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माओ त्से-तुङ की कविता संख्या – 1 : छाङशा1

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मैं एकाकी खड़ा
शरद की शीतलता में,
जहां श्याङ नद2 का जल
उत्तर ओर बह रहा,
नारंगी टापू3 के तट को
छूता कलकल.
देख रहा रक्ताभ शैलमालाएं ऊपर,
जहां गुलाबी रंग लिए वन
पंक्ति बनाए जमे खड़े हैं;
और पारदर्शी-से नीले जल में
भरती हिचकोले सब,
स्पर्धा में हैं दौड़ रही
शतशत नौकाएं.
विशद गगन में पंख पसारे
पवन चीर उड़ती हैं चीलें,
छिछली जलधारा में
खेल रही हैं मीनें;
जहां कोटिशः जीव
तुहिनमय नभ के नीचे
स्वतंत्रता के साथ
सभी संघर्षलीन हैं.
यह असीमता !
जिसके चिन्तन में डूबा मैं
पूछ रहा हूं :
इस अनंत धरती तल पर
है कौन यहां
उत्थान-पतन का निर्णय करता ?

खूब याद है मुझे आज भी
बीते वर्ष महीने-अनुपम
जब मैं अपनी मित्र-मण्डली लिए साथ में
पहुंचा कभी यहां था प्रमुदित !
युवा छात्र थे सभी
एक विद्या-मंदिर के,
था जीवन प्रसून हम सबका
पूर्ण प्रफुल्लित;
छात्रोचित उमंग से हमने,
सारे अवरोधों को अपने
दूर किया पूरे साहस से.
स्वयं पर्वतों नदियों को
इंगित कर हमने,
जोश भरा सबमें
बुलन्द स्वर देकर अपना;
नहीं धूल से अधिक
कभी समझे थे हमने,
बड़े-बड़े सत्ताधारी बलशाली भूपती.
याद अरे क्या नहीं आज
जब एक बार हम बीच धार थे,
और उछाली लहरें सबने
जल में मार थपेड़े कैसे ?
रोकी दौड़ रही नौकाएं
चंचल लहरों ने फिर कैसे ?

  • छिन य्वान छुन छन्द की लय में / 1925
  1. हुनान प्रांत की राजधानी, जहां अध्यक्ष माओ ने अपनी युवावस्था में शिक्षा प्राप्त की थी और.क्रांतिकारी कार्यवाहियां की थी.
  2. हुनान प्रांत की एक बड़ी नदी, जो छाङशा नगर से होती हुई उत्तर में तुङथिङ झील में जा गिरती है.
  3. श्याङ नदी का एक छोटा टापू.

साभार –

‘माओ त्से-तुङ की कविताएं’ पुस्तक
विदेशी भाषा प्रकाशन गृह, पेकिंङ
प्रथम संस्करण : 1978
चीनी लोक गणराज्य में मुद्रित

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ROHIT SHARMA

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