Home गेस्ट ब्लॉग शेर को यह पता है, बस इसलिए शेर चौराहे पर बुलाने से नहीं आता !

शेर को यह पता है, बस इसलिए शेर चौराहे पर बुलाने से नहीं आता !

12 second read
0
0
367
शेर को यह पता है, बस इसलिए शेर चौराहे पर बुलाने से नहीं आता !
शेर को यह पता है, बस इसलिए शेर चौराहे पर बुलाने से नहीं आता !
मनीष सिंह

शेर अकेला चलता है…! और ऐसी ही दूसरी धारणाएं अगर आपने बना रखी है तो इस ‘नो पालिटिक्स- ऑनली वाइल्डलाइफ’ आलेख को यहीं छोेड़ दें. इसलिए कि अक्सर, जानकारी और धारणा के बीच पत्थर और कांच का रिश्ता होता है.

तो जिसे आप शेर या सिंह कहते है, एशियाटिक लायन होता है, जिसका वैज्ञानिक नाम पैन्थेरा लियो है. वस्तुतः यह बिल्ली का सौतेला भाई है. यूं समझिये कि बिल्ला ऐसा, जिसका वजन सवा सौ किलो के आसपास हो.

असल में कोई 10 मिलीयन बरस पहले बिल्ली, शेर, बाघ, जगुआर, चीता और तेन्दुए ने एक कामन पूर्वज से अलग-अलग दिशा में पलना-बढना शुरू किए और तब से शेर को लेकर तमाम छवियां बननी शुरू हो गई.

दुनिया में कई जगहों पर गुफा मानवों ने दीवारों पर शेर की तस्वीरें बनाई. भारत में भी पौराणिक रूप से इन्हें बड़ा महत्व मिला. विष्णु के अवतार माने गए नृसिंह का आधा शरीर शेर और आधा मानव का था.

हम सब भी तो शेर की तरह दिखना, चलना, हुंकारना चाहते हैं.

तो शेर डाइमार्फिक प्रजाति है, याने स्त्री और पुरूष में दिखने में काफी अंतर होता है. मादा सिंपल, मगर नर मैजेस्टिक होता है. उसकी लम्बी दाढी और केश, बड़ी मूंछ और मोटी पूंछ (जिसपे आपका ध्यान नहीं जाता) होती है.

पूंछ पर घने बालों का गुच्छा भी होता है. इन बालों ने शेर को एक रोबीली और मर्दानी छवि दी है, और उसकी छवि से तमाम मिथ जुड़े हैं.

शेर अकेला चलता है !!!

जी नहीं ! शेर झुंड में रहता है, झुंड में जीता, शिकार करता है. शेरों का झुंड हिंदी में ‘घमंड’ याने अंग्रेजी में ‘प्राइड’ कहलाता है. एक प्राइड में दो-तीन नर और कई मादाऐं और बच्चे होते हैं. शेर सामाजिक प्राणी है, अकेला नहीं.

यह भी सरासर प्रोपगण्डा है कि शेर अठारह-अठारह घण्टे शिकार मे लगा रहता है. दरअसल में वह अच्छा खासा आलसी होता है. हफ्ते-चार दिन में एक बार शिकार पर जाता है. बाकी वक्त किसी पेड़ के नीचे सुस्ताते हुए, विकास के सपने देखता है, और फालतू की गुर्रम-गुर्री करता है.

यह भी प्रोपगैण्डा है कि शेर सामने से वार करता है। शेर झुंड में, घात लगाकर, सबसे छोटे और कमजोर शिकार पर हमला करता है. ज्यादातर हमला पीछे से, गरदन पर होता है. उसकी फेवरिट टेक्निक गर्दन में अपने दांत चुभाकर, स्पाइनल कॉर्ड तोड़ देने की रहती है, इससे शिकार फड़फड़ा भी नहीं पाता.

असल में सुन्दरबन के आदिवासी जंगल में जाते वक्त पीछे से होने वाले हमले से बचने के लिए सिर के पीछे की ओर चेहरे का मुखौटा लगाते हैं ताकि शेर कन्फयूज हो जाए कि अरे भई, इस बन्दे का आगा कहां से है और पाछा कहां से ?? कमबुद्धि शेर कनफ्यूज हो भी जाता है.

छाती तक बेतरतीब दाढी मूंछ बढाकर, शेर छाप बनने वाले सड़क छाप वीर, ये जानकर उदास होंगे कि प्राइड में शेर की घंटा नहीं चलती.

यहां शेरनी का राज (और) नीति चलती है. आलम ये होता है कि शिकार के समय शेरनियां, शेर को घेरे के केन्द्र में डालकर उसे सुरक्षित रखती हैं, और ज्यादातर मोर्चा खुद संभालती है.

प्राइड का यही सिस्टम है, इसलिए चाहे जंगल की सरकार हो, प्रेस कान्फ्रेंस हो या ट्विटर हैंडल, आपने दहाड़ती शेरनियों को, पीछे दुबके शेर की रक्षा करते खूब देखा है. मैंने तो बहुत से नर को, मादा की डीपी लगाकर शेर की रक्षा करते देखा है.

जब शेर उल्टे सीधे कारनामों में फंस जाए, और नारा लगे कि- ‘शेर की रक्सा कौन करेगा ?? आपको नेपथ्य से जनाना आवाज सुनाई देगी – ‘मई करेगी ! मई करेगी !!’

