Home गेस्ट ब्लॉग पूंजीपतियों के मुनाफे व दौलत में वृद्धि की बाधाएं हटाने वास्ते ही आता है फासीवाद

पूंजीपतियों के मुनाफे व दौलत में वृद्धि की बाधाएं हटाने वास्ते ही आता है फासीवाद

7 second read
0
0
220

 

भारत में बहुत से लोग अभी भी पूछ रहे हैं कि फासीवाद कहां है. उन्हें लगता है कि नाजियों की तरह के न्यूरेमबर्ग जैसे कानून (यहूदियों से नागरिक अधिकार छीनने वाले कानून) तो अभी तक लागू नहीं हुए, यातना शिविर व गैस चैम्बर कहां हैं, और बड़े पैमाने पर जनसंहार तो अभी तक नहीं हुआ, अतः भारत में तानाशाही की प्रवृत्ति तो है पर यह फासीवाद नहीं है.

पर इतिहास का सबक है कि नाजियों ने भी जनसंहार व गैस चैम्बर से शुरुआत नहीं की थी. उन्होंने न्यूरेमबर्ग कानूनों के साथ भी शुरुआत नहीं की थी. असल में मीडिया और शिक्षा प्रणाली में पढ़ाये गये इतिहास से हमें फासीवाद के सबसे भयानक और नाटकीय पहलुओं के बारे में ही जानकारी है. लेकिन फासीवाद इससे बहुत कम नाटकीय अंदाज में शुरू होता है.

शुरुआत में, फासीवाद जिन तरीकों से शुरू होता है, वास्तव में आज के भारत में मोदी सरकार की नीतियों के रूप में हम में से बहुत से लोग उससे अच्छी तरह परिचित हैं. दूसरी ओर, अदाणी की कंपनियों के हाल के जैसे घटनाक्रमों को आज के पूंजीवाद व फासीवादी सत्ता के चरित्र के अभिन्न पहलू के तौर पर देखने के बजाय अधिकांश लोग इसे मात्र मोदी-शाह व अदाणी के भ्रष्टाचार की घटना के रूप में ही देखते हैं.

अतः अपने पाठकों की जानकारी के लिए हम जर्मनी व इटली के फासीवाद की शुरुआती आर्थिक नीतियों पर ईशा कृष्णास्वामी के एक लेख से कुछ अंश यहां दे रहे हैं. जर्मनी और इटली दोनों में 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के आरंभ में सशक्त मजदूर आंदोलन उभार रहा था और इसने दोनों ही देशों में मजदूर वर्ग के लिए कई अधिकार हासिल किए थे –

फासीवाद के उदय से पहले, इटली और जर्मनी दोनों में एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा जाल और सार्वजनिक सेवाएं थी. इटली में, ट्रेनों का राष्ट्रीयकरण किया गया था. 1861 में शुरुआत के बाद से वे नियमित तौर पर चलती थी और काफी गांवों तक में उनकी सेवा उपलब्ध थी. 1901 में दूरसंचार उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया गया था. फोन लाइनें और सार्वजनिक टेलीफोन सेवाएं सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध थीं.

1908 में जीवन बीमा उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया गया था. 1919 और 1921 के बीच इटली श्रमिक मुक्ति के दौर से गुजरा जिसे बिएनियो रोसो के नाम से जाना जाता है. इतालवी श्रमिकों ने फैक्ट्री को-ऑप्स का गठन किया था, जहां उन्होंने लाभ साझा किया था. बड़े जमींदारों की जगह सहकारी खेती ने ले ली थी. श्रमिकों को कई रियायतें भी मिली : उच्च मजदूरी, कम घंटे, और सुरक्षित कार्यस्थल की स्थिति.

इसी तरह, जर्मनी में ओटो वॉन बिस्मार्क ने स्वास्थ्य सेवा का राष्ट्रीयकरण किया. यह 1871 से सभी जर्मनों के लिए उपलब्ध थी. बिस्मार्क के समय ही सार्वजनिक सामाजिक सुरक्षा के रूप में वृद्धावस्था पेंशन भी प्रदान की गई और बाल श्रम को समाप्त कर दिया गया. साथ ही सभी बच्चों को पब्लिक स्कूल शिक्षा का अवसर भी प्रदान किया गया. जर्मनी को प्रशिया साम्राज्य से एक राष्ट्रीय रेलवे प्रणाली विरासत में मिली. 1890 के दशक के दौरान जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (उस समय मजदूर वर्ग पार्टी का यही नाम था – लेखक) मजबूत हुई. जवाब में, कैसर ने 1890 में श्रमिक संरक्षण कानूनों को लागू किया.

