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मायका…!

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मायका...
फोटो मम्मी के मायके के जंगलों की है, बिनसर, देवलीखेत रानीखेत

जंगलों ने
गीत गुनगुनाती हुई स्त्रियों को
ठहाका मारकर हंसती हुई स्त्रियों को
कभी निर्लज्ज बोलकर जलील नहीं किया.
ना ही मुंह बंद करने
और मुंह छुपाने की हिदायतें दी.
जंगलों में स्त्रियां
जंगलों की तरह बेपर्दा रहीं.

जंगलों ने जाड़ों की नर्म धूप में
नींद निकालती हुई स्त्री की चुगली
कभी किसी से नहीं की.
जंगलों में
कभी किसी स्त्री को
कैदखाने का एहसास नहीं हुआ.
और ना ही पेड़ों की ओट
कभी दमघोंटू लगी.

जंगलों ने अपने गांव की स्त्रियों को
कभी पराए भन
और पराए धन की गाली नहीं दी.
ना ही अपनी संपत्ति से
कभी किसी स्त्री को बेदखल किया.

जंगलों ने महावारी के पांच दिनों तक
स्त्रियों के स्पर्श से कोई परहेज भी नहीं किया.
ना ही नाक भौं सिकोड़कर
उन्हें अछूत होने की गाली दी.
ना ही उन दिनों
स्त्रियों के लिए
कोई लक्ष्मण रेखा अपनी धरती पर खींची.
जंगलों में बहने वाले गदेरे
कभी किसी स्त्री के छूने भर से अपवित्र नहीं हुए.

इसीलिए स्त्रियों ने
ईंट पत्थरों के मकान की बजाय
जंगलों को अपना मायका कहा.
और स्त्रियां,
पहाड़ का आधार बन गई.
अपने जंगलों के लिए जल्लाद बन गई.
और उनकी हिफाजत में,
दुनिया भर की पूंजी से भिड़ गई.

  • मेघा वंदना आर्या

भन – बर्तन, कुमाऊनी भाषा में
गदेरे – जल स्रोत

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ROHIT SHARMA

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