‘लखानी मजदूर संघर्ष समिति’ तथा ‘क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा, फरीदाबाद’ के बैनर तले, फरीदाबाद के सैकड़ों मजदूरों, 2 मई को शाम 6 बजे, सामुदायिक सेक्टर 24 में, ‘बेल्सोनिका ऑटो कॉम्पोनेन्ट एम्प्लाइज यूनियन, मानेसर’ के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में, अपनी वर्गाय प्रतिबद्धता और सॉलिडेरिटी रेखांकित करते हुए, एक मजदूर आक्रोश सभा आयोजित किया, जिसमें लखानी मजदूरों समेत, दूसरे मजदूरों और मजदूरों से सहानुभूति रखने वाले, इंसाफ पसंद, जागरूक नागरिकों ने बड़े उत्साह से भाग लिया. अंत में, जोरदार नारों के बीच, ‘मालिक-पुलिस-श्रम विभाग-सरकार गठजोड़’ रूपी दानव का पुतला भी फूंका गया.
मानेसर स्थित, मारुती-सुनुको की एक जेंडर कंपनी, ‘बेलसोनिका कॉम्पोनेन्ट इंडिया लिमिटेड’ में कुल 1400 मजदूर हैं, जिनमें 693 स्थायी, 120 पुराने ठेका मजदूर, जो कई साल से काम कर रहे हैं, और लगभग 600 अपरेंटिस तथा नीमट्रेनी मजदूर हैं. बेलसोनिका ऑटो कॉम्पोनेन्ट कर्मचारी यूनियन, सितम्बर 2022 से आन्दोलनरत है क्योंकि ये कंपनी, अनेक कंपनियों की तरह, पिछले दो वर्षों से ‘छिपी छंटनी’ की कुनीति पर चल रही है. कंपनी प्रबंधन, अब तक, कुल 17 मजदूरों को बरखास्त तथा 13 को सस्पेंड कर चुका है.
मजदूर यूनियन का कसूर सिर्फ ये है कि उसने अपने साथी, ठेका मजदूरों को भी इंसान समझा. श्रम अधिकारों पर उन मजदूरों का भी हक है, यह समझते हुए, 4 ऐसे मजदूरों को, जो कई साल से लगातार, ठेका मजदूर की तरह काम कर रहे हैं, अपनी यूनियन की सदस्यता प्रदान की. कंपनी ने, यूनियन सदस्य बने 3 मजदूरों को बर्खास्त कर दिया. साथ ही, 18 अप्रैल को और 14 मजदूरों को नोकरी से बर्खास्त कर दिया. साथ ही, यूनियन के तीन पदाधिकारियों, अध्यक्ष कॉमरेड मोहिंदर कपूर, महासचिव कॉमरेड अजीत सिंह तथा संगठन सचिव कॉमरेड सुनील कमार सहित 3 को सस्पेंड कर दिया. ये उसके बाद हुआ, जब 3 मार्च से सहायक श्रमायुक्त की मध्यस्थता में, यूनियन और मैनेजमेंट की बीच, वार्ताएं चल रही थीं, तथा सहायक श्रमायुक्त तथा सहायक जिला अधिकारी यथास्थिति बनाए रखने के आदेश जारी कर चुके थे.
मजदूर सभा में बोलते हुए, क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा के अध्यक्ष, कॉमरेड नरेश तथा महासचिव, कॉमरेड सत्यवीर सिंह ने सबसे पहले, पिछले साल डी सी गुड़गांव कार्यालय पर हुई मारुति के, अदालत द्वारा बेकसूर ठहराएं गए लेकिन फिर भी काम पर ना लिए गए. बरखास्त मजदूरों की बहाली के आन्दोलन को याद किया, जिसमें वे मौजूद थे.
उस सभा में, गरमाहट उस वक्त चरम पर पहुंची थी, जब, ‘बेलसोनिका ऑटो कपोनेंट्स एम्प्लाइज यूनियन’ के नेतृत्व में, कई सौ मजदूर हाथ में लाल झंडे लहराते, लाल सेना की तरह कतारबद्ध होकर, सभा में दाखिल हुए थे. उनका अनुशासन, इंसाफ की लड़ाई में शामिल होने के उनके दृढ़ निश्चय और शिद्दत का परिचय दे रहा था. सभा में उपस्थित मजदूर कार्यकर्ताओं ने खड़े होकर और जोरदार नारों से उनका स्वागत किया था.
