फाइनेंशियल टाइम्स ने अपने संपादकीय में भारत में लोकतंत्र के मौजूदा स्वरूप के बारे में चिंता जताते हुए कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठाये हैं. यह अख़बार लंदन से निकलता है और दुनिया भर में प्रतिष्ठित इस अखबार को सभी प्रमुख वित्तीय संस्थानों, शिक्षण संस्थाओं में गंभीरता से लिया जाता है. हाल ही में हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी समूह की कथित वित्तीय अनियमितताओं पर इस अखबार ने लेख लिखे हैं, जिसे आधार बनाकर राहुल गांधी ने लगातार सवाल उठाये हैं. इसका जवाब अडानी समूह की ओर से फाइनेंशियल टाइम्स को भेजा गया था, और लेख को हटाने के लिए कहा था, जिसे अख़बार ने हटाने से इंकार कर दिया है – सम्पादक
जल्द ही भारत आधिकारिक तौर पर विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जायेगा. हालांकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का उसका दावा लगातार कमजोर पड़ता जा रहा है. गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात की एक अदालत ने भारत के सबसे प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की एक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें एक संदिग्ध मानहानि की सजा पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
इस सजा के आधार पर सरकार को राहुल गांधी को संसद की सदस्यता से बेदखल करने का मौका मिल गया. इसके चलते उन्हें दो साल की जेल की सजा और अगले वर्ष होने वाले आम चुनावों के लिए अयोग्यता का सामना करना पड़ सकता है. राहुल गांधी के लिए पैदा की गई कानूनी अड़चन मोदी के भारत में व्यापक लोकतांत्रिक पतन के सबसे चरम उदाहरणों में से एक है. यह न सिर्फ भारत के 1.4 अरब लोगों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बुरी खबर है.
वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक मूल्यों पर बढ़ते दबाव के साथ-साथ आर्थिक विखंडन के बीच भारत की जीवंत, टेक-सेवी आबादी और तीव्र गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था बहुमूल्य संपत्ति हैं. एक मजबूत, समावेशी और सही मायने में लोकतांत्रिक भारत, जो सही मायने में चीन के लिए एक प्रतिरोधक का काम कर सकता है और एक वैश्विक रोल मॉडल के रूप में सभी के लिए बड़ा मायने रखता है. लेकिन अब यह पूरी तरह से स्पष्ट होता जा रहा है कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी भारतीय लोकतांत्रिक संस्थानों को अपने हित साधन हेतु तोड़ने-मरोड़ने के लिए अपने सभी संसाधनों को झोंकने पर आमादा है.
2014 में हिंदू राष्ट्रवादी प्लेटफार्म पर सवारी गांठकर जबसे भाजपा ने राहुल गांधी की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को पटखनी दी है, तभी से मोदी के समर्थकों ने मीडिया, नागरिक समाज और राजनीति सहित सभी क्षेत्रों में स्वतंत्र अभियक्ति का गला घोंट रखा है, और भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक तनाव को हवा दे रखी है.
सार्वजनिक बातचीत में मोदी के खिलाफ बोलने से आम लोगों का सहमना आम बात है. फ़्रीडम हाउस नामक एक अमेरिकी एनजीओ ने 2021 में भारत को ‘स्वतंत्र’ दर्जे से घटाकर अब ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ श्रेणी में डाल दिया है, जबकि स्वीडन स्थित वी-डेम संस्थान रूस और तुर्की के साथ-साथ भारत को ‘चुनावी निरंकुशता’ के तौर पर मान्यता देता है.
भाजपा के प्रति आलोचक रुख रखने वाले पत्रकारों को अक्सर ऑनलाइन उत्पीड़न और कभी-कभी तो क़ानूनी नतीजे भुगतने पड़ते हैं. तमाम मीडिया संस्थानों के मालिकों के साथ अपने संबंधों के माध्यम से सरकार द्वारा भारी दबाव डाला जाता है और संपादकों को सरकार की खींची लकीर के पीछे-पीछे चलने का दबाव रहता है.
