राम अयोध्या सिंह
पौराणिक कथाओं में ऐसी-ऐसी कथाएं भरी हुई हैं कि सोचने पर दिमाग चकराने लगता है. अब सृष्टि के निर्माण की ही बात लीजिए. कहा गया है कि ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया. अब जरा सोचिए कि जिस सृष्टि का विस्तार ही अनंत है, उसे ब्रह्मा ने कैसे बना दिया ? ब्रह्मा कहां बैठे थे ? और ब्रह्मा के हाथ और पांव कितने बड़े-बड़े थे, जो इतनी बड़ी सृष्टि का निर्माण कर दिया ?
अब धरती के बारे में कहते हैं कि यह गाय के सिंग पर खड़ी है, और जब गाय धरती का भार एक सिंग से दूसरे सिंग पर बदलती है तो भूकंप होता है. अब यह गाय कितनी विशाल है और कितनी मजबूत है कि कि करोड़ों साल से यह धरती का बोझ अपने सिंग पर उठाये हुए है ? जब सिंग पर धरती है तो खाती कैसे होगी और पागुर कैसे करती होगी ? खाने और पागुर करने के समय तो सिर भी हिलता रहता है, तब उस समय धरती को कौन थामे रहता है ?
कभी कहते हैं कि धरती शेषनाग के फन पर खड़ी है. अब आप ही बतलाइये कि यह शेषनाग भी कहां रहता है और कितना विशाल है कि कि चुपचाप पड़े हुए धरती का भार उठाये हुए है ? सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि अंतरिक्ष में मनुष्य कहां से कहां तक चला गया. चांद, मंगल, शुक्र, वृहस्पति और शनि के भी चक्कर लगा लिए, पर आज तक न कहीं गाय दिखाई पड़ी, और न ही शेषनाग.
ब्रह्मा के तो ऐसे-ऐसे कारनामे हैं कि घिन्न आती है. अब आप ही सोचिये, यह ब्रह्मा कभी मुंह से आदमी पैदा करता है, कभी छाती या बांह से, कभी जंघा से, और कभी पांव से. इसका मतलब हुआ कि ब्रह्मा का पुरा शरीर ही गर्भाशय है, और अब अगर ऐसा ही है, तो फिर वीर्य किसका है, और कैसे डाला गया ? क्योंकि, बिना वीर्य के तो गर्भाशय में बच्चा पलेगा नहीं. मुझे तो लगता है कि ऐसी कल्पना करने वाले भी बड़े मूर्ख थे, जिन्होंने कल्पना भी की तो गलत.
अब आगे देखिये, एक कोई ऋषि हुए थे अगस्त. अब उनको ऐसा क्रोध आया कि अंजुली में मुंह लगाकर ही समुद्र सोख गये. शायद इसी को गागर में सागर कहते हैं. इतनी बेवकूफी भरी कल्पना तो कोई पागल ही कर सकता है. यहां सोचने की बात है कि अगस्त ऋषि कितने विशाल होंगे कि सागर का पूरा पानी ही पी गए, और वह भी खारा पानी !
एक से एक पागलपन भरी कल्पनाएं हैं. कोई मछली से पैदा हो रहा है, तो कोई हिरणी से, कोई घड़ा से, कोई पसीने से, किसी बच्चे के कटे सिर पर हाथी का सिर फिट कर दिया जाता है, कोई मोर की सवारी करता है, कोई शेर की, कोई गदहा की, कोई ऊल्लू की, कोई हंस की तो कोई चुहे की.
कोई स्त्री मंत्रोच्चारण के माध्यम से सुर्य को बुलाकर उससे संभोग कर बच्चा पैदा करती है, तो कभी धर्मराज से, कभी पवन से, और कभी इन्द्र से. कोई खीर खाकर गर्भवती हो जाती है, तो कोई अग्नि के हवन कुंड से. खुद गंगा भी स्त्री रूप धारण कर आठ बच्चों की मां बनती है. कोई मटके से एक साथ सौ बच्चे को जन्म देती है. कभी कोई पूरी धरती को अपने तीन डेग से ही नाप देता है, आखिर वह कितना ऊंचा होगा ?
ऐसी ही मनगढंत कथा-कहानियों से हमारे धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं. इतना न झूठ बोला गया है कि लोग झूठ पर ही विश्वास करने लगे हैं. इसी झूठ के सहारे आज तक लोगों से मंदिरों में पत्थर पूजवाए जाते हैं, और उसके लिए पैसे भी लिए जाते हैं. यह सब कुछ लोगों को मानसिक रूप से विकृत करने और उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए मूर्ख और गुलाम बनाये रखने की साजिश है.
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