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एक अदद रुदन मंत्रालय की जरूरत है !

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एक अदद रुदन मंत्रालय की जरूरत है !
एक अदद रुदन मंत्रालय की जरूरत है !

दो साल पहले की मेमोरी आयी है…एक अदद, रुदन मंत्रालय की जरूरत है !

जी हां, कैबिनेट सिस्टम ऑफ गवरनेंस, असल में जिम्मेदारियों को बांटने के लिए बनाई गई विधि है. एक विशाल देश में प्रशासन के अलग अलग विषय होते है – रक्षा, विदेश, गृह, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि.

हर विषय अपने लिए पूर्णकालिक विशेषज्ञ की मांग करता है. विदेश मंत्री को कूटनीति और जियोपोलिटिक्स का ज्ञान हो, स्वास्थ्य मंत्री को व्याधियों उपचार, औषधि और औषधालय प्रबंधन का.

सामान्यतः सरकार के मंत्री मल्टीटास्किंग नहीं करते. इसलिये तीसरी दुनिया के अविकसित देशों में, कृषि मंत्री सिर्फ कृषि, और शिक्षा मंत्री सिर्फ शिक्षा पर ध्यान देता है. मगर कालक्रम में विकसित देशों में, मल्टीटास्किंग जोर पकड़ती गयी है.

पहले भारत में भी अविकसित देश की तरह एक मंत्री – एक काम, फोकस होकर करता था. मगर अब मल्टीटास्किंग का जमाना है. इसलिए कपड़ा मंत्री स्वास्थ्य पर, स्वास्थ्यमंत्री फ़ूड पर, फ़ूड मिनिस्टर रेलवे पर और रेलमंत्री शिक्षा पर बात करता है. असल में जैसे-जैसे देश विकसित होता जाता है, सारे मंत्री सारे विभाग देखने लगते हैं…सिवाय अपना विभाग छोड़कर !

ऐसे में प्रधान भूमिका में बैठे स्पाइडरमैन उर्फ आयरनमैन उर्फ थोर उर्फ शक्तिमान को सभी विभागों के सभी कामों पर ध्यान देना पड़ता है. इसमें एक यूनिक स्थिति निर्मित होती है.

तकरीबन हर मंत्रालय में ऐसी स्थिति बनती है, जिससे जनता के रोने की नौबत आये. अब सम्बंधित मंत्री तो मटरछिलनादिकर्म में व्यस्त है, तो उसके बिहाफ़ में रुदन का जिम्मा भी शक्तिमान पर आ जाता है.

यह बेहद विशाल जिम्मेदारी है !

जब जिम्मेदारी विशाल हो जाये तो एक पृथक मंत्रालय बना देना चाहिए. पृथक मंत्रालय का बनना, लोक प्रशासन के विकास का स्पस्ट प्रमाण है.

उदाहरण के लिए- जब रेल नहीं होती थी, तब रेल अमात्य भी नहीं होता था. इसी तरह जब बेचने को कुछ नहीं था, तब डिसइनवेस्टमेंट मंत्री भी नहीं होता था. अब है, तो सरकारी सम्पत्ति बेचने को अलग से विभाग और मंत्री है.

तो उसी तरह पहले सरकारों को रुदन नहीं करना पड़ता था, तो रुदन मंत्रालय की जरूरत नहीं थी. अब है, तो एक रुदन मंत्रालय गठित हो !

रोजगार की कमी है. तो प्रमुख रुदन सचिव, जॉइंट रुदन सचिव और रुदन बाबुओं की नियुक्ति हो. अलग-अलग विषय पर रुदन हेतु पृथक विभाग हो. जैसे ‘स्वास्थ्य रुदन विभाग’, ‘अर्थव्यवस्था रुदन विभाग’ आदि. कुछ विशेष सेल भी हो – जैसे नेहरू रुदन सेल, जो सीधे प्रमुख रुदन सचिव के निर्देश पर रोये.

असल में नीचे तक इसका प्रसार होना चाहिए. राज्य रुदन विभाग, जिला रुदन अधिकारी, विकासखंड रुदन अधिकारी और तहसील में रुदनदारों की नियुक्ति हो.

