Home कविताएं अमावस की रात

अमावस की रात

0 second read
0
0
465
अमावस की रात
अमावस की रात

अमावस की रात
जली हुई काली रोटी है

जब मुझे भटकना अच्छा लगता है
तो मैं तुम्हारे पास आ कर
अपनी भूख मिटाने के लिए
किसी गंदी नाली के
किनारे बैठ जाता हूं
उच्छिष्ट को अपना
भोजन बनाने के लिए

मनुष्यता की परिभाषा से परे
धुत नशे में
अपने वस्त्रों पर पेशाब करते हुए
लोगों को देखा है मैंने

तिनका तिनका सांसों को बटोर कर
आशियाना बनाने की जुगत में
जो परे चले गए
आदमीयत की हदों से बाहर
उनसे पूछा है कई बार
समूह गान का रहस्य

वे लोग
जो मारे गए
गीत गाते हुए

वे लोग
जो मारे गए
तुम्हें ज़िंदा रखने के लिए

उन लोगों की याद में उगेगा
कल का सूरज
ऐसा विश्वास था मुझे

उस अमावस की रात की
काली रोटी पर
लिखी थीं
बीती रात की कहानियां

और
आने वाले दिनों की दास्तान
मेरे दोस्त !

  • सुब्रतो चटर्जी

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

भारत सरकार बस्तर के बच्चों की हत्या और बलात्कार कर रहा है

आज़ादी के अमृतकाल का जश्न मना रही भारत की मोदी सरकार छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी युवाओं…