मनीष सिंह
गौतम एक गरीब गुजराती था…! किसी तरह हीरों के व्यापार और एक दो बंदरगाह चलाकर रूखी सूखी खुम्बी खाता. उसकी गरीबी का आलम यह था कि वह, उसकी पत्नी, उसके बच्चे, उसका ड्राइवर, माली, पायलट, गार्ड, बारमैन, पीए और उसके हजारों कर्मचारी, सारे के सारे फटेहाल गरीब थे.
एक सुबह जब उसके पास अपने जेट में भरवाने के लिए एवियेशन फ्यूल के पैसे भी नहीं रहे तो बीवी ने ताना देकर कहा – ‘तुम तो कहते थे, डिग्रीधर तुम्हारे मित्र हैं. जरूर तुम झूठ कहते हो. ऐसी दयनीय हालत में वो कोई राजा अपने मित्र को छोड़ता है क्या … ??अगर तुम्हारी ये बात जुमला नहीं थी, तो जाकर उनसे कुछ मांग ही लो.’
गौतम ऐसे तो बड़ा स्वाभिमानी था, मगर पत्नी के तानो से तंग आकर उसने तय कर लिया कि अब वह रायसीना जाकर डिग्रीधर से मिलेगा. उसने थोड़ा बहुत एवियेशन फ्यूल जुगाड़ा और उडान भरी.
प्लेन की फटी हुई सीट पर ठुड्डी टिकाए वह बड़ा उदास था.
ऐसे में व्यक्ति फ्लैश बैक में चला जाता है. फ्लैश बैक में गौतम ने देखा- एक बुढिया के घर में कुछ चोर घुस आए. बुढ़िया भिक्षाटन करके कुछ चने लाई थी. सोचा था कि प्रातः इसे फुलाकर नमक के साथ खाउंगी.
मगर रात को ही घुसे चोरों ने चने चुरा लिए और भागकर युनिवर्सिटी में चले छुप गए. वहां डिग्रीघर, जो तब डिग्रीहीन थे, मित्र गौतम के साथ एंटायर पॉलिटिकल साइंस पढते थे. मने पढ़ते क्या थे, कभी गिलहरी बनते, कभी शेर, कभी मगरमच्छ पकड़कर हॉस्टल में ले आते. कभी इससे नाता जोड़ते, कभी उससे. इन सब तमाशों से समय मिलता तो बंगलादेश संग्राम में भाग लेते.
वही वीसी आफिस में चोरो ने पोटली छुपा दी. अब गौतम जो थे, ब्रम्हज्ञानी थे. उन्हें पता था कि पेपर चुराने जब डिग्रीहीन वहां जाएगा, तो चना देखकर रूकेगा नहीं, सारे चट कर जाएगा. ये चने शापित हैं, क्योंकि बुढिया ने शाप फेंक मारा है कि जो उसके चोरी हुए चने खाएगा, वो दरिद्र हो जाएगा.
इसलिए वे स्वयं सारे चने भकाभक खा गए, तब से वे दरिद्र हो गए. मगर प्रभु को दरिद्र होने से बचा लिया था. इतने में प्लेन रायसीना में लैण्ड कर गया.
महाराज ! महाराज ! महाराज !
गुजरात से एक गरीब आदमी आया है. उसका कोट फटा हुआ है, टाई उधड़ी हुई है, पैण्ट में पैबंद है. अपना नाम ‘गौटी ब्रो’ बताता है. कहता है आपका मित्र है …!
ओह ! गौटी ब्रो ??? ही इज माई पर्सनल फ्रेण्ड … आने दो. आदेश पाकर संबित ने गौतम को भीतर भेजा. डिग्रीधर ने उसकी दीन दशा देखी तो कैमरे की ओर देखकर, फफक फफक कर रोने लगे. जब कैमरे शॉट सही आ गया तो आंसू पोछकर भगवन बोले – तू मुझसे मांगने आया है, कमीशन में क्या लाया है ??
गौतम ने हाथ जोड़े. अपनी सारी कंपनियों के पेपर उनके सामने रख दिये. कहा आपके नाम कर देता हूं. प्रभु मुस्कुराये –
‘ये घाटे और कर्जे वाली कंपनियां लेकर मैं क्या करूंगा मित्र. ये अपने ही नाम पर रहने दो. इसमे इन्वेस्टमेण्ट आए, मुनाफा हो तो समझ लेना ये मेरा ही माल है.’
यह कहकर प्रभु ने एक मुट्ठी पेपर उठाए.
फिर दूसरी मुट्ठी पेपर उठाए.
बाकी पेपर तीसरी मुठ्टी में उठाने वाले थे कि गौतम पैरो में गिर गया. बोला- दया निधान कम से कम 33 परसेट तो मेरे पास छोड़ दो.
गौतम प्लेन उठाकर वापस गुजरात पहुंचा. देखा, तो साम्राज्य के सारे पोर्ट, खदान, पीएसयू उसके नाम हो चुके थे. जहां तहां का काला धन उसके खातों में आ चुका था. बीवी मुस्कुरा रही थी, उसके हाथ में फोर्ब्स की लेटेस्ट कॉपी थी.
गौतम का फोटो दूसरे नंबर पर चिपका था. बीवी खुश होकर बलैंया लेने लगी. गौतम ने फोर्ब्स की किताब हाथ में ली. डबडबाई आंखों से अपनी तस्वीर देखता रहा. आंसुओं की झिलमिल के बीच किताब में .. उसे अपनी जगह डिग्रीधर की छवि दिखाई दे रही थी.
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