इन कीलों को देख रहे हैं. ये चीन की बनी हुई हैं, इन कीलों ने हाल के दिनों में पूरे भारत की काली और मरियल कीलों को रिप्लेस कर दिया है. इन कीलों की खासियत ये है कि इन्हें अगर दीवार में ठोका जाये तो ये टेढ़ी नहीं होती हैं. पहले हम हिंदुस्तानी अपने मुल्क में बनी कीलों को अपने घरों की दीवार में ठोक पाते थे मगर कुछ सालों से जो कीलें अपने यहां बनने लगी थीं वे दीवार में सही सलामत तभी जा पाती थीं, जब ड्रिलिंग मशीन के सहारे उसे अंदर डाला जाये. आलम यह था कि अगर आपको घर में चार कीलें लगवानी है तो ड्रिलिंग मशीन किराये पर मंगवायें. मगर अब इन कीलों ने फिर से हमारा काम आसान कर दिया है, डेढ़ से दो रुपये की एक आती हैं और इन्हें आप हथौड़े से सीधे ठोक सकते हैं.
कीलों पर इतना लंबा लिखने का एक ही मकसद है कि हम अब अपनी जरूरत के हिसाब से कीलें भी नहीं बना पा रहे हैं. इसी तरह सखुआ से बने पत्तलों को चाइनीज थर्मोकोल की पत्तलों ने लगभग रिप्लेस कर दिया है. भारत की बनी इमरजेंसी लाइट जहां सात-आठ सौ रुपये से कम की बिकती नहीं वहीं चाइनीज इमरजेंसी लाइट महज सौ रुपये में मिल रही है. दीपावली की रोशनी वाली झालरें, होली की पिचकारी और 15 अगस्त का झंडा सब चीन से आ रहा है. तो भाई आप बना क्या रहे हैं, आप आर्थिक महाशक्ति कैसे बन रहे हैं. ये छोटे-छोटे सवाल नहीं हैं, भारतीय औद्योगिक विकास पर सवालिया निशान हैं. ये अंबानी, अदानी, जिंदल और टाटा कर क्या रहे हैं, बस जमीन कब्जा कर रहे हैं कि कुछ जरूरी चीजें बना भी रहे हैं…
- पीयूष मित्रा
Read Also –
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]