Home गेस्ट ब्लॉग आरएसएस सांप्रदायिकता के ज़हर और नशे को धर्म और संस्कृति के पर्दे में छिपाकर पेश करता है – हिमांशु कुमार

आरएसएस सांप्रदायिकता के ज़हर और नशे को धर्म और संस्कृति के पर्दे में छिपाकर पेश करता है – हिमांशु कुमार

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हिमांशु कुमार

दो-तीन दिन पहले एक सज्जन से बातचीत हो रही थी. वे कहने लगे वैसे मैं मोदी समर्थक नहीं हूं लेकिन मुसलमान भी बहुत गड़बड़ कर रहे हैं. मैंने पूछा – ‘क्या गड़बड़ कर रहे हैं ?’ बोले- ‘चार चार बीवियां रखते हैं, आबादी बढ़ा रहे हैं.’ मैंने उन्हें सरकारी आंकड़े गूगल में सर्च करके दिखा दिये कि आबादी का ग्रोथ रेट हिंदू और मुसलमानों का करीब-करीब बराबर है. एक से ज्यादा बीवियां रखने का प्रतिशत भी हिंदुओं का ज्यादा है, मुसलमानों का कम है.

इसके बाद वे बोले – ‘अरे यह लोग वक्फ़ बोर्ड वगैरह बना रहे हैं.’ अब मैं चौक गया. मैंने कहा – ‘वक्फ़ बोर्ड से आपको क्या दिक्कत है ?’ बोले – ‘गलत तो है ना ?’ मैंने पूछा – ‘आप जानते हैं वह क्या होता है ? क्या वक्फ़ बोर्ड कोई आतंकवादी संगठन है ?’ वह बोले – ‘हां ऐसा ही कुछ होगा.’ मैं जोर से हंसा. मैंने उन्हें समझाया कि – ‘जैसे आपका सनातन धर्म सभा होती है, आर्य समाज सभा होती है, मंदिर प्रबंध समिति होती है, श्मशान घाट प्रबंध समिति होती है, उसी तरह से मुसलमानों का अपना वक्फ़ बोर्ड होता है.’

वे बोले – ‘चलो आप पढ़े लिखे हो आप जानते हो लेकिन आम जनता तो नहीं जानती.’ मैंने उनसे कहा – ‘आप तो जान लीजिए. आप तो पढ़े लिखे हैं.’ यह हालत है भारत के पढ़े-लिखे हिंदुओं की. मुसलमानों के बारे में जानते कुछ नहीं है, भाजपा की फैलाई हुई नफरत के कीचड़ में डूब रहे हैं. खुद भी बर्बाद और अपने बच्चों को भी बर्बाद कर रहे हैं. अपना वर्तमान भी बर्बाद कर रहे हैं. भविष्य भी तबाह कर रहे हैं.

सांप्रदायिकता तीन चीजों पर आधारित है. सांप्रदायिकता का पहला आधार यह है कि है कि सांप्रदायिक व्यक्ति मानता है कि एक मज़हब को मानने वाले लोग एक तरह से सोचते हैं. दूसरा आधार यह है कि एक संप्रदाय के लोगों के हित एक जैसे होते हैं और तीसरा आधार यह है कि एक संप्रदाय के हित दूसरे संप्रदाय के विरुद्ध होते हैं. उदाहरण के लिए हिंदू सांप्रदायिक सोच के लोग सोचते हैं कि सारे मुसलमान एक तरह से सोचते हैं. सारे मुसलमानों के हित एक से हैं और मुसलमानों के हित हिंदुओं के हितों के विरुद्ध है.

आइए परीक्षण करें कि क्या यह सच है. क्या सारे मुसलमान एक तरह से सोचते हैं ? कोई भी मुसलमान सिर्फ मुसलमान नहीं है, वह हिंदी भाषी है, तमिल भाषी है, उर्दू बोलता है, असमिया बोलने वाला है, बांग्ला भाषी है, यूपी का है. वह अपने प्रदेश की समस्याओं, मुद्दों पर सोचता है ना कि मुसलमान होने के नाते सोचता है. मुसलमान औरतें और मुसलमान मर्द एक तरह से नहीं सोचते. मुसलमान औरतें औरत होने के नाते औरतों के मुद्दों पर सोचती है, मर्द मर्द बनकर सोचते हैं. अमीर मुसलमान अलग तरह से सोचता है. गरीब मुसलमान अलग तरह से सोचता है.

बिल्कुल ठीक इसी तरह से सारे हिंदू एक तरह से नहीं सोचते. जब हिंदू किसान मरते हैं तो सारे हिंदुओं को गुस्सा नहीं आता. जब हिंदू मजदूर सड़कों पर 2 हजार किलोमीटर पैदल चलते हैं तो सारे हिंदुओं को बुरा नहीं लगता. जब रोजगार मांगने वाले हिंदू छात्रों को पुलिस लाठियों से पीटती है तो सारे हिंदू बुरा नहीं मानते. जब हिंदू दलित लड़की के साथ हिंदू राजपूत बलात्कार करते हैं तो हिंदुओं को बिल्कुल गुस्सा नहीं आता. इससे यह साबित होता है कि सारे हिंदू एक तरह से नहीं सोचते.

अगर हिंदू एक तरह से नहीं सोचते तो मुसलमान भी एक तरह से नहीं सोचते. हिंदू सिर्फ वोट देने के लिए एक तरह से सोचते हैं कि मुसलमानों को हराना है, दबाके रखना है इसलिए मोदी को वोट देना है. बस इस मुद्दे पर वह एक होकर सोचते हैं. यह राजनैतिक हिंदुत्व है. इस हिंदुत्व का धर्म, संस्कृति, समुदाय, समाज एकता भाईचारा मेल मिलाप इंसानियत से कोई लेना देना नहीं है. यही सांप्रदायिकता है.

आरएसएस सांप्रदायिकता के इस ज़हर और नशे को धर्म और संस्कृति के पर्दे में छिपाकर पेश करता है. यही इनकी चालाकी धूर्तता और आपराधिक मनोवृत्ति का सबूत है. इंसानियत विरोधी, धर्म विरोधी, देश विरोधी संघियों से सावधान रहिए. यह आपको बर्बाद कर देंगे.

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