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अशरफ अलीः एक शानदार व्यक्तित्व का अनायास चला जाना

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अशरफ अलीः प्रोफाइल फोटो

एक धूर्त ब्राह्मण (हिन्दू) के गहरे विश्वासघात के कारण अपने व्यवसाय में लाखों का नुकसान उठाने के वाबजूद हिन्दू-मुस्लिम मैत्री के जबरदस्त समर्थक अशरफ अली, जिन्हें हम अशरफ भाई कहकर पुकारते थे, एक सनकी बाईक राईडर के चपेट में आने के कारण 2 अप्रैल के प्रातः 10 बजे दुर्घटना के शिकार हो गये और चंद घंटों के अंदर इस दुनिया को अलविदा कह गये.

अपने जीवन के 42वें बसंत को भी न देख पाने वाले अशरफ अली जीवन के अंतिम पलों में भी हिन्दू-मुस्लिम मैत्री की अपनी शानदार सोच पर मजबूती से डटे रहे और पूरी दृढता से सही-गलत का विभेद कर सच्चाई का पक्ष लेते रहे.

वे देश में बढ़ रहे साम्प्रदायिक तनाव से बेहद दुखी रहते थे. वे अपनी बातचीत के क्रम में अक्सर अपने इस दुख को व्यक्त करते थे. वे  बेहद मृदुभाषी अशरफ अली एक शानदार दोस्त थे जो अपने दोस्तों के मुश्किल वक्तों में साथ खड़े होते थे और उसके दुःखों को दूर करने का हर संभव प्रयास करते थे.

अशरफ अली के वाल से

अंग्रेजी माध्यम से पढ़े अशरफ अली की कई भाषाओं पर मजबूत पकड़ थी. संचार माध्यमों के जरिये देश और दुनिया की राजनैतिक गतिविधियों पर भी बारीक नजर रखते थे और घटनाओं की सटीक व्याख्या करते थे पर अमूमन किसी भी राजनैतिक गतिविधियों से दूर रहते थे.

2014 ई. में उनसे मेरी पहली मुलाकात हुई थी, तब से ही वे मेरे दोस्त बन गये जिसे उन्होंने अंंतिम वक्त तक निभाया. मेरे लिए अशरफ अली महज एक व्यक्ति भर नहीं थे वरन् वे अपनी विशाल हृदयता का परिचय देने वाले हिन्दू-मुस्लिम एकता का विराट व्यक्तित्व थे, जिसका समापन उनकी अनुपस्थिति कतई नहीं कर सकती.

अशरफ अली के वाल से

आज देश भर में मोदी और भाजपा के कुख्यात षडयंत्रों के कारण साम्प्रदायिक भाईचारे को खत्म किया जा रहा है, दलितों-पिछड़ों और आदिवासियों पर हमले किये जा रहे हैं, अशरफ अली एकता और सद्भाव का एक मिसाल पेश कर गए हैं, जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता.

प्रतिभा एक डायरी, परिवार अशरफ अली को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती है तथा दुख के इस बेला मेें उनके शोक-संंतप्त परिवार के साथ है.

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One Comment

  1. Md. Kalim

    April 6, 2018 at 7:48 am

    हिन्दू धर्म से नफ़रत,
    ये कुरान नहीं कहता।
    भारत की मस्जिदें तोड़ो,
    ये श्रीराम नहीं कहते।
    रोटी का कोई ​”धर्म”​नहीं होता
    पानी की कोई ​”जात”​नहीं होती।
    जहाँ ​”इंसानियत”​ जिन्दा है वहाँ
    “मजहब” की बात नहीं होती।
    किसी को लगता हिन्दू खतरे में है,
    किसी को लगता मुसलमान खतरे में है,
    धर्म का चश्मा उतार कर देखो यारो…
    पता चलेगा की नेताओं के कारण हमारा हिन्दुस्तान खतरे में है !!

    Reply

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