सांप हमें काटना नहीं चाहते फिर भी भारत जैसे विशाल देश में हर साल 46 हजार से ज्यादा सर्प दंश की घटनाएं होती हैं. इनमें से कुछ लोगों की मौत भी हो जाती है. इसके बदले में जहां भी सांप दिखता है, लोग उन्हें मारने के पीछे दौड़ पड़ते हैं. हर साल लाखों सांप इसी तरह इंसानों के हाथों मारे जाते हैं. कुछ गलतफहमियों को अगर दूर कर लिया जाए तो सांपों की जान भी बच सकती है और हम इंसानों की भी. इस लेख में हम इसी पर बात करेंगे.
गुनाह बेलज्जत सुना है ? यानी गुनाह भी करो और उसका कोई फायदा भी नहीं हो ! सांपों के लिए हम इंसानों को काटना ऐसा ही है इसीलिए वे हमें काटना नहीं चाहते. बल्कि, जब भी हमारे साथ उनका सामना होता है वे तुरंत भागकर वहां से दूर निकल जाना चाहते हैं. जब नहीं निकल पाते हैं तो चेतावनी देते हैं कि मुझसे दूर रहो. वे नहीं चाहते हैं कि हम उनके पास जाएं. इसके बाद भी जब उन्हें लगता है कि अपनी जान बचाने के लिए उनके पास कोई और तरीका नहीं है तब ही वे सर्प दंश करते हैं.
सांप आमतौर पर चेतावनियां देकर हमें दूर रहने का अल्टीमेटम देते हैं. क्या हैं वे चेतावनियां ? सांपों को पहचानना बहुत जरूरी है. यह इंसान और सांप दोनों के ही लिए बेहद जरूरी है. उन्हें पहचानकर और उनसे सुरक्षित दूरी बरतकर, जरूरी ऐहतियात लेकर इंसान और सांप दोनों की ही जान बच सकती है. लेकिन, सवाल यह है कि उन्हें पहचाना कैसे जाए ?
यह एक बहुत ही टेढ़ी खीर है. क्योंकि, केवल हमारे देश में ही सांपों की तीन सौ के करीब प्रजातियां पाई जाती हैं जबकि, दुनिया में इनकी तीन हजार प्रजातियां पाई जाती हैं. ऐसा भी नहीं है कि दुनिया भर के सभी सांपों की प्रजातियों की पहचान हो चुकी है. क्योंकि, हाल के दिनों में ही इनकी कुछ नई प्रजातियों की पहचान हुई है. हमारे भारत में भी. इसलिए ऐसा भी संभव हो सकता है कि कुछ सर्प प्रजातियां अभी भी हम मनुष्यों द्वारा चिह्नित करने से बची रह गई हों !
सांप कुदरत का अनूठा करिश्मा है. हाथ नहीं है. पैर नहीं है फिर भी वे पानी पर बहुत ही कुशलता से तैर सकते हैं. पेड़ों पर बहुत ही जांबाजी से चढ़ सकते हैं. यहां तक कि कुछ सांप तो हवा में ग्लाइड करके कुछ दूरी तक उड़ने जैसा आभास भी देते हैं. आंखों से लगभग अंधा होने के बावजूद उन्हें अपने शिकार का पूरा आभास होता है. मुंह बंद होने के बावजूद उनके होंठों से बाहर आने वाली दोमुंही जीभ उन्हें अपने आसपास के परिदृश्य का बेहद सटीक अंदाजा देती है.
सांप ईको सिस्टम के लिए बेहद जरूरी हैं. वे मांसाहारी होते हैं और बहुत सारे चूहों व अन्य रोडेंट्स, छिपकलियों, मेंढकों आदि की तादाद को संतुलित करते हैं. उन्हें किसानों का मित्र कहा जाता है क्योंकि, किसानों की फसल का बड़ा हिस्सा चूहे चट कर जाते हैं, ऐसे में चूहों की रोकथाम करके वे किसानों की मदद करते हैं. ऐसे में सांपों के बारे में जानना और उनके व्यवहार को समझना बेहद जरूरी हो जाता है.
कुछ सांपों के पास रासायनिक हथियार होते हैं, यानी जहर, विष. इसे वे अपने दांतों यानी विषदंत के जरिए अपने शिकार के शरीर में डाल देते हैं. अलग-अलग सांप के विष की प्रतिक्रिया अलग-अलग शरीरों पर अलग-अलग होती है. लेकिन, नतीजा लगभग एक जैसा ही होता है. अब सवाल है कि भारत में ही पाई जाने वाली तीन सौ के लगभग प्रजातियों के सांपों को आखिर पहचाना कैसे जाए ? मेरी समझ से इसका जवाब है कि सभी सांपों को आप भले ही न पहचानें लेकिन कुछ खास सांपों को जरूर पहचाना जाना चाहिए.
आप लोगों ने रैटल स्नेक के बारे में जरूर सुना होगा. यह अमेरिका में रहता है. जब यह अपने आसपास कोई खतरा देखता है तो उसे खुद से दूर रहने की चेतावनी जोर-शोर से देता है. हर बार केंचुल उतारते समय उसका एक छल्ले जैसा इसकी पूंछ पर लगा रह जाता है, जिससे एक झुनझुना-सा बन जाता है. अपने पूंछ के इस झुनझुने को बजाकर वह कहता है कि मुझसे दूर रहो. मेरे पास मत आओ.