इस सम्पूर्ण व्यवस्था का ढांचा, शीर्ष से केन्द्रीकित हो, ताकि सही टाइमिंग पर, अविलंब रोया जा सके.

वामपंथी और बुद्धिजीवी सवाल कर सकते हैं कि इतनी सारी नियुक्तियों के लिए स्किल्ड लोग कहां मिलेंगे. सीधा-सा जवाब दें कि इसके लिए इसके लिए ‘संघ’ लोक सेवा आयोग की मदद ली जा सकती है.

नहीं, मेरा मतलब यूपीएससी नहीं, नागपुरी सन्तरा संघ से है. यहां प्रशिक्षित रुदालियों का जखीरा मौजूद है. इन्हें भारतीय संस्कृति के हास, संस्कारों के पतन आदि पर रोने का स्थायी प्रशिक्षण है.

ये 1196 में हुई पृथ्वीराज चौहान की हार पर रो रहे है. औरंगजेब पर रोते आये है. ये नेहरू के प्रधानमंत्री बनने, और सरदार के न बनने पर रोते आये हैं. असल मुद्दों की छोड़िये, सोनिया की चौथी अमीर महिला बनने पर भी रोते आये है.

इंदिरा और प्रियंका की शादी पर रोते आये हैं. अब्दुल से तह तक नफरत करने वाले, शाहबानो पर रोते आये हैं. यह थोड़ी बानगी है, रोने के मुद्दों की सूची बेहद लम्बी है. तो प्रशिक्षित लोग बहुतायत में मौजूद हैं. लैटरल एंट्री से सीधे इन्हें रुदाली मंत्रालय में स्थान दिया जाए.

ये फ्री में रोते है, सो शाशन पर वित्तीय भार भी न पड़ेगा. जब भी सरकार का आदेश हो, तीन दिन में रुदाली सेना जहां कहिये वहां पहुंच कर रो सकती है.

विपच्छि फिर आकर सवाल कर सकते है कि इसका भारसाधक मंत्री कौन होगा ? अरे भई, आपके पास कोई विकल्प है क्या ?? हो तो बताओ. नई बताओ अगर है तो. वो तुम्हारा पप्पू, कभी रोते देखा उसे ???

देखो, सिर्फ एक ही है, वो रूदन सम्राट सैंकड़ो साल बाद गद्दी पर आया है. जिसका रूदन बिल्कुल असली होता है. दाढ़ी में छुपा, निचला होंठ जब कम्पकपाता है, तो साथ दाढ़ी हिलकर इफ़ेक्ट को मल्टीफ़ोल्ड कर देती है. दिल जार जार और हिम्मत तार तार कर देती है.

जो ऐसा रोता है, जो सत्तर साल में कोई विश्वनेता न रोया हो। जिसके रोने से मरे जिंदा हो जाते है, खोया पैसा लौट आता है, जनता में खुशहाली फ़ैल जाती है, विश्व में भारत की गरिमा पुनर्स्थापित हो जाती है.

दिव्य अश्रु कणों से परिपूरित, जब ऐसी चमत्कारी रुदन प्रतिभा हमारे सामने मौजूद हो, विकल्प को क्यों सोचा जाये. वे स्वयं ही लीड करेंगे.

मंत्रालय का एंथम हो- फलाने है, तो रूदन है !

यत्र तत्र सर्वत्र रुदन है. अब वो एतिहासिक घड़ी है जब रुदन मंत्रालय की स्थापना हो जानी चाहिए. थके हुए, लाचार, 18-18 घण्टे अकेले रोने वाले, प्रधान रुदनमंत्री को तनिक असिस्टेंस मिले.

तो आप भी मेरे साथ आवाज से आवाज मिलाएं. करुण सामूहिक क्रंदन के साथ, हम सब माई बाप सरकार से करबद्ध प्रार्थना करें. हम हिन्दू राष्ट्र फिर कभी ले लेंगे। फिलहाल तो … एक अदद, रुदन मंत्रालय की जरूरत है !

  • मनीष सिंह

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