पड़ी हुई
जमी हुई राख को
धीरे-धीरे कुरेदना
अच्छा लगता है मन को
लगता है मिल रही है
जीवन दृष्टि धीरे-धीरे
राग द्वेष से परे
जिसमे न अहम की तुष्टि है
न ही वर्तमान की अवसरवादिता
जो गिराएगी पाताल तक
उठायेगी आसमान तक
अन्वेषण आदमी का
आदमी से जोड़ने की
तथ्यपरक स्वीकारोक्ति
निश्चित करती है
अन्वेषण की सार्थकता को
प्रजनन, श्वसन
भूख-प्यास, स्त्री-पुरुष
प्रकृति जनित श्रद्धा
विश्वास टूटते नहीं हैं
टूटते हैं भ्रम
बढ़ता है विश्वास
रागात्मकता की लय
विश्वासों से परे होती है
अंतर्दृष्टि में निहित
अंधकूप के जीवन विश्वास
अध-कचरा बाबा ज्ञान
कल्पनाएं कपोल कल्पित
पैदा करती हैं भ्रम
तथ्यों में, विश्वासों में
राग द्वेष में लिप्त
विश्लेषकों की
विश्लेषण करती जीवन दृष्टि
पैदा करती हैं कुरूप जमात
और अन्वेषण
हो जाता है निरर्थक
आम लोगों के लिए !
- बुद्धिलाल पाल
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