प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी सोशल डेमोक्रेट्स का प्रभाव मजबूत था. जर्मनी में यूनियनों की सक्रिय सदस्यता थी. इससे एक मजबूत सुरक्षा जाल बना था : ‘सामूहिक समझौतों, श्रमिक व कर्मचारी समितियों और श्रम विवादों के निपटारे पर कानून’ से सामूहिक सौदेबाजी, श्रम अनुबंधों के कानूनी प्रवर्तन के साथ-साथ विकलांग, बुजुर्गों, विधवाओं और आश्रितों के लिए सामाजिक सुरक्षा का ढांचा तैयार हुआ था. 1918 में जर्मनी में सभी श्रमिकों को बेरोजगारी लाभ दिया गया था.

लेकिन दोनों ही देशों में सत्ता में आते ही फासिस्टों ने सबसे पहले सार्वजनिक क्षेत्र की सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर हमला बोला –

‘अक्टूबर 1922 में बेनिटो मुसोलिनी प्रधान मंत्री बना. जर्मनी में 1933 में नाजी सत्ता में आए. मुसोलिनी ने अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई और तुरंत सभी सार्वजनिक उद्यमों का निजीकरण करने का निर्णय लिया. 3 दिसंबर, 1922 को, उन्होंने एक कानून पारित किया जहां उन्होंने सरकार के आकार और कार्य को कम करने, कर कानूनों में सुधार करने और खर्च को कम करने का वादा किया. इसके बाद बड़े पैमाने पर निजीकरण हुआ.

‘उन्होंने डाकघर, रेलमार्ग, टेलीफोन कंपनियों और यहां तक कि राज्य की जीवन बीमा कंपनियों का भी निजीकरण कर दिया. बाद में, जिन दो फर्मों ने इसके लिए सबसे अधिक लॉबीइंग की थी : एसिकुरजियोनी जेनराली (एजी) और एड्रियाटिका डी सिकुर्टा (एएस), एक वास्तविक ओलिगोपॉली (पूरे उद्योग पर हावी कुछ कंपनियां – लेखक) बन गईं. वे लाभकारी उद्यम बन गए. प्रीमियम बढ़ गया, और गरीब लोगों के लिए बीमा कवर समाप्त हो गया. ट्रेनों के निजीकरण के बाद, लोकप्रिय मिथक के विपरीत, सेवाएं धीमी और अधिक अनियमित हो गईं.

‘जनवरी 1923 में, मुसोलिनी ने मकान किराया-नियंत्रण कानूनों को समाप्त कर दिया. उनका तर्क जाना पहचाना था क्योंकि किराया नियंत्रण कानूनों के खिलाफ कई समकालीन संपादकीयों में भी यही तर्क इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने दावा किया कि किराया नियंत्रण कानून मकान मालिकों को नए आवास बनाने से रोकते हैं. जब किरायेदारों ने विरोध किया, तो उन्होंने किरायेदारों की यूनियनों को समाप्त कर दिया. नतीजतन, रोम में किराए की दरों में बेतहाशा वृद्धि हुई और कई परिवार बेघर हो गए. एक बार फिर, इन नीतियों ने मकान मालिकों को अपना लाभ और संपत्ति बढ़ाने में मदद दी, जबकि इनसे गरीबों को गंभीर हानि पहुंची.’

जैसे आजकल मोदी सरकार की नवउदारवादी आर्थिक नीतियों में ‘फिजूलखर्ची’ घटाने अर्थात जनकल्याण के लिए मिलने वाली सब्सिडीयां खत्म करने पर जोर दिया जाता है, उसी तरह ‘मुसोलिनी ने ‘सरकारी फिजूलखर्ची’ को रोकने के लिए, इटली में दूरदराज के इलाकों से संघीय सरकार के काम में कटौती कर दी –

‘इसका मतलब यह था कि ग्रामीण फार्मर, कृषकों और श्रमिकों को अब कृषि व्यवसायियों की लूट के खिलाफ संघीय सरकार का संरक्षण समाप्त हो गया। इसके बजाय, वे पूरी तरह से बड़े कारोबारियों की दया के अधीन हो गए.’

