संभव है कि
तुम्हारे द्वारा की गई हत्या के जुर्म में
मुझे फांसी पर लटका दिया जाए
यह भी संभव है कि
तुम्हारे द्वारा फैलाए गए झूठ को
सच नहीं मानने की सज़ा
मुझे अपनी जान दे कर चुकानी पड़े
संभव है कि
तुम्हारे द्वारा खींची गई लकीरों को
किसी देश की सीमा मान कर
मुझे देश निकाला दे दिया जाए
संभव है कि
वे मेरी शराब में डूबी हुई
निःसंग रातों को
मेरे विद्रोही कविताओं की जननी मान लें
जबकि मैं सिर्फ़ तुम्हारी यादों में डूबा था
संभव है कि
मुझे काग़ज़ पर
किसी अबोध लिपि में
दाहिने से बाएं लिखते देख कर
आतंकवादी समझ लें
गुफा चित्रों के व्यापक परिधि से निकल कर
आदमी जब अलग अलग ज़ुबानों में बोलता है
तो अक्सर ऐसा भ्रम पैदा होता है
मुझे न तो तुम्हारी समझ पर अफ़सोस है
और न ही अपनी सोच पर कोई गर्व है
जो जैसा है वह वैसा ही है
लेकिन तुम्हारी ज़ुबान में
अगर आदमी के लिए
एक से ज़्यादा शब्द नहीं है
तो मुझे इसका अफ़सोस है
- सुब्रतो चटर्जी
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