क्लाईव डिप्रेशन का मरीज था. एक पल में उत्साही, ऊर्जावान और दूसरे पल उदास, निराश उबा हुआ. अजब सी मृत्युइच्छा थी उसमें…!और यही ताकत भी थी. बड़े से बड़ा खतरा लेने से न चूकता. युद्ध में यह उसकी ताकत थी, तो शांति उसे स्याह अंधेरे में डुबा देती.
सेंट डेविड के किले में ऐसे ही एक पल उसने कनपटी से पिस्तौल लगाई, ट्रिगर दबाया. गोली न चली. दूसरी बार दबाया, गोली न चली. उसके साथी ने पिस्टल छीनकर खिड़की के बाहर फायर किया. धांय ss
पर ये चन्द्रनगर का फोर्ट था, जिसे फ्रेंच से अभी ही जीता गया. क्लाईव ने अपने 9 अफसरों की बैठक बुलाई. पूछा- क्या हमें तुरन्त सिराजुद्दौला पर हमला करना चाहिए ?
अफसर क्या कहते ? वे तीन महीने पहले मद्रास से चले थे. मुर्शिदाबाद का नवाब, सिराजुद्दौला कलकत्ते पर धावा बोल, फोर्ट विलियम तबाह कर गया था. ब्रिटिश वहां से भगा दिए गए थे.
तब ये लोग मदद के लिए मद्रास से पांच जहाजो में कूच किये. जहाज तूफान में फंस गए. आधी फ़ौज मारी गयी. जो बचे, वो कलकत्ते पर चढ़ आये, किला वापस कब्जा किया लेकिन क्लाईव की भूख मिटी नही. पास में चन्द्रनगर था- फ्रेंच फोर्ट…क्लाईव यहां भी चढ़ बैठा.
भीषण लड़ाई हुई. ब्रिटिश जीत गए. फ्रेंच कोठी पर कब्जा हो गया. अफसर अभी सुस्ता ही रहे थे कि मीटिंग बुला ली गयी. नवाब पर हमला करना है.
अरे, उसकी फ़ौज और हमारी फ़ौज में 1:10 का अनुपात है. पगला गया है कमांडर .. मरेगा ये, हमको भी मरवाएगा. 9 में से 7 ने कहा, अभी हमला करना ठीक नहीं. 2 ने कहा- हमला किया जाये.
क्लाईव भी डेमोक्रेटिक आदमी था. उसने फैसला ले लिया- हमला करेंगे.
मेरा जन्म होने में अभी कुछ 400 साल बचे थे, मगर मेरे भावी बर्थडे की खुशी में 23 जून 1757 को नवाब की सेना प्लासी के मैदान में आई.
आतिशबाजी के लिए फ्रेंच भी उसके साथ तोपें लेकर आये. सामने से क्लाईव भी सदल बल जश्न में शामिल हुआ. तोपें चली, क्लाईव को भागना पड़ा.
मेरा एक अंधविश्वास है. 23 जून को बारिश हो, तो मेरा अगला वर्ष शुभ होता है. क्लाईव का भी शुभ होना था, बारिश हुई. फ्रेंच का गोला बारूद भीग गया.
मगर अंग्रेज सावरकर की तरह हमेशा अपने साथ छतरी रखते थे. उनका बारूद ड्राई रहा. फ्रेंच की लोकेशन पर कीचड़ हो गया था. वे हिल न सके, और ब्रिटिश ने धूमधाम से आतिशबाजी की.
इस जश्न में मीरजाफर वैसे ही शामिल नहीं हुआ, जैसे संघी आजादी के जश्न में शामिल नहीं थे. असल में क्लाईव से पहले ही सेटलमेंट हो चुका था. उसे लास्ट मोमेंट पर पाला बदल, ब्रिटिश की ओर से लड़ना था.
वह अच्छे भारतीय की तरह निष्पक्ष रहा, तटस्थ रहा. मगर यह तटस्थता भी पूरी गद्दारी थी. इनाम मिला- बंगाल की निजामत.
सिराज भागा. मुर्शिदाबाद लौट गया. मीरजाफर के लोगों ने पकड़ लिया. बादशाह को उसके शहर की गलियों।में घसीटा, और मार दिया गया. क्लाईव के आगमन की खबर आई- मुर्शिदाबाद ने उसका विजेताओं की तरह स्वागत किया.
कम्पनी को अबाध ट्रेडिंग राइट मिले. हर सेक्टर, ईस्ट इंडिया इंडिया कम्पनी के हवाले कर दिया गया. जीएसटी 100% माफी हुई. कंपटीटर उखाड़ फेंके गए. बड़े-बड़े सेठ, जमींदार, सूबेदार सब क्लाईव की एक निगाह के लिए कुछ भी खर्च करने को तैयार थे.
मगर क्लाईव नैतिकता से भरा, एक बेहद ईमानदार अफसर था. यानी ऐसा वह अपने लिए लिखता है. उसकी जीत के चर्चे इंग्लैंड तक हो रहे थे. भारत में ब्रिटिश झण्डा गाड़ा जा चुका था.
जब चारों ओर क्लाईव क्लाईव के नारे गूंज रहे थे, ईस्ट इंडिया कम्पनी के डायरेक्टर मि. सुलिवान को लग रहा था कि बंगाल विजय और लूट के माल में कुछ बड़ा झोलझाल है. उसको शक था कि हो न हो…ये चौकीदार ही चोर है.
- मनीष सिंह
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