‘हिटलर की आर्थिक नीति तो एक प्रकार से स्टेरॉयड पिए हुए मुसोलिनी की नीति थी. 1920 के दशक में, नेशनल सोशलिस्ट पार्टी (नाजी पार्टी – लेखक) एक छोटी पार्टी थी. 1932 के चुनावों में, नाजी पार्टी के पास एकमुश्त बहुमत नहीं था। न्यूरेमबर्ग मुकदमों के रिकोर्ड़ के अनुसार, 4 जनवरी 1933 को बैंकरों और उद्योगपतियों ने तत्कालीन चांसलर वॉन पापेन के साथ गठबंधन में हिटलर को जर्मनी का चांसलर बनाने के लिए एक गुप्त बैकरूम डील की थी। बैंकर कर्ट बैरन वॉन श्रोडर के अनुसार:

बातचीत विशेष रूप से हिटलर और पापेन के बीच हुई थी. ( . . . ) पापेन ने आगे कहा कि उन्होंने सरकार बनाने के लिए यह सबसे अच्छा पाया कि उनके रूढ़िवादी और राष्ट्रवादी समर्थक प्रतिनिधि तत्व नाजियों के साथ मिल जायें. उन्होंने सुझाव दिया कि यदि संभव हो तो इस नई सरकार का नेतृत्व हिटलर और वे स्वयं मिलकर करें. फिर हिटलर ने एक लंबा भाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा कि, यदि उन्हें चांसलर चुना जाना है, तो पापेन के अनुयायी उनकी (हिटलर की) सरकार में मंत्रियों के रूप में भाग ले सकते हैं.

यदि वे उनकी नीति का समर्थन करने के इच्छुक हैं जो मौजूदा राज्य में कई क्षेत्रों में बदलावों की योजना बना रही थी. उन्होंने इन परिवर्तनों को रेखांकित किया, जिसमें जर्मनी में सभी सोशल डेमोक्रेट्स, कम्युनिस्टों और यहूदियों को प्रमुख पदों से हटाना और सार्वजनिक जीवन में व्यवस्था की बहाली शामिल है. वॉन पापेन और हिटलर सिद्धांत रूप में एक समझौते पर पहुंचे जिससे उनके बीच की कई असहमतियों को दूर किया जा सकता था और सहयोग संभव हो सकता था. इस बात पर सहमति हुई कि बाद में या तो बर्लिन या किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर और विवरण तैयार किए जा सकते हैं.

फरवरी 1933 में, चांसलर के रूप में, हिटलर ने हरमन गोरिंग के घर पर प्रमुख जर्मन उद्योगपतियों से मुलाकात की. आईजी फारबेन, एजी सीमेंस, बीएमडब्ल्यू, कोयला खनन मैग्नेट थिसेन कॉर्प, एजी क्रुप के प्रतिनिधियों के साथ-साथ शीर्ष 1% अमीरों में आने वाले बैंकरों, निवेशकों और अन्य जर्मनों के प्रतिनिधि इसमें मौजूद थे. इस मुलाकात के दौरान हिटलर ने कहा था, ‘लोकतंत्र के युग में निजी उद्यम को कायम नहीं रखा जा सकता.’

1934 में, नाजियों ने जर्मन अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की अपनी योजना की रूपरेखा तैयार की. इसमें महत्वपूर्ण उद्योगों का पुनर्निजीकरण शामिल था : रेलवे, लोक निर्माण परियोजना, निर्माण, इस्पात और बैंकिंग. उसके ऊपर, हिटलर ने निजी क्षेत्र के लिए मुनाफे की गारंटी दी, और इसलिए कई अमेरिकी उद्योगपति और बैंकर जर्मनी में निवेश करने के लिए खुशी से झूम उठे.

