‘जस्टिस डी. वाय. चंद्रचूड़, चीफ जस्टिस, भारत, वक़्त आ गया है कि आपको देश की सारी अदालतों को बंद करने का आदेश जारी कर देना चाहिए. भारत को अब आपकी और आपकी अदालतों की ज़रूरत नहीं है.’
– विनोद कापड़ी, फिल्म मेकर
अपराधियों की सज़ा अगर धर्म के नाम पर होने लगे और सजा सत्ता में बैठे सैकड़ों हत्या के ज़िम्मेदार व्यक्ति के इशारों पर होने लगे तो इस देश के न्यायपालिका और क़ानून पर सवाल उठना लाज़मी है.
किसी ने अपराध किया है तो उसकी सजा उसे क़ानून के अनुसार मिलना चाहिए, लेकिन इस तरह से अपने चुनावी फ़ायदे और अपनी नाकामी छुपाने के लिए किसी की हत्या करवाना लोकतंत्र का मज़ाक़ है.
आप न्याय का चश्मा पहनकर इन तीन तस्वीरों को ध्यान से देखेंगे तो आपको सवाल और उसके जवाब भी मिल जायेंगे, इनमें एक तस्वीर असद अहमद का है, दूसरी उसके एनकाउंटर की है और तीसरा ‘मोनू मानेसर’ नाम के एक शख़्स का है.
आपको बता दूं कि ‘मोनू मानेसर’ वो शख़्स हैं जिस पर पहले भी कई हत्या के आरोप है और हाल ही में उसने और अपने साथियों के साथ ‘जुनैद और नासिर’ नाम के दो मुस्लिम युवकों की हत्या कर अभी भी फ़रार है, जिसे अभी तक न तो पकड़ा गया है और न ही इसका एनकाउंटर हुआ है जबकि महीनों बीत चुका है, यह सिर्फ़ एक शख़्स नहीं है, ऐसे सैकड़ों लोग हैं लेकिन ये मुस्लिम नहीं है.
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर अपराधी का फैसला बंदूक से होगा, तो भाजपा जैसे पार्टी जिसमें लुटेरे, बलात्कारी, हत्यारे भरे पड़े है, पूरी पार्टी का सफ़ाया हो जायेगा.
- शंकर कुमार
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