शर्मा अमरेन्द्र
औरंगजेब ने एक फरमान जारी किया और कहा कि जहां तक मुगलों का राज है, उस पूरे इलाके में किसी भी महिला को सती न होने दिया जाए. आज इतिहास मिटा रहे हो, क्या आपको मालूम है कि जब हिन्दू महिलाओं को सती होते औरंगजेब ने देखा तो क्या किया ? पूरा पढ़िए ध्यान से लाइन बाई लाइन.
बात शुरू होती है जब मुगल खानदान में तख्त की जंग सेटल हो चुकी थी. दाराशिकोह अपने भाई औरंगजेब के हाथों मारा जा चुका था. औरंगजेब दूसरे भाई मुराद बख्श को भी निपटा चुका था. तीसरे भाई शाह शुजा को भी वह आगरा और दिल्ली से बहुत दूर खदेड़ चुका था. निकोला मनूची इस पूरे वाकये का गवाह था. अपने हमदर्द दारा के मारे जाने के बाद मनूची बंगाल की ओर रवाना हुआ.
मनूची दिल्ली से चलकर कुछ दिनों के लिए इलाहाबाद में रुका. इलाहाबााद से मनूची बनारस रवाना हुआ, आठ दिन वह यहां रुका फिर वह बनारस से नाव के जरिए पटना रवाना हुआ. मनूची लिखता है, पटना बहुत बड़ा शहर है. यहां कई बाजार हैं और तमाम व्यापारी यहां रहते हैं. यहां बहुत बढ़िया क्वॉलिटी का मुलायम कपड़ा बनाया जाता है. पटना में कॉटन के कपड़ों के अलावा सिल्क का बेहतरीन कपड़ा भी तैयार किया जाता है. पटना में गन पाउडर भी बड़ी मात्रा में बनाया जाता है.
मनूची ने पटना का एक दिलचस्प किस्सा दर्ज किया है. वह लिखता है, पटना में मुझे आगरा का एक मित्र मिल गया. वह आर्मीनिया से आया था. उसका नाम ख्वाजा सफर था. उसके पास पटना के एक सर्राफ का एक पत्र था. उसमें लिखा था कि ख्वाजा सफर को वह सर्राफ 25 हजार रुपये देगा लेकिन पटना आने पर ख्वाजा सफर को पता चला कि सर्राफ दिवालिया हो गया. ख्वाजा बहुत निराश हुआ.
खैर, पटना के व्यापारियों का उससे पुराना लेन-देन था, तो वे लोग उसके पास अपना कपड़ा बेचने के लिए आए. आर्मीनियाई ने उनसे 30 हजार रुपये के कपड़े खरीदे और नावों पर लदवाकर सूरत भेज दिया. खुद वह पटना में ही रहा. जब व्यापारियों को पैसा चुकाने की बारी आई तो आर्मीनियाई एक दिन सुबह दो मोमबत्तियां जलाकर बैठ गया. उसने सिर पर पगड़ी भी नहीं पहनी थी और मुंह लटकाए बैठा था. पटना के रिवाज के मुताबिक, इसका मतलब यह था कि वह खुद दिवालिया हो चुका है.
मनूची लिखता है, शहर में सनसनी फैल गई. लोग अपना बकाया लेने के लिए उसके पास आने लगे, गालीगलौज भी होने लगी. लेकिन आर्मीनिया का ख्वाजा सफर बस एक लफ्ज रटता रहा, दिवालिया. लोग उसे अदालत में ले गए लेकिन वहां उसने चुपके से जज को 5 हजार रुपये दे दिए.
सुनवाई शुरू हुई तो ख्वाजा सफर ने सर्राफ से लेकर अब तक का पूरा किस्सा सुना डाला. कहा, कि सर्राफ ने पैसे नहीं दिए, इसी वजह से वह खुद दिवालिया हो गया. अब जज ने फैसला सुनाया. कहा, कपड़ा व्यापारी खुद वह पत्र लेकर सर्राफ के पास जाएं और पैसा वसूल करें क्योंकि एक विदेशी अजनबी को इस तरह परेशान करना ठीक नहीं.
मनूची लिखता है कि उस समय पटना में औरंगजेब का सूबेदार दाऊद खान था. यह वही दाऊद था, जो कभी दारा का हमदर्द था, उसका साथ देने के लिए पीछे-पीछे मुल्तान तक चला गया था, लेकिन दारा कान का कच्चा था और किसी के कहे में आ गया था. उसने दाऊद को वापस लौटा दिया और कहा कि वह कभी अपनी सूरत न दिखाए. दाऊद इस बात पर खूब रोया था. मैं जब पटना में दाऊद से मिला तो वह बहुत खुश हुआ. उसने मुझे कीमती कपड़े दिए. उसके मन में दारा के लिए अब भी मुहब्बत थी. दाऊद का कहना था कि अगर दारा जिंदा होता तो उसने औरंगजेब की खिदमत करना कभी कबूल नहीं किया होता.