नाजियों के पास डीरेग्यूलेशन की पूरी योजना थी. एक नाजी अर्थशास्त्री ने कहा, ‘पहली चीज जो जर्मन कारोबार को चाहिए वह है शांति और चैन. इन्हें पूर्ण कानूनी सुरक्षा की भावना महसूस होनी चाहिए और उन्हें मालूम होना चाहिए कि उनके काम और मुनाफों की पक्की गारंटी है. उनके व्यवसाय में पहले जो अत्यधिक जोश भरा हस्तक्षेप किया गया अब वह असहनीय हो गया है.’

नाजियों ने यह सुनिश्चित किया कि व्यवसाय बहुत अधिक ‘विनियमन’ से बाधित न हों. 2 मई 1933 को एडॉल्फ हिटलर ने सभी ट्रेड यूनियन मुख्यालयों में अपने ब्राउन शर्ट्स गिरोह भेजे. यूनियन नेताओं को पीटा गया, और जेल या यातना शिविरों में भेज दिया गया.

ऊपर से श्रमिकों द्वारा यूनियन सदस्यता के लिए भुगतान किए गए शुल्क से बने यूनियन फंड को नाजी पार्टी ने जब्त कर लिया. यूनियन नेतृत्व को हिटलर के गुंडों द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया था, जो यूनियनों के प्रति स्वाभाविक रूप से विरोधी व सभी सामूहिक सौदेबाजी के अधिकारों को छीनने में मदद करने के लिए थे.

20 जनवरी 1934 को नाजियों ने राष्ट्रीय श्रम विनियमन कानून पारित किया. अधिनियम ने स्पष्ट रूप से सरकार से न्यूनतम मजदूरी और काम करने की दशाएं निर्धारित करने की शक्ति छीन ली. अधिनियम में कहा गया है, ‘उद्यम का नेता उद्यम से संबंधित सभी मामलों में कर्मचारियों और मजदूरों के लिए वे सभी निर्णय लेगा, जो अब तक इस कानून द्वारा विनियमित होते हैं.’

मालिक नियोक्ताओं ने वेतन और लाभ कम कर दिए. श्रमिकों को हड़ताल करने या अन्य सामूहिक सौदेबाजी के अधिकारों में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया गया था. श्रमिकों की स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि एएफएल (अमरीकी फेडरेशन ऑफ लेबर जो खुद भी मजदूरों के लिए लड़ने के बजाय पूंजीपतियों के साथ सौदेबाजी के लिए अधिक जानी जाती है – लेखक) के प्रमुख ने जब 1938 में नाजी जर्मनी का दौरा किया तो उन्होंने एक औसत श्रमिक के जीवन की तुलना एक गुलाम से की. नाजी जर्मनी में श्रमिकों को कम वेतन के लिए अधिक घंटे काम करना पड़ता था.

हिटलर ने बार-बार सामाजिक प्रावधानों में कटौती की, जिसमें ‘व्यक्ति पूजा’ का मुकाबला करने की आड़ में गरीबों को मिलने वाले भोजन राशन में कटौती शामिल थी. 1934 में ‘सार्वजनिक उपद्रव’ से छुटकारा पाने के तरीके के रूप में, बेघरों को सामूहिक रूप से घेर व खदेड़ कर यातना शिविरों में भेज दिया गया. नाजियों ने चिकित्सा व्यवस्था का भी निजीकरण किया.

दरअसल, हिटलर के अर्थशास्त्रियों में से एक निजी बीमा कंपनी का प्रमुख था. इन निजी फायदेमंद स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ने यहूदी-विरोधी नफरत से फौरन फायदा उठाना शुरू कर दिया. 1934 में, उन्होंने यहूदी चिकित्सकों के लिए प्रतिपूर्ति को समाप्त कर दिया, जिससे बीमा कंपनियों का लाभ हुआ.

बेशक, इनमें से कई उद्योगपति, जिन पर न्यूरेमबर्ग में मुकदमा चलाया गया था, ने दावा किया कि वे हिटलर से ‘डर’ गए थे. फिर भी, मुकदमे के दौरान सबूतों से पता चला कि ये उद्योगपति हिटलर के सबसे बुरे अत्याचारों में न केवल सहभागी थे, बल्कि उन्होंने इसके लिए सक्रिय रूप से अभियान चलाया और इनकी पैरवी की. हिटलर के रूप में, उन्हें एक इच्छुक साथी मिला जो उन्हें किसी भी कीमत पर लाभ पाने में मदद करता था.’

  • मुकेश असीम

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…