इसी तरह से, अफ्रीका में स्पिटिंग कोबरा पाए जाते हैं. यह कोबरा अपने जहर को फुहार की तरह छोड़ता है. उसका कहना है कि मुझे मजबूर मत करो. मैं तुम्हें काटना नहीं चाहता लेकिन, अगर तुम मुझसे दूर नहीं रहोगे तो तुम्हें नुकसान हो सकता है. स्पिटिंग कोबरा काफी सटीक निशाना साधकर चेहरे पर विष थूक सकते हैं. इससे आंखों को नुकसान पहुंचता है इसलिए वे पहले ही चेतावनी दे देते हैं.
हमारे यहां के नाग को ही लीजिए. वह हमें कभी भी काटना नहीं चाहता है. जब भी उसे खतरा महसूस होता है तो सबसे पहले तो वह अपने फन को काढ़कर दिखाता है. कहता है कि मुझसे दूर रहो. मेरे पास मत आओ. बीच-बीच में वह फुंफकार मारता है. डराने की कोशिश करता है. उसकी वह फुंफकार किसी के भी रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी होती है. इसके अलावा भी कई बार जब काटता है तो फाल्स बाइट करता है. यानी दांत तो गड़ा देता है लेकिन उसमें विष नहीं छोड़ता या फिर कम मात्रा में विष छोड़ता है. इससे इंसान की मौत नहीं होती है.
हमारे देश में जहरीले सांपों की मुख्यतः चार प्रजातियां पाई जाती हैं. इन्हें बिग फोर कहा जाता है. इसमें से नाग को तो हम उसके फन से और फन के पीछे पाए जाने वाले निशान से पहचान सकते हैं. इसके साथ ही जरूरी है कि रसेल वाइपर, सॉ स्केल्ड वाइपर और करैत को भी पहचाना जाए.
भारत में पाए जाने वाले जहरीले सांपों में शरीर की तुलना में रसेल वाइपर के विषदंत सबसे ज्यादा बड़े होते हैं. इससे वह जहर की ज्यादा मात्रा भी शरीर में डालता है. इसके चलते इसका दंश भी बेहद खतरनाक होता है लेकिन, रसेल वाइपर भी किसी इंसान को काटने से पहले तमाम चेतावनियां देता है.
वह अपने पूरे शरीर को सिकोड़ लेता है. अपने मुंह को शरीर में छिपाए रखता है और मुंह से कुकर की सीटी जैसी आवाज निकालता है. इस आवाज के जरिए वह संदेश देता है कि मुझसे दूर रहो. मेरे करीब मत आओ. लेकिन, अक्सर ही उसकी इस चेतावनी को अनदेखा कर दिया जाता है और नतीजे घातक होते हैं.
रसेल वाइपर की तरह ही सॉ स्केल्ड वाइपर का दंश भी बेहद घातक होता है लेकिन, यह भी काटने से पहले चेतावनी देता है. इसके शरीर पर उभरे हुए शल्क होते हैं. जब वह खतरे में होता है तो अपने शरीर को सिकोड़कर इन शल्कों को इस तरह से रगड़ता है कि उसके शरीर से खड़-खड़ की ध्वनि निकलती है. इस ध्वनि के जरिए वो खुद से दूर रहने की चेतावनी देता है. जरूरी है कि उसकी इस चेतावनी को सुना जाए. उसे नजरअंदाज नहीं किया जाए.
बिग फोर में शामिल करैत ही एक सांप है जो इतना ज्यादा स्पष्ट तरीके से चेतावनी नहीं देता. बल्कि, सर्प दंश को लेकर उसके बर्ताव को काफी कुछ रहस्यमयी माना जाता है और उसके बारे में लगातार अध्ययन किए जा रहे हैं. इसलिए इस विषय में और जानकारी जुटाने के बाद फिर कभी विस्तार से बात की जाएगी।
महत्वपूर्ण यह है कि इस पोस्ट के साथ दी गई तस्वीर को ध्यान से देखें. ये भारत के बिग फोर हैं. सर्प दंश के चलते होने वाली ज्यादातर मौतों के लिए यही जिम्मेदार हैं. इसलिए जरूरी है कि इन्हें आप पहचानें. नाग को उसके फन से कोई भी पहचान सकता है. जबकि, रसेल वाइपर और सॉ स्केल्ड वाइपर के शरीर के पैटर्न पर अगर थोड़ा गौर फरमाएंगे तो आसानी से अन्य सांपों से अलग इन्हें पहचान सकते हैं.
इसी प्रकार, कॉमन करैत का शरीर पतला और लंबा होता है. और इसके शरीर पर लगभग सफेद धारियों वाले छल्ले पड़े होते हैं. ये छल्ले गर्दन के बाद शुरू होते हैं और आमतौर पर दोहरी लकीरों वाले होते हैं. अगर आप इन्हें पहचान सकें तो सांप और इंसान दोनों की ही मदद कर सकते हैं.
एक और बात. सांप हमें काटना क्यों नहीं चाहते हैं ? क्योंकि, सांपों के लिए विष शिकार का एक साधन है. वे उसी पर अपना विष आजमाते हैं जिसको निगल सकें. इंसानों को वे निगल नहीं सकते इसलिए इंसानों के शरीर में डाला गया विष बेकार हो जाता है. यह विष की बर्बादी है. आत्मरक्षा में वे ऐसा करते तो हैं, लेकिन करना नहीं चाहते. यही गुनाह बेलज्जत है…!
- कबीर संजय
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