शब्द

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क्या मेरे शब्द
बस तुम्हारी यादों की आग के
जलावन हैं
क्या तुम्हारा मन
विस्मृति से भरा
मात्र एक आकाश है
काले सफेद बादलों के फूल
जहां खिलते हैं
कभी कभार
मौसम के तकाज़े पर
इतना निस्पृह
इतना निरासक्त
जैसे वैरागी का आंगन
कहीं ऐसा तो नहीं कि
शब्द के बिना
मेरी कोई पहचान ही नहीं
और विस्मृति के बिना
तुम्हारे पास
कोई पथ ही नहीं

  • सुब्रतो चटर्जी

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