विदेशी मीडिया भी इससे अछूती नहीं हैं. फरवरी माह में मोदी के प्रति आलोचक दृष्टि रखने वाली बीबीसी की एक डाक्यूमेंट्री के जारी होने के फ़ौरन बाद ही टैक्स इंस्पेक्टरों की टीम का छापा पड़ जाता है. तमाम शिक्षाविद, थिंक टैंक और विदेशी एनजीओ समूह भी भारी दबाव के बीच में हैं. इसी सप्ताह अधिकारियों द्वारा कथित विदेशी फंडिंग उल्लंघनों को लेकर ऑक्सफैम इंडिया पर एक बार फिर से छानबीन की गई है.
अपने राजनीतिक विरोधियों को लगातार दबाने की यह प्रक्रिया कांग्रेस पार्टी तक ही सीमित नहीं है. भारत की दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के तौर पर मौजूद आम आदमी पार्टी (आप) के एक वरिष्ठ नेता इस समय एक कथित एक्साइज धोखाधड़ी के मामले में हिरासत में हैं और इसके नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी रविवार को इस सिलसिले में पूछताछ की गई.
असहमति पर हमला कर भारत अपनी असीम संभावनाओं को ही नुकसान पहुंचा रहा है. देश को उन चुनौतियों से निपटने में मदद पहुंचाने के लिए एक मजबूत और खुली सार्वजनिक चर्चा की आवश्यकता है, जो इसे अपनी पूरी क्षमता से काम करने में बाधा बन रही हैं.
इनमें असाध्य समस्या हो चुकी बेरोजगारी, बड़े पैमाने पर निरक्षरता और क्रोनी पूंजीवाद शामिल हैं. अमेरिका के शॉर्ट सेलिंग ग्रुप हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा हाल ही में भारतीय बिजनेस टाइकून गौतम अडानी, जिनका मोदी के साथ अच्छा रिश्ता है, के स्वामित्व वाली कंपनियों की तहकीकात की गई और उसने भी कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं.
पश्चिमी देश चीन के मुकाबले भारत को एक लोकतांत्रिक और आर्थिक रूप से प्रतिपक्ष के रूप में देखता है लेकिन शी जिनपिंग से मोहभंग ने आज के दिन पश्चिमी नेताओं को मोदी के कार्यकलापों के प्रति आंखें मूंदे रखने के लिए प्रेरित कर दिया है. पिछले सप्ताह अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी वाणिज्य मंत्री गीना रायमोंडो ने यहां तक कह डाला कि ‘वह किसी वजह से सबसे लोकप्रिय वैश्विक नेता हैं.’
दुनिया के कारोबारी और निवेशक चीन से हटकर भारत में विकास और विविधीकरण के अवसर देख रहे हैं. लेकिन कानून के राज का लगातार क्षरण उन्हें इस फैसले पर पुनर्विचार करने लिए मजबूर कर देगा.
भारत का लोकतंत्र कभी भी पूर्ण विकसित नहीं रहा है, लेकिन इसने प्रभावशाली नतीजे हासिल किए हैं. इसने दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के मुकाम तक पहुंचने के लिए देश के उत्थान में मदद पहुंचाई है और तेजी से बढ़ते एक मध्यम वर्ग को तैयार किया है. पश्चिम के नेताओं को चाहिए कि वे भारत के हित में, सिविल सोसाइटी और अभिव्यक्ति की आजादी पर भारत सरकार के हो रहे हमलों की निंदा करने में और अधिक मुखर हों. यदि मोदी अपनी दिशा को बदलने में असफल रहते हैं, तो एक महाशक्ति के रूप में भारत की उनकी योजना महज एक कपोल-कल्पना बनकर रह जाने वाली है.
- फाइनेंशियल टाइम्स की संपादकीय का अनुवाद. अनुवाद- रविंद्र पटवाल
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