Home गेस्ट ब्लॉग अगर दर्शन सूफियाना हो तो वह साइंसदाना कैसे हो सकता है ?

अगर दर्शन सूफियाना हो तो वह साइंसदाना कैसे हो सकता है ?

5 second read
0
0
222

दुनिया में पहले तकनीक आई, बाद में विज्ञान आया. यूरोप के छलांग मारकर आगे बढ़ने का इतिहास तकनीक के पीछे के वैज्ञानिक नियम ढूंढना था. दुनिया और ब्रह्माण्ड के गतिशास्त्र के नियम खोजना था.

भारत, अरब और चीन, दुनिया की ये तीन प्राचीनतम सभ्यताएं अपने अपने ढंग से नई-नई तकनीक खोजकर जब धीरे-धीरे विकसित हो रही थी, तब यूरोप कहीं नहीं था. मगर बाद में इन पुरातन सभ्यताओं में धार्मिक जड़ता और समाज में प्रिविलेज्ड श्रेणियों का कब्ज़ा हुआ तो उसने ज्ञान विज्ञान का प्रवाह रोक दिया.

भारत की जाति-व्यवस्था ने इसका जितना नुकसान किया है, उतना किसी ने नहीं किया –

  • जिस व्यक्ति ने पहली बार मिट्टी को कुल्हड़ में बदला होगा वह दुनिया का पहला मेटेरियल साइंटिस्ट होगा. पहला मेटालर्जी इंजीनियर होगा, लेकिन हमारे यहां उसे कुम्हार बना कर सामाजिक व्यवस्था में पिछड़ा बना कर रख दिया.
  • जिसने पहली बार पहियों में तीलियां फिट कर उसे हल्का बनाया होगा, जिसने पहली बार दो पहियों के बीच एक्सल लगा के उसके सर्कुलर मोशन को सिंक्रोनाइज कर उसे ट्रांसपोर्ट वहीकल में तब्दील किया होगा, वह भारत का पहला ऑटोमोबाइल इंजीनियर होगा, मगर हमने उसे बढई और लोहार बना कर सामाजिक श्रेणीक्रम में नीचे धकेल दिया.
  • यूरोप में टेक्सटाइल इन्जीनियरिंग से औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई, मगर हम, जिसने सबसे पहले कपास उत्पादन शुरू किया, चीन से चरखा और तकली मिली और फिर धागे बनाने और बुनाई करने की शुरुआत की, उस टेक्सटाइल इन्जीनियर को जुलाहा बुनकर बना कर समाज मे पीछे बैठा दिया.
  • लेदर टेक्नॉलजी को गांव के दक्खिन टोले में फिक्स कर दिया और उसे चमार कहकर निम्नतम दर्जा दे दिया.

यूरोप में यही फर्क था कि वहां के आर्टीजन किसी भेदभाव के शिकार नहीं थे. उनके लिखने-पढ़ने पर प्रतिबंध नहीँ था. एक तरफ वो गढ़ रहे थे तो साथ-साथ पढ़ रहे थे. दूसरी ओर वैज्ञानिक सिद्धांत खोज रहे थे और उच्च तकनीकी विकास में आर्टीजन के सहकर्मी बने, क्राफ्टमेनशिप और सांइस के डेडली कोंबों ने जो टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट किया वह हम सबके सामने है और  उन्होंने इसी दम पर पूरी दुनिया जीत ली.

इधर हम भक्ति में रमे ‘ढोल गंवार’ को कंट्रोल करने का साहित्य रच रहे थे, ‘पूजहि विप्र सकल गुन हीना’ की घुट्टी घोल कर पी रहे थे. सबसे बड़ी विडंबना तो यह है धर्म दर्शन के क्षेत्र में ग्रीस और रोम में जो बहसें और विवाद हो रहे थे, यूरोप में विज्ञान उन्हीं धार्मिक विमर्शों के मध्य से निकला. वहां इसके लिए बुद्धिजीवियों ने कुर्बानियां दी.

हमारे यहां एक तो पढ़ना लिखना लिमिटेड कंपनी बन चुका था और दूसरे अपनी इस प्रिविलेज को मेंटेन करने के लिए धर्मशास्त्र भक्ति साहित्य सब समर्पित था.

  • चार्वाकों का पूरा साहित्य नष्ट कर दिया गया.
  • भौतिकवादी दार्शनिक शाखाओं को विकसित नहीं होने दिया गया.
  • अनीश्वरवादी धर्म दर्शन यहां से भगा दिए गए…

अरस्तू ने कह दिया भारी चीज तेजी से गिरती है तो सदियों बाद उसे गैलीलियो ने चुनौती दी. धरती गोल है कि चपटी, धरती घूमती है कि स्थिर है यह सब धर्म दर्शन की बहसें थी…उसके मध्य से खून में लथपथ वैज्ञानिक चेतना की देवी प्रकट हुई. और हम इधर ईश्वर को जानने से ज्यादा उससे प्रेम करने लगे. हमारा इश्क सूफियाना हो गया, तो साइंसदाना कैसे हो सकता था !

हम आज भी नही बदले हैं. जो कौम बदलती नहीं वो मिट जाती है. उसमें देह होगी पर प्राण नहीं होगा. प्राण नहीं होगा तो सडेगी गलेगी और क्या होगी ! यह तो प्रकृति का नियम है. कहने को बहुत है पर कह नहीं पाते, लेकिन कहे बिना रह भी नहीं पाते.

  • पंकज मिश्रा

Read Also –

शुद्धतावाद के नाम पर हिंदू धर्म सभी के साथ नफरत का व्यापार करता है
धर्म और कार्ल मार्क्स : धर्म के अंत का अर्थ है मनुष्य के दु:खों का अंत
‘विज्ञान की न कोई नस्ल होती है और ना ही कोई धर्म’ – मैक्स वॉन लाउ
अमरनाथ यात्रा : अर्थसत्ता, राजसत्ता और धर्मसत्ता का नापाक संश्रय है
‘एकात्म मानववाद’ का ‘डिस्टोपिया’ : राजसत्ता के नकारात्मक विकास की प्रवृत्तियां यानी फासीवादी ब्राह्मणवादी राष्ट्रवाद
राजसत्ता बनाम धार्मिक सत्ता 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…