शेर का एक काम बड़ा न्यारा है. उसे अपनी टेरेटरी मार्क करने में बेहद आनंद आता है. एक शेर की टेरेटरी चार सौ वर्ग किमी से पचास वर्ग किमी तक हो सकती है. शेर इसे एक्सपांड करने के लिए दूसरे इलाके के शेरों से लड़ते हैं, गुर्राते हैं, अधिकार जताते हैं. वे लाल लाल आंख दिखाने जाते हैं, पर कई बार ज्यादा लाल आंख देखकर टेरेटरी छोड़ भी आते हैं.

अपने इलाके की पहचान के लिए वे पूरे इलाके में घूम-घूम कर जगह जगह सूसू करते हैं. सूसू की दुर्गन्घ बता देती है कि इलाका किसका है. ये मैथड यूनिक तो है, पर इसके साथ दिक्कत ये है कि सूसू की गंध जल्दी फेड हो जाती है.

ऐसे में फिर से पूरे इलाके में घूम-घूम कर सूसू करना पड़ता है. जाहिर है शेर का ज्यादातर समय घूम घूमकर सूसू करने में व्यतीत होता है. डे ड्रीमिंग के साथ सूसू-प्रदक्षिणा को आप उपयोगी कार्य मान लें, तो 18 घंटे के काम करने वाली गप्प असल प्रमाणित हो सकती है.

एशियाटिक लायन की निवास गुजरात में गिर नेशनल पार्क है, जहां आप स्वच्छंद शेर पा सकते हैं. मगर इसके बाहर ये सिर्फ सर्कस में ही पाए गए हैं. शेर वहां मालिक के पिंजरे मे बैठकर, अनोखे करतब दिखाता है.

इशारे पर गुर्राता है, चुप होता है, फुदकता है, और रिंगमास्टर उसे कुदा-फंदाकर उंचे स्टूल पर बैठाता है. दर्शक शेर के करतब देखकर ताली बजाते हैं, चीखते और रोमांचित होते हैं. इस दौरान परदे के पीछे शांति से बैठा सर्कस का मालिक, नोट गिनता रहता है.

शेर की छवियां बाजार में बिकती हैं. हालीवुड स्टूडियो मेट्रो गुडविन मेयर्स याने एमजीएम का लोगो भी दहाडता हुआ शेर है. असल में वह भी सर्कस का ही शेर था, जो लाइट-साउंड-कैमरा के अटेंशन पर लोगों के मनोरंजन के लिए दहाड़ रहा था.

शेर के अकेले चलने की बात उसके बुढापे में सच हो जाती है. होता ये है कि जवां उम्र में वे टेरेटरी और शेरनियों के लिए आपस में लड़ते हैं. वे बेहद शंकालु होते हैं और भविष्य के काम्पटीशन से बचने के लिए अपने ही झुंड के बच्चों को मार डालते हैं.

इसलिए शेरनियां, यंग कब्स का ख्याल रख्ती हैं और उसे शेरों से बचाती हैं. जाहिर है, ऐसे में जब बच्चे शेर बड़े होते हैं, वे बूढे़ शेर को मार्गदर्शक मण्डल में खदेड़ देते हैं. मार्गदर्शक मण्डल से मेरा तात्पर्य ऐसे बूढे, परित्यक्त शेरों से है, जो मार्ग के किनारे लाचार बैठकर, शिकार के दर्शन का इंतजार करता है.

ऐसी ही एक कथा पंचतंत्र में आती है, जिसमें मार्ग के किनारे बैठा बूढ़ा शेर, एक सोने का कंगन लेकर राहगीर को दिखाता है. कहता है कि ओ राहगीर.. मेरे पास आओ, मेरा भरोसा करो, मैने मारकाट छोड़ दी है, मैं साधु हो गया हूं। आओ, मैं ये पंद्रह लाख का कंगन तुम्हें दे दूंगा.

और फिर, जब झांसे और लालच में फंसा राहगीर उसके समीप जाता है … खच्च- खच्चाक- सररप.. यम यम यम !

तोे लालच बुरी बला है. शेर होने का फितूर भी उतनी ही बुरी बला है. वैज्ञानिक एकमत है कि गढ़ी हुई हाइप और छवि के विपरीत लायन में स्टेमिना उसके बराबर के कई जानवरों से कम होता है. अनेक बार तो छोटे जानवर या वनभैंसे आदि इनसे बराबर का लोहा लेकर भगा देते हैं. आप डिस्कवरी और एनीमल प्लेनेट में ऐसे बहुतेरे वीडियो देख सकते हैं.

तो घात लगाने वाले इस जानवर से, अगर आपका सामना हो जाए तो डरें नहीं. यह जानवर न सामने से हमला करेगा, न टिक पाएगा. इसकी छवि और नाम का डर ज्यादा है.

और आप भारत के सन्तान हैं. भारत याने उस भरत की जमीन, जो खेल खेल मे शेरों का मुंह फाडकर उनके दांत गिनता था. तो आप भी गिनेंगे एक दिन … मुंह खोलकर नहीं, दांत, इतमीनान से घर लाकर.

शेर को यह पता है. बस इसलिए शेर, चौराहे पर बुलाने से नहीं आते !

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…