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अब रंग ला रहा है सेना-पुलिसकर्मियों से माओवादियों की अपील

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देश की तमाम आम गरीब मेहनतकश जनता के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हुए भारत की कम्युनस्टि पार्टी (माओवादी) ने भारत की क्रूर नरभक्षी सत्ता के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया है. उनका यह जंग 1967 में पहली बार बंगाल के नक्सलबाड़ी से घोषित की गई थी, जो आज बढ़ते हुए देश के तमाम हिस्सों में पहुंच गया है.

इस जंग के बीच भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का स्पष्ट मानना है कि भारत सरकार की ओर से देश की आम मेहनतकश जनता पर क्रूर हमला, बलात्कार, हत्या जैसे नृशंस जुल्म ढ़ाने वाले सेना-पुलिस के कर्मी भी गरीब मेहनतकश जनता के ही बेटे हैं, जो केवल चंद रूपयों खातिर धन्नासेठों के हित में अपने ही लोगों पर जुल्म ढ़ाते हैं.

यही कारण है कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की ओर से लगातार देश की सेना-पुलिस के लिए अपील जारी करती है और उन्हें अपना वर्ग भाई बताते हुए जनता पर हमला न करने और अपने हथियार का निशाना शासक वर्ग की ओर मोड़ देने का गुजारिश करती आ रही है. न केवल अपील ही जारी करती है बल्कि जंग के दौरान बंदी बना लिये गये सेना-पुलिस के जवानों के साथ भाईचारा वाला भाव ही रखती है. उसकी चिकित्सा सुविधा भी करती है.

इसका परिणाम अब खुल कर सामने भी आ रहा है. खबरों के अनुसार सेना-पुलिस में महज रोजगार हेतु भर्ती हो रहे कर्मी माओवादियों की अपील का समझने लगे हैं और गाहे-बगाहे जंग के दौरान और उसके बाद भी उसका प्रदर्शन करते रहे हैं. लेकिन अब जो खुद भारत सरकार ने स्वीकारा है वह है बड़े पैमाने पर सेना-पुलिस के ये कर्मी जनता पर युद्ध और हमला करने के वजाय सीधे इस्तीफा देकर वापस घर लौट रहे हैं. या अन्य और कोई उपाय न देखकर आत्महत्या जैसा रास्ता भी चुन रहे हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो सेना-पुलिस के जवानों के गले माओवादियों की यह बार-बार की अपील अब गले उतरने लगी है.

खबर के अनुसार भारत सरकार रक्षा बजट में बढ़ोतरी कर रही है, देश की सुरक्षा में तैनात जवानों को बेहतर सुविधाएं दिए जाने का दावा किया जा रहा है. लेकिन, नौकरी छोड़ने वाले जवानों की बढ़ती संख्या कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. पिछले तीन साल में पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों में नौकरी छोड़ने का ट्रेंड लगभग 4 गुना तक बढ़ गया है. पिछले 3 साल में 14,587 अधिकारियों और जवानों ने स्वैच्छा से अर्धसैनिक बलों की नौकरी छोड़ी है. यह आंकड़ा साल 2015 से 2017 का है.

गृह मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल के 14,587 जवानों और अधिकारियों ने स्वैच्छिक रिटायरमेंट लिया है. जबकि 2015 में यह आंकड़ा 3425 ही था.

आंकड़ों को बारीकी से देखा जाए तो सीआरपीएफ और बीएसएफ के जवानों में नौकरी छोड़ने का ट्रेंड सबसे ज्यादा है. 2015 में सीआरपीएफ के 1376 जवानों ने नौकरी छोड़ी, जबकि 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 5123 पर पहुंच गया. यही हाल बीएसएफ के जवानों का भी रहा. आंकड़े बताते हैं कि 2015 में 909 बीएसएफ जवानों ने नौकरी छोड़ी, वहीं 2017 में यह आंकड़ा 6400 को पार कर गया.

वहीं एक अन्य खबर के अनुसार पिछले पांच साल ( वर्ष 2018 से 2022) में सीआरपीएफ के 50,155 जवानों ने नौकरी छोड़ दी है. इसका खुलासा केन्द्रीय गृह मंत्रालय की ओर से एक संसदीय पैनल को उपलब्ध कराए गये आंकड़ों से हुआ है. इसमें सबसे अधिक 11,884 सीआरपीएफ के कर्मियों ने वर्ष 2022 में नौकरी छोड़ी है. वहीं 654 कर्मियों ने आत्महत्या कर लिया.

सीआरपीएफ के अलावा अन्य केन्द्रीय बलों के कर्मियों भी नौकरी को लात मारकर वापस घर लौट रहे हैं. वर्ष 2021 में असम रायफल्स के 123 कर्मियों ने नौकरी छोड़ दी. जिसकी संख्या 2022 में बढ़कर 537 हो गई. वहीं सीआईएसएफ में नौकरी छोड़ने वाले कर्मियों की संख्या 2021 में 966 थी जो वर्ष 2022 