मनूची लिखता है, जब मैं पटना से बंगाल के लिए रवाना हुआ तो दाऊद ने मुझे एक बड़ी-सी नाव दी और कहा कि मैं उसी से बंगाल जाऊं. मेरे पास दो घोड़े थे. मैंने एक घोड़ा बेच दिया और दूसरे के साथ नाव में सवार होकर चल पड़ा. रास्ते में मैं राजमहल पहुंचा, जहां कभी शहजादा शाह शुजा रहता था. लेकिन अब उसके महल और शहर की दूसरी इमारतों का बुरा हाल हो चुका था.
मनूची राजमहल से आगे ढाका और फिर सुंदरबन होते हुए हुगली तक गया. वह लिखता है, हुगली में बहुत से पुर्तगाली थे. उन दिनों बंगाल में केवल उन्हीं को नमक का व्यापार करने की छूट थी. कुछ दिन हुगली में रहने के बाद मैं कासिम बाजार पहुंचा. वहां के लोग काफी अच्छी क्वॉलिटी का सफेद कपड़ा और दूसरे सामान बनाते थे. वहां तीन कारखाने भी थे. एक डच, एक अंग्रेज और एक पुर्तगाली का. कासिम बाजार से मैं सड़क के जरिए राजमहल लौट आया.
मनूची ने राजहमल का एक दिलचस्प वाकया दर्ज किया है. वह लिखता है, वहां मैं हिंदू महिला को जलता हुआ देखने के लिए रुक गया. हालांकि ऐसी घटनाएं मैं पहले भी देख चुका था. उस महिला को एक संगीतकार से प्रेम था और उसने अपने पति को यह सोचकर जहर दे दिया था कि उसके मरने के बाद वह अपने प्रेमी से विवाह कर लेगी. लेकिन पति की मौत के बाद संगीतकार ने शादी करने से मना कर दिया. पति को खोने और प्रेमी के हाथों ठुकराए जाने से महिला बहुत निराश हो गई थी और उसने जलकर जान देने की ठान ली थी.
मनूची लिखता है, एक बड़े गड्ढे में आग धधक रही थी. बहुत लोग जमा हो गए थे. उनमें वह संगीतकार भी था. वह इस उम्मीद में आया था कि महिला आखिरी समय में उसे कोई यादगार चीज देगी. इसी तरह का रिवाज था. आग में जलने वाली महिलाएं दूसरों को पान के पत्ते या गहने देती थीं. वह महिला अग्नि कुंड के चक्कर लगा रही थी. उसी दौरान वह उस युवा संगीतकार के करीब आई. उसने अपने गले से सोने की एक चेन निकाली. महिला ने वह चेन युवक के गले में डाली और इसके साथ ही उसे अपनी बाहों में खींच लिया. अभी कोई कुछ समझ पाता, इससे पहले ही वह महिला उस युवक को साथ लेकर अग्निकुंड में कूद गई. दोनों की मौत हो गई.
मनूची राजमहल से वापस पटना होते हुए इलाहाबाद लौटा और फिर वहां से आगरा चला गया, जहां शाहजहां अब भी कैद था. औरंगजेब इस बीच कश्मीर चला गया था. मनूची ने आगरा के दिनों का एक किस्सा दर्ज किया है.
वह लिखता है, मैं अपने एक आर्मीनियाई नौजवान दोस्त के साथ गांवों की ओर निकला था. एक जगह एक हिंदू महिला जलती चिता के चक्कर लगा रही थी. उस महिला की नजर अचानक हम पर पड़ी. ऐसा लगा, जैसे उसकी आंखें कह रही हों कि मुझे बचा लो.
आर्मीनियाई नौजवान ने मुझसे पूछा कि क्या उस महिला को बचाने में मैं उसकी मदद करूंगा ? मैंने हामी भर दी. हमने अपनी तलवारें निकाल ली. हमारे साथ चल रहे सैनिकों ने भी ऐसा ही किया. हम घोड़े दौड़ाते हुए भीड़ के बीच पहुंच गए. वहां मौजूद ब्राह्मण डरकर भाग निकले, महिला अकेली रह गई. आर्मीनियाई नौजवान ने उसे अपने घोड़े पर बैठा लिया और हम वहां से चल पड़े.
मनूची लिखता है, उस नौजवान ने उस महिला से शादी कर ली. काफी दिनों बाद जब मैं सूरत गया, तो वहां वह महिला और आर्मीनियाई अपने बेटे के साथ मिले. उस महिला ने जान बचाने के लिए मुझे धन्यवाद दिया. इस बीच, जब औरंगजेब कश्मीर से लौटा, तो ब्राह्मण उसके पास शिकायत लेकर गए. कहा कि सैनिक उनकी प्रथा में रोड़े डाल रहे हैं और महिलाओं को सती नहीं होने दे रहे. इस पर बादशाह औरंगजेब ने एक फरमान जारी किया. उसमें कहा गया था, जहां तक मुगलों का राज है, उस पूरे इलाके में किसी भी महिला को सती न होने दिया जाए.
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