मौजूदा आन्दोलन की शुरुआत, सालों से ठेका मजदूर की तरह काम कर रहे, श्री केशव राजपृत को, यूनियन द्वारा सदस्यता दिए जाने से हुई. कंपनी प्रबंधन द्वारा, यूनियन के उस फैसले को, गैर कानूनी और असंवैधानिक बताते हुए, ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार को, दिनांक 23.08.2022 को लिखा शिकायती पत्र, मौजूदा वक्त की एक बहुत क्रूर हकीकत का चीखता दस्तावेज है –
‘आवेदक श्री केशव राजपूत, ‘मैसर्स बेलसोनिका ऑटो कपोनेंट्स इंडिया प्रा. ली.’ का मजदूर नहीं है. बेलसोनिका के मजदूर ही यूनियन के सदस्य बन सकते हैं. श्री केशव राजपूत और बेलसोनिका कंपनी के बीच, ‘मालिक-मजदूर सम्बन्ध’ कभी प्रस्थापित हुआ ही नहीं है. श्री केशव राजपूत, बेलसोनिका के नहीं, बल्कि ‘मैसर्स एसआरएस लोजिकेयर प्रा. लि.’ कांट्रेक्टर कंपनी के कर्मचारी हैं. जिन मजदूरों के साथ कंपनी का ‘मालिक-मजदूर सम्बन्ध’ प्रस्थापित हो चुका है, वे ही यूनियन के सदस्य बन सकते हैं. ठेका मजदूर यूनियन के सदस्य नहीं बन सकते… इस यूनियन का चाल-चलन ठीक नहीं है..इसके विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जाए.’
‘स्थायी काम के लिए अस्थायी मजदूर भर्ती नहीं किए जा सकते’, देश के इस कानून का क्या हुआ ? बेलसोनिका के संविधान विशेषज्ञ, मानव-संसाधन उपाध्यक्ष, मृतुन्जय नाथ साह ने इस नियम पर प्रकाश क्यों नहीं डाला ? केशब राजपूत, 27.07.2015 से, मतलब 8 साल से, बेल्सोनिका कंपनी में काम रहे हैं, उनके बनाए ऑटो पार्ट्स, मारुती को बेचकर, मालिकों ने करोड़ों रुपये कमाए हैं; लेकिन उनके साथ कंपनी का मालिक-मजदूर सम्बन्ध अभी तक नहीं बना ? फिर उनके बीच कौन सा सम्बन्ध है ? जिन 13 ठेका मजदूरों को कंपनी ने बर्खास्त किया है, उनकी कंपनी की सेवा में लगने की तारीखें इस प्रकार हैं;
राजकुमार-05.02.2015,
केशव कुमार सिंह-08-04.2015 तथा,
सद्दाम हुसैन 23.08.2016.
पूरे 8 साल तक, जिन मजदूरों से अपने हुक्म पर उत्पादन कराया, उनसे मालिक-मजूदूर सम्बन्ध नहीं था, तो कौन सा सम्बन्ध था ?
जब, ‘मालिक-मजूदूर सम्बन्ध स्थापित ही नहीं हुए थे, तो उन्हें काम से कैसे निकाल दिया ? किस हैसियत से, प्रबंधन ने उन्हें, उनकी बर्खास्तगी का हुक्म सुनाया ? एक और बहुत अहम पहलू काबिल-ए-गौर है, इन तीनों मजदूरों को उसके बाद बर्खास्त किया गया, जब उनकी सदस्यता के मामले में, यूनियन चंडीगढ़ हाई कोर्ट गई. कंपनी का सन्देश स्पष्ट हैं; ‘अगर हमारी मनमानी को, अदालत में चुनौती देने की जुर्रत करोगे तो काम से निकाल दिये जाओगे’!! ये अदालत की अवमानना नहीं, तो क्या है ?
