है.
तो इन्हीं हालातों को देखकर चे ग्वेरा के मन में बैठ गया था और पक्का विश्वास हो गया था कि साम्राज्यवादी लुटेरा अमेरिका ही दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन है. साम्राज्यवादी लूट और शोषण के रहते, दुनिया से भुखमरी, शोषण, अन्याय, जुल्म ओ सितम खत्म नहीं हो सकता. अतः इसे खत्म करने के लिए, इसका विनाश करने के लिए, समाजवादी क्रांति जरूरी है और समाजवादी व्यवस्था कायम करने के बाद ही साम्राज्यवाद का विनाश किया जा सकता है.
और इसके बाद, इसी के विनाश के लिए क्रांतिकारी अभियान में जुट गए.
बाद में क्रांति की तलाश में लड़ते-लड़ते मेक्सिको पहुंच गए थे और वहां पर गरीब तबके के लोगों और कोढियों की सेवा और इलाज करने लगे थे. यहीं पर उनकी मुलाकात क्युबा के क्रांतिकारी फिदेल कास्त्रो और राउल कास्त्रो से हुई और यहीं से चे ग्वेरा, कास्त्रो के सशस्त्र दल के साथ क्युबा में क्रांति करने के लिए उनके साथ आ गए. सशस्त्र दस्ते में चे ग्वैरा को एक डॉक्टर के रूप में लडाई में घायलों का इलाज करने के लिए शामिल किया गया था मगर बाद में जब सशस्त्र क्रांतिकारियों की संख्या में कमी हुई तो उनको अपना ‘दवाई का झोला’ छोड़कर ‘बंदूक और राइफल’ थामनी पड़ी और वे सर्वोत्कृष्ट कोटि के सशस्त्र गोरिल्ला लडाई के चैंपियन बन गए.
क्यूबा में चे ग्वेरा ने क्यूबन क्रांतिकारियों के साथ मिलकर सफल क्रांति की, किसान मजदूरों का राज कायम किया, किसान मजदूरों की सत्ता कायम की और वहां की जनता को सबको मुफ्त शिक्षा, सबको काम, सबको मुफ्त इलाज, सबको मकान, सबको रोजगार, सबको सुरक्षा, जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैय्या करायी और तमाम तरह के शोषण, अन्याय, गैरबराबरी और भेदभाव का खात्मा किया और एक समाजवादी समाज की स्थापना की.
उनका मानना था कि जिस आदमी के दिलो-दिमाग में, समाज में फैले अन्याय के प्रति घृणा और नफरत नहीं हो सकती, तो वह एक अच्छा क्रांतिकारी नहीं हो सकता. उन्होंने यह भी कहा था कि जिस व्यक्ति के दिमाग में अन्याय के प्रति नफरत है और वह इस अन्याय को खत्म करना चाहता है, तो वह मेरा असली कॉमरेड है. वे मानव द्वारा मानव के और एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के हर प्रकार के शोषण को खत्म कर देना चाहते थे, इसी को वे सच्चा समाजवाद कहते थे.
चे ग्वेरा, क्यूबा में वे कई पदों पर मंत्री रहे जैसे उद्योग मंत्री और शिक्षा मंत्री. इसके बाद उन्होंने सारी दुनिया का दौरा किया. 1959 में हिंदुस्तान का भी दौरा किया. मेरठ के गांव पिलाना में आकर वहां के किसानों से मिले और अपनी क्रांति भूमि क्यूबा लौट गए और वहां क्रांति को मजबूत और सशक्त करने में जुट गए. उसके बाद कांगो में चले गए जहां उन्होंने क्रांतिकारी लड़ाई में भाग लिया और वहां के लड़ाकूओं को गोरिल्ला वारफेयर की जानकारी दी.
इसके बाद फिदेल कास्त्रो के साथ एक सोची-समझी रणनीति के तहत, चे ग्वैरा बोलिविया में क्रांति करने चले गए, जहां उन्होंने एक गोरिल्ला सेना का निर्माण किया और इतिहासकार कहते हैं और यह कडवी हकीकत भी है कि अगर कुछ किसान गद्दारी ना करते और उनके कुछ साथी, उनका विरोध ना करते तो उन्होंने वहां पर भी क्रांति सफल कर दी थी.
मगर अफसोस! चे ग्वेरा बोलीविया में क्रांति के लिए लड़ते लड़ते 9, अक्टुबर 1967 को शहीद हो गए. इसी दिन अमर शहीद महान क्रांतिकारी कामरेड चे ग्वेरा के सम्मान में बलिदान दिवस मनाया जाता है. मरने से पहले बोलीविया का एक सैनिक, चे ग्वेरा से पूछ रहा था कि ‘तुम क्या सोच रहे हो ?’, तो इस पर चे ग्वेरा ने जवाब दिया था कि ‘मैं क्रांति की अमरता के बारे में सोच रहा हूं, क्रांतिकारी विचार हमेशा अमर रहेंगे.’ ये अंतर्राष्ट्रीयतावादी क्रांतिकारी कॉमरेड चे ग्वेरा के अंतिम शब्द थे. वे कितने महान थे कि अपने जीवन के आखिरी क्षणों में भी वे क्रांति की अमरता के बारे में सोच रहे थे और यह बात आज भी कितनी सच है कि क्रांति के विचार दुनिया में आज भी अमर और सर्वोपरी बने हुए हैं.
दोस्तों, आइए हम उनकी याद में क्रांति के कारवां को, समाजवादी समाज की व्यवस्था को, समाजवादी विचारों को, आगे बढ़ाएं और उनके चाहे समाज की स्थापना करें और भारत समेत दुनिया में एक ऐसा समाज काम करें, जिसमें सबको आधुनिक और अनिवार्य शिक्षा मिले, सबको आधुनिक और आवश्यक इलाज मिले, सबको काम मिले, सबको घर मिले, सबको रोटी, वस्त्र और सुरक्षा मिले. किसी का शोषण ना हो, किसी पर अन्याय ना हो, किसी के साथ जुल्म ना हो, किसी के साथ भी ज्यादती ना हो और पूरे समाज में समता और समानता का साम्राज्य कायम हो.
वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे कि जहां धर्म, जाति, नस्ल, वर्ग, वर्ण, क्षेत्र और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव ना हो. आदमी और औरत के साथ बराबरी का बर्ताव किया जाए, जहां औरतों को भोग्या न समझा जाए, सेक्स की वस्तु ना समझी जाए और उसके साथ बराबरी का व्यवहार किया जाए और देश और दुनिया से हर एक मानव का, हर एक देश का, तमाम तरह का शोषण खत्म कर दिया जाए.
महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम उनके बताए रास्ते पर चलें. चे ग्वेरा आज भी दुनिया के हीरो बने हुए हैं, सबसे ज्यादा नौजवान उन्हीं की छपी हुई टी शर्ट पहनते हैं. वे समाजवाद के अमर सेनानी है, क्रांति के अमिट सेनानी हैं. आदमी को शोषण, जुल्म, अन्याय, अत्याचार, गरीबी से मुक्त करने के लिए चे ग्वेरा ने अपना देश, अपना पेशा, अपने पद, अपने बच्चे और परिवार सब कुछ छोड़ दिया था.
ऐसे महान पुरुष दुनिया में विरले ही मिलते हैं और यह क्यूबा का समाज, वहां की कम्युनिस्ट पार्टी और चे ग्वेरा के साथियों का कमाल देखिए कि चे ग्वेरा के, बोलिविया में अपने क्रांतिकारी मिशन पर जाने के बाद, उनकी बीवी और बच्चों का पूरा खर्च, शिक्षा और रोजगार की जिम्मेदारी क्यूबा का समाज और सरकार ने उठाया और चे ग्वेरा के बच्चों और उनके परिवार को किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. आज चे ग्वेरा के बच्चे क्यूबा के क्रांतिकारी मिशन को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं, पूर्ण रूप से, शिक्षित व स्वस्थ हैं और बारोजगार हैं.
जब तक यह दुनिया रहेगी, जब तक यह प्रकृति रहेगी, जब तक दुनिया में गरीबी, भुखमरी, शोषण, अन्याय, जुल्म ओ सितम और गैरबराबरी की मौजूदगी रहेगी, जब तक इन मानव विरोधी व्यवस्था और प्रवृत्तियों के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा, तब तक डाक्टर मेजर चे ग्वैरा का नाम अमर रहेगा. आइए महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा के अनुभवों से शिक्षा लें और भारत में एक ऐसे समाज की स्थापना करें जिसमें शोषण जुल्म अन्याय और भेदभाव ना हों. इंकलाब जिंदाबाद, समाजवाद जिंदाबाद, चे ग्वेरा जिंदाबाद, सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद जिंदाबाद !
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