Home ब्लॉग माओवादियों ने दांतेवाड़ा में आदिवासी ग्रामीणों पर नृशंस हमला करनेवाले डीआरजी के 10 कुख्यात गुंडे मार गिराये

माओवादियों ने दांतेवाड़ा में आदिवासी ग्रामीणों पर नृशंस हमला करनेवाले डीआरजी के 10 कुख्यात गुंडे मार गिराये

6 second read
0
0
130
माओवादियों ने दांतेवाड़ा में आदिवासी ग्रामीणों पर नृशंस हमला करनेवाले डीआरजी के 10 कुख्यात गुंडे मार गिराये
माओवादियों ने दांतेवाड़ा में आदिवासी ग्रामीणों पर नृशंस हमला करनेवाले डीआरजी के 10 कुख्यात गुंडे मार गिराये

दांतेवाड़ा में आज डीआरजी के 10 गुंडों को माओवादियों ने मार गिराया है. इन गुंडों के मरते ही इन गुंडों के सरगना में हड़कंप मच गया. भांय-भांय बयानबाजी जारी होने लगा. प्रधानमंत्री के पद पर मौजूद इन गुंडों के सरगना नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री बघेल आननफानन में श्रद्धांजलि अर्पित करने लगा. इसलिए नहीं कि इसे मारे गये डीआरजी के गुंडों से कोई हमदर्दी है, बल्कि इसलिए कि डीआरजी के ये गुंडे भारत की कॉरपोरेट सत्ता का स्थानीय स्तर पर उसके पुलिसिया गिरोह के तमाम कुकर्मों का हाथ-पांव और आंख है.

यही वह डीआरजी के गुंडे हैं, जो आदिवासियों को मारने-पीटने, हत्या करने, बलात्कार करने, गांव-गांव आग लगा देने का सबसे बुनियादी ढांचा है. जिस पर हमला कर मौत की सजा देने का मतलब है न केवल डीआईजी के गुंडों के अंदर ही बल्कि समूची पुलिसिया तंत्र के मनोबल का ढ़ह जाना. डीआरजी के ये गुंडे आदिवासियों के बीच के ही भटके हुए लालची और अपराधी तत्वों को जुटाकर आदिवासियों की न्यायपूर्ण लड़ाई के खिलाफ खड़ा किया गया है. माओवादियों के इस हमले से कहीं उसका मनोबल न टुट जाये, इसीलिए हताश शासकीय गुंडों का अब ये रोना-धोना शुरु हुआ है.

इस रोना-धोना के पीछे एक और कारण है. डीआरजी के नाम से गठित ये आपराधिक गुंडे मुख्यतः स्थानीय आबादी के बीच से निकले असामाजिक तत्वों और माओवादियों से निकले या भगाये गये गलत तत्वों का सरकारी गिरोह है, जो कॉरपोरेट घरानों के सशस्त्र गिरोह – पुलिस, अर्द्ध सैन्य बल वगैरह – का फुट-आर्मी है. सरकारी पुलिसिया गिरोह का यह स्थानीय फुट आर्मी न केबल आदिवासियों पर हमले, हत्या, बलात्कार, गांवों में आग लगाना आदि जैसे कुख्यात कारनामों का सबसे बड़ा सशस्त्र सहयोगी ही होता है बल्कि इसका इस्तेमाल सरकारी पुलिसिया गिरोह को बचाने और माओवादियों पर हमला करने में भी होता है. आज भी यह फुट आर्मी फंसे हुए पुलिसिया गिरोह को बचाने के लिए निकला था. यही कारण है कि सरकारी तंत्र हाय-तौबा कर रहा हैै.

डीआरजी गुंडे गिरोह की सक्रियता से पहले सरकारी तंत्रों ने सलवा जुडूम जैसी सशस्त्र गिरोह का गठन किया था, लेकिन शांतिप्रिय आदिवासी ग्रामीण समुदायों ने कुख्यात सलवा जुडूम के गुंडों को माओवादियों के नेतृत्व में समूल नाश कर दिया. जिससे घबराई सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आड़ में बदनाम सलवा जुडूम गिरोह को बंद कर दिया. इसके बाद नये सिरे से करीब 40 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले बस्तर क्षेत्र के सभी जिलों में माओवादियों से मुकाबले के लिए डीआरजी के गठन की शुरुआत 2008 में हुई थी. सबसे पहले कांकेर और नारायणपुर जिलों में माओवाद विरोधी अभियान में इसे शामिल किया गया. 2013 में बीजापुर और बस्तर में इसका गठन हुआ. 2014 में सुकमा और कोंडागांव के बाद 2015 में दंतेवाड़ा में यह अस्तित्व में आया.

 

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…