Home कविताएं जिस दिन हमारी मांओं ने अपनी प्रेम कहानियां लिखनी शुरू कर दी…

जिस दिन हमारी मांओं ने अपनी प्रेम कहानियां लिखनी शुरू कर दी…

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मां तो मां ही होती है
लेकिन एक दिन
मां की एक पुरानी सहेली ने हमसे यूं ही कहा
तुम्हारी मां जब जवान थी तो बहुत ही खूबसूरत थी !

ओह !
ऐसे तो मां के बारे में मैंने कभी सोचा ही नहीं था.

मेरी मां अगर खूबसूरत थी
तो उसके प्रेम के किस्से भी होंगे.
हम दोस्तों की तरह उसके भी कुछ दोस्त होंगे
जिनमे लड़कियां भी होंगी और लड़कें भी.
मां का एक नाम भी होगा.

अभी तो हमने मां के नाम को ‘म्यूजियम’ में रख दिया है
जहां कभी कभी हम घूम आया करते हैं
और यह सोच कर गर्व करते हैं कि
हमे अपनी मां का पूरा नाम पता है.
लेकिन अब आश्चर्य होता है, यह सोचकर
कि कभी उसे उसके नाम से ही पुकारा जाता होगा.

लेकिन अंततः
अपने प्रेम को दफना कर,
दोस्तों को पीछे छोड़ कर
अपने नाम को एक पोटली में लपेटकर,
बहती नदी में फेंककर
वह ससुराल आयी होगी !

शायद कभी कभी
वह सबकी नजर बचाकर
अपनी कब्र पर लौटती भी हो,
कुछ सफेद फूल भी चढ़ाती हो
शायद कभी वह नदी किनारे अकेले बैठती भी हो
इस इंतजार में कि शायद धारा पलट जाए
और उसे उसके नाम वाली पोटली दिख जाए.

आजकल तो खुदाई का फैशन है
लेकिन क्या हमारे अंदर वह साहस है
कि हम अपनी मां के अतीत की खुदाई करें.
और हर उस चीज के फासिल्स की तलाश करें
जिसका ‘मां की गरिमा’ ने गला घोंट दिया है.
क्या हम अपनी मांओं को अपनी प्रेम कहानी
लिखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं ?

इतना तो तय है,
जिस दिन हमारी मांओं ने
अपनी प्रेम कहानियां लिखनी शुरू कर दी
उस दिन पुरुष सत्ता की चूले तो हिलेंगी ही
लेकिन, उनकी बेटियों के जीवन में बसंत आ जायेगा !

  • मनीष आजाद

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