‘ठेका प्रथा’, मजदूरों के गुलामी का नया संस्करण है
कुल 47.67 करोड़ श्रमिकों में 94 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में है, जो भयंकर शोषण-उत्पीड़न झेलने को बिवश हैं. इन्हें, कोई श्रम-अधिकार उपलब्ध नहीं. 6 फीसदी संगठित क्षेत्र वाला हिस्सा भी, लगातार और तेजी से सिकुड़ता जा रहा है. ‘अग्निबीर’ की तर्ज पर, फासिस्ट मोदी सरकार, ‘बैंक बीर’, रेल वीर’ और हर किस्म के विभागीय वीर के नाम पर, सभी पदों पर, ठेका मजदूर भरने जा रही है. नए-नए शब्दों की लफ्फाजी में भाजपा सरकारों का जवाब नहीं. इस बीमारी का बिलकुल वही इलाज है, जिसकी मिसाल कायम करने का साहस, बेलसोनिका यूनियन के बहादुर साथियों ने दिखाया है, भले उसके लिए वे भयंकर दमन और अन्याय झेल रहे रहे हैं.
जहां भी स्थायी मजदूरों की यूनियनें हैं, वहां काम कर रहे सभी को यूनियन सदस्य बनाया जाना चाहिए. इस कदम का विरोध कर रहे मालिकों, श्रम अधिकारियों, पुलिस-प्रशासन-सरकारों के फतबों के खिलाफ, मजदूरों को संयुक्त मोर्चा खोलना चाहिए और देश भर के मजदूरों को उनके साथ खड़ा हो जाना चाहिए. मालिक-पुलिस-श्रम विभाग-प्रशासन-सरकार गठजोड़ का मुकाबला ही नहीं, उसे शिकस्त देने के लिए, व्यापक एकजुटता और अदूट फौलादी एकता की दरकार है. इसी जज्बे से प्रेरित होकर, ‘लखानी मजदूर संघर्ष समिति’ तथा ‘क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा’ ने बेलसोनिका के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन और एकजुटता में 2 मई को मजदूर आक्रोश सभा और पुतला दहन का रखा था.
आज की दर्दनाक सच्चाई ये है कि मालिक, या तो यूनियनों से कोई वार्ता करते ही नहीं, उनकी समस्याओं का तो अस्तित्व ही नहीं स्वीकारते. मजदूरों की लड़ाकू श्रम विभाग और जिला प्रशासन पर दबाब बनाकर, मालिकों को वार्ताएं करने पर मजबूर भी कर देते हैं, तब भी, सरकारी अधिकारियों की उपस्थिति में, सहमत हुए मुद्दों को लागू नहीं करता. मालिक, श्रम और प्रशासनिक अधिकारियों के आदेशों को, कौड़ी का महत्व नहीं देते, उन्हें खुलेआम पैरों तले कचलते हैं. पीड़ा, और बढ़ जाती है, जब ये अधिकारी भी, उनके आदेशों के उल्लंघन को गंभीरता से नहीं लेते. उन्हें कोई अपमान महसूस नहीं होता, कोई फर्क नहीं पड़ता.
इस बात की शिकायत, अगर उनके उच्च अधिकारियों से की जाती है, और मजदूर सड़क पर उतर जाते हैं, तब वे उच्च अधिकारी भी, इस बात को स्वीकारते हैं कि ‘वे कुछ नहीं कर सकते !! सरकार ने हमारे हाथ बांधे हुए हैं !! सरकार के हमें लिखित आदेश हैं कि ‘तुम मालिक को जो वह चाहे करने दो !’ मतलब नूराकुश्ती चल रही है. मजदूरों के विरुद्ध, ‘मालिक-पुलिस-श्रम विभाग-प्रशासन-सरकार गठजोड़’ बन चुका है, जो एक गिरोह की तरह काम कर रहा है. बेलसोनिका के मजदूर मानेसर में, और लखानी के मजदूर फरीदाबाद में बिलकुल इसी गठजोड़ का सामना कर रहे हैं.
बेलसोनिका के मजदूर, दिनांक 4 मई से, कंपनी गेट पर क्रमिक भूख हड़ताल पर बेठे हैं. उनकी मांगे हैं:
- मजदूर विरोधी 4 लेबर कोड रद्द करो,
- स्थायी काम पर स्थायी रोजगार के कानूनी प्रावधान को लागू करो,
- स्थायी कार्य पर लगे सभी ठेका मजदूरों को स्थायी करो,
- 17 बर्खास्त और 13 निलंबित मजदूरों को काम पर वापस लो,
- खुली-छिपी छंटनी पर रोक लगाओ.
