भारत में चुनाव आयोग की निर्थकता इससे ज्यादा और क्या हो सकती है कि कर्नाटक में होनेवाली विधानसभा चुनाव के तिथि की घोषणा चुनाव आयोग के बजाय भाजपा का आई टी सेल प्रभारी करता है. इसी के साथ भारत में चुनाव आयोग भाजपा के आदेशों को पालन करने वाली एक संस्था मात्र रह गई है, जिसकी विश्वसनियता आम आदमी के बीच शून्य हो गई है.
मौजूदा चुनाव आयोग ठीक से काम नहीं कर रहा है. चाहे आनन-फानन में आप के 20 विधायकों को अयोग्य करार देने का मामला हो, जिसमें खुद राष्ट्रपति भाजपा के तलबाचाटु साबित हो चुके हैं, ईवीएम का मसला हो या हिमाचल और गुजरात के चुनाव के तारीखों की घोषणा करने में पीएम की रैली और घोषणाओं के इंतजार करने का मामला हो, चुनाव आयोग की भूमिका न केवल भाजपा के दलाल की ही बनी वरन् वे मजाक भी बन गये हैं.
चुनाव आयोग की असली पहचान देश के सामने तब आई जब मुख्य चुनाव आयोग टी. एन. शेषण ने बूथ लूटे जाने वाले चुनाव को अपनी कड़ी मेहनत और कठोर अनुशासन के बल पर शानदार तरीक़े से चुनाव सम्पन्न कराया. तभी पहली बार देश ने चुनाव आयोग की महत्ता को समझा. परन्तु उनके जाने के बाद धीरे-धीरे चुनाव आयोग अपनी गरिमा को खोता चला गया. आज आलम यह बन गई है कि चुनाव आयोग देश में एक हास्यास्पद संस्था का रुप ग्रहण कर लिया है, जिसके आड़ में चुनाव प्रक्रिया की भी कोई महत्ता नहीं रह गई है.
देश में तथाकथित लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए दिखावटी ही सही, एक चुनाव प्रणाली की स्थापना की गई है, जिसे हर बार देश के तकरीबन 50 से 60% तक मतदाता औचित्यहीन मानकर बहिष्कार कर देता है. बांकि के डले वोटों के आधार पर सरकार का चयन किया जाता है, जिसका एकमात्र लक्ष्य देश की मेहनतकश जनता के खून-पसीने की कमाई को देश के दलाल पूंजीपतियों और साम्राज्यवादियों के हाथों लुटवाना होता है, जिस लूट में यह सरकार और उसकी मशीनरी अपना हिस्सा पाती है. सरकार और उसकी मशीनरी इस हिस्सा लेने के एवज में दलाल पूंजीपतियों और साम्राज्यवादियों की आम जनता के किसी भी प्रतिरोध से पूरी सुरक्षा की गारंटी देती है.
देश की चुनावी प्रणाली शासक के उस वर्ग का चयन करती है जो जनता को सबसे ज्यादा मूर्ख बनाकर शोषको के शोषण को निर्विध्न जारी रखने की गारंटी देती है. परन्तु अब जब इसी चुनाव प्रणाली के माध्यम से लोगों के ऐसे ईमानदार समूह चुनकर आने लगे हैं, जो वास्तव में जनता की बुनियादी सुविधाओं यथा, रोटी, शिक्षा, चिकित्सा आदि जैसै सवालों पर गंभीरतापूर्वक काम करने लगे हैं, शोषण की तेज रफ्तार के विरूद्ध खड़े होने लगे हैं, तब देश के दलाल पूंजीपतियों के कान खड़े होने लगे हैं. वे अपने शोषण के व्यवस्था की सुरक्षा को लेकर चिंतित होने लगे हैं.
यही कारण है कि केन्द्र की मोदी सरकार के वक्त में देश के दलाल पूंजीपति जहां अपनी पूंजी सहित और देश के मेहनतकश जनता की बैंकों में जमा हजारों-लाखों करोड़ रुपये बकायदा बैंकोंं से चुरा कर विदेश भाग रहे हैं और यह सरकार उसे भगाने में पूरी मदद कर रही है तो वही साम्राज्यवादी भी न केवल अपनी पूंजी के निवेश को ही कम रहे हैं, वरन् अपनी पूंजी भी समेट रहे हैं. एक आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के इन चार सालों में तकरीबन 23 हजार दलाल पूंजीपति देश के लाखों करोड़ की धनराशि सीधे बैंकों से लेकर भाग चुकी है, और अनेकों भागने की कतार में लगे हैं.
ऐसे वक्त में शासक वर्ग का यह दलाल तबका जो आज केन्द्र की कुर्सी पर बैठा है, शोषण और बैंकों के द्वारा जारी इस क्रूर खेल को बरकरार रखने और सत्ता पर अपनी निरंतरता बनाये रखने हेतु चुनाव प्रणाली को ही निर्रथक बना दिया है, ताकि जनता के हितों की हिफाजत करने की सोच रखने वाले ईमानदार लोग चुनकर न आ जाये.
मौजूदा सरकार के काल में चुनाव आयोग ईमानदार और जनता के हितों में काम करने वाले समूहों को रोकने के लिए पहले से भी ज्यादा मुस्तैदी के साथ लगा हुआ है. पहले जहां यह काम बूथों को लूटकर अंजाम दिया जाता था और अब यह काम सीधे ईवीएम जैसे मशीनों को ही हैक कर किया जा रहा है. बीच के थोड़े से काल में टी. एन. शेषण के प्रभाव के कारण पड़ने वाले व्यवधानों को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है. परन्तु देश की आम जनता जागरूक हो रही है, इसका परिणाम आने वाले वक्त में बेहद खूबसूरत दिखेगा, इसकी उम्मीद की जा सकती है.
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S. Chatterjee
March 29, 2018 at 4:46 am
संसदीय प्रजातंत्र मूर्खों के देश के लिए नहीं होता। क्षरण स्वाभाविक है।