पृथ्वी को उसकी धुरी पर किसने घुमाया होगा
क्या एक कुम्हार ने
जैसे घुमाता है वह अपना चाक
या एक स्त्री ने
जो पृथ्वी की तरह ही
अपनी धुरी पर घूमती है
चौबीस घंटे
घर की हर चीज
घूमती हैं उस स्त्री के साथ
जैसे घूमते हैं, नदी पहाड़ जंगल
पृथ्वी के साथ
पृथ्वी निर्णय नहीं करती, न ही सोचती है
वह बस घूमती है, साल दर साल
सदी दर सदी
ठीक वैसे ही
स्त्री भी निर्णय नहीं करती, न ही सोचती है
वह भी बस घूमती है
साल दर साल, सदी दर सदी
अपने घर, अपने ईश्वर को कांधे पर उठाए
लेकिन एक बार
स्त्री रुकी
उसके रुकते ही
रुक गयी पृथ्वी, घर और ईश्वर भी
स्त्री ने सोचा
मैं इस घर इस पृथ्वी और इस ईश्वर को
गढूंगी अपने अनुसार
तभी किसी मर्द ने यह सुन लिया
और जोर से चिल्लाया
आखिर मालिक कौन है ??
- मनीष आजाद
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]