- फर्जी दस्तावेजों व अनुशासनहीनता के नाम पर श्रमिकों को दिए गए ‘आरोप पत्रों’ और ‘कारण बताओ पत्रों’ को रद्द करो,
- यूनियन के सामूहिक मांग पत्रों का सम्मानजनक समाधान करो,
- स्थायी काम पर ठेका/ अस्थायी श्रमिकों द्वारा कराए जा रहे कार्य को लेकर बेलसोनिका प्रबंधक के खिलाफ कार्यवाही की जाए.
कंपनी मालिक, उनकी मांगों पर कोई ध्यान नहीं दे रहे, कोई बातचीत नहीं कर रहे, बल्कि श्रम विभाग, हरियाणा पुलिस-प्रशासन और हरियाणा सरकार की शह पर, उस अनुशासित और शांतिपूर्वक चल रहे आन्दोलन पर दमनचक्र चलाने और आन्दोलनकारी मजदूरों को डराने-धमकाने को योजना बनाते नजर आ रहे है. श्रम विभाग, वस्तुत: अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. मजदूरों के आक्रोश पर ठंडा पानी डालना है, उन्हें मुगालते में रखना है. शायद, इसीलिए उसे सरकार बंद कर, उसकी इमारतों को सरमाएदारों को नहीं बेच रही.
क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा के महासचिव कामरेड नरेश और कामरेड सत्यवीर सिंह ने, अपने भाषणों में कहा कि देश भर में, संवैधानिक अधिकारों, श्रम अधिकारों को कुचलने के लिए, ‘मालिक-पुलिस-श्रम विभाग-सरकार गठजोड़’, एक गिरोह को तरह काम कर रहा है. मजदूर-विरोधी, संविधान-विरोधी, इस दमनकारी गठजोड़ की कारस्तानियों को, मजदूर चुपचाप बैठे नहीं देखते रह सकते. असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, जैसे लेबर चौक और घरेलू महिला कामगारों को संगठित कर, उनके क्रांतिकारी दस्ते बनाना आज के मजदूर आन्दोलन की सबसे बड़ी चुनौती है, जिसे स्वीकार करने का अहद मोर्च द्वारा लिया गया.
‘जनवादी अधिकार और श्रम अधिकार, बहुत कुर्बानियों से हासिल हुए हैं, उन्हें लुटने नहीं दिया जा सकता. साथ ही उन्होंने, बेल्सोनिका के आन्दोलनरत साथियों को अपने संगठन की ओर से, आखिर तक पूर्ण समर्थन का भरोसा दिलाया. उनके अलावा, ‘लखानी मजदूर संघर्ष समिति’ के साथी जयप्रकाश, राजबीर, श्याम सिंह, प्रदीप, ओमप्रकाश, शेर सिंह तथा कई अन्य मजूदूर साथियों ने भी सभा को संबोधित किया.
‘फरीदाबाद के कई जनवाद-इंसाफ पसंद, जागरूक नागरिकों, जैसे बाबूलाल जी, प्रेम जी, बबलू जी ने उत्साहपूर्वक सभा में शिरकत की तथा फरीदाबाद के मजदूरों द्वारा, मानेसर के अपने आन्दोलनरत कामरेडों क॑ साथ एकजुटता दिखाने के, उनके जज्बे की तारीफ की. उन्होंने ये भी कहा कि इसी तरह देशभर के मजदूरों को, एक दूसरे के दर्द को महसूस करते हुए, एकजुटता कायम करनी चाहिए, क्योंकि मालिक ही नहीं, बल्कि सरकार भी नियमित मजदूरों की जगह ठेके पर भर्तियां करती जा रही हैं.
यहां तक कि सेना में ‘अग्निवीर योजना’ भी, युवाओं को उनके मूल इंसानी हकों से महरूम करने के लिए लाई गई, ठेका प्रथा का ही नाम है. जोरदार नारों के बीच, ‘मालिक-पुलिस-श्रम विभाग-सरकार गठजोड़’ रूपी दानव का पुतला भी फूंका गया.
- सत्यवीर सिंह
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