Home कविताएं तुम्हें सब कुछ चाहिए आदमी के सिवा…

तुम्हें सब कुछ चाहिए आदमी के सिवा…

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कुछ अस्पतालों में मरे
कुछ चलती ट्रेन के नीचे
और कुछ जो खुले में थे
जब तुम्हारे बमबर्षक कलाबाज़ियां खाते हुए
सारे बमों के माता पिता को
उनके छोटे-छोटे शरीरों को निशाना बना रहे थे
बमों के माता पिता उन बच्चों के नैसर्गिक
अभिभावक नहीं थे
और आपने सापेक्षता का सिद्धांत तो
नवीं कक्षा में पढ़ा ही होगा
चालीस हज़ार फ़ुट की ऊंचाई से
कैसा और कितना बड़ा दिखता होगा आदमी
और आदमी का बच्चा
तुम्हारी हथेली पर रेंगते हुए चींटी की तरह
कितना पसारोगे संवेदनाओं की चादर को
सीमा हर चीज़ की होती है
असीम बस आसमान है
और वह निस्पृह है
कलियों को काटना
बीज की भ्रूणहत्या
सबसे आसान तरीक़ा है उजाड़ पाने का
तुम्हें तेल चाहिए
पानी चाहिए
कोयला चाहिए
लोहा चाहिए
सब कुछ चाहिए आदमी के सिवा
और, ख़ासकर बच्चों के सिवा
मैं समझता हूं दर्द तुम्हारा
बच्चे खेलते हैं
फटे हुए बमों की खाल से फ़ुटबॉल बनाकर
बच्चे हंसते हैं फ़ोर्ब्स पत्रिका पर छपे हुए
दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोगों की
तस्वीर वाली जिल्द को मोड़ कर
बारिश के पानी में बहने वाली नाव बनाकर
जब डरते हैं बच्चे तो तुम्हारे सामने
हमारी तरह नहीं झुकते
अपनी मां की गोद ढूंढते हैं
ऐसे में डरना लाज़िमी है तुम्हारा बच्चों से
तुम हर उस शै से डरते हो
जो तुमसे नहीं डरता
मैं चाहता हूं तुम्हारा ये डर बना रहे ताकि
एक दिन तुम्हारे बंकर की छत पर
सुनाई पड़े तुम्हें भारी बूटों की आवाज़
तुम समझ लोगे कुछ बच्चे जो बच गए थे
बड़े हो गए हैं आज
और इस बार तुम्हारे डर का निशाना
तुम ख़ुद होगे
एक औंस की एक अदद गोली.

  • सुब्रतो चटर्जी

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ROHIT SHARMA

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