ऐनी फ़्रैंक !
एक तेरह वर्ष की लड़की !
यहूदी !
हिटलर के काल में यहूदी होना सबसे बड़ा अपराध !
जून 1929 में जन्म और 1945 में दर्दनाक मौत !
दो साल गुप्त रूप से बंद घर में रहते हुए उसने लिखा
फासीवाद की बर्बरता का जीवंत दस्तावेज !
न्यूरेमबर्ग की अदालत में पेश सभी सबूतों से भारी दस्तावेज !
एक छोटी सी बच्ची का सच दुनिया भर में फैल गया
यातना शिविरों में मार दिये गये सारे मासूम लोग
फिर से ज़िंदा हो गये !
सुनाने लगे मानव इतिहास की सबसे क्रूर कहानी !
12 जून 1929 !
ऐनी फ़्रैंक का जन्मदिन !
इसी दिन उपहार के रूप में मिली थी उसे वो डायरी
जग-प्रसिद्ध एक युवा लड़की की डायरी !
ये डायरी ही अंधेरे, अकेले, दमघोंटू समय की
उसकी सबसे बड़ी दोस्त बन गयी ।
एक तेरह वर्ष की लड़की ने सुन रखा था कि
‘काग़ज़ में लोगों की तुलना में अधिक धैर्य होता है.’
उसने अपनी इस डायरी !
नहीं अपने प्यारे दोस्त को
दिया प्यारा सा नाम- किट्टी !
ये किट्टी आपके सामने ऐनी की पूरी दुनिया खोल देती है !
बंद घर की बंद !
अदृश्य खुली खिड़की !
जैसे एक क़ैदी की खुली दुनिया !
उसका गणित का मास्टर उससे नाराज़ रहता है कि
वो बहुत बोलती है,
गप्पी है !
बतौर सजा उसे अतिरिक्त काम के तौर पर
गप्पी विषय पर निबंध लिखने को देता है !
ऐनी लिखती है-ये गप्पीपन उसे विरासत में मिला है और
इसपर आपका कोई ज़ोर नहीं चल सकता !
गणित का खूसट मास्टर भी हंसे बिना नहीं रह सका !
वो लड़की जिसे चहकते हुए पक्षी, चांदनी
दौड़ते हुए बादल और फूलों से प्यार है
उसके पास अब देखने को सिर्फ़ खिड़कियों पर टंगे धूल भरे पर्दे
घर में भागते काले चूहे थे !
डेढ़ साल में पहली बार उसे खुली हुई खिड़की से
रात को देखने का मौक़ा मिला था
वो तबतक चांद-तारों से बातें करती रही
जबतक खिड़की फिर से बंद नहीं हो गयी ।
वो लड़की अब पुस्तकों से बातें करती है
‘मौत के ख़िलाफ़ पुरुष‘
पुस्तक पढ़ते हुए उसे पता चलता है कि
एक औरत बच्चे को जन्म देते हुए
किसी भी युद्ध के नायक की तुलना में
ज़्यादा पीड़ा सहती है ।
वो सोचकर परेशान होती है कि
इसके बदले में उसे क्या मिलता है ?
ये हमारा समाज !
ये पुरुष क्यों नहीं स्वीकारते कि
ये दुनिया इतनी सुंदर महिलाओं की महान हिस्सेदारी से है !
असहनीय गर्मी से तपता घर
बंद खिड़कियां, कपड़े भी नहीं धोये जा सकते !
गोलियों की गड़गड़ाहट !
वो सीढ़ियों की ओर दौड़ती है,
ठोकर खाकर गिरती है
चोटों को सहलाती है,
और गोलियों के डर को
इस् तरह भूल जाती है !
उसने अनुभव से सीख लिया है कि
डर को भगाने का यह अच्छा तरीक़ा है
वो खबरों से ये जानती है कि
इस भयावह समय से बचाने दोस्त आने वाले हैं !
जल्दी ही वो वापस अपने स्कूल जा सकेगी
इसी बीच एक और जन्मदिन आकर चला जाता है !
पंद्रह साल की लड़की !
खुद से सवाल करती है कि क्या मैं सच में ऐसी हूं जैसा
और लोग समझते हैं…
काश कोई एक तो होता जो मुझे समझ पाता !
एम्स्टर्डम में दूर से उसके उस घर को देखा था !
लिबरेशन म्यूज़ियम में उसकी कहानी सुनते हुए कांपने लगी थी
पोलैंड में यातना शिविर को देखकर तो
ज़िंदा आदमी ही खुद को मुर्दा समझने लगता है
जैसे गैस चैम्बर की लाईन में खड़ा है !
ऐनी भी यहां पहुंच गयी !
दोस्त से पहले दुश्मन उसके गुप्त ठिकाने पर पहुंच गया !
काश तुम्हारे पंद्रह सालों को पंद्रह दिन और मिल गये होते ऐनी !
तुम चांद, तारों को निहार रही होती !
ऐनी !
अब तुम ख़ुद एक चांद हो !
हम तुम्हें निहार रहें हैं !
- सरला माहेश्वरी
ऐनी फ़्रैंक ! एक मासूम यहूदी बच्ची ! उसकी डायरी पढ़ते हुए रूह कांप जाती है. हिटलर के वे यातना शिविर जिनमें कदम रखने से पहले खुद को तैयार करना पड़ता है, जहां खुद के मनुष्य होने पर शर्म आती है. निर्दयता, निर्ममता, क्रूरता, बर्बरता कोई शब्द, कोई भाषा जिसका बयान नहीं कर सकती. मौन और सिर्फ मौन ! शायद उन सिसकियों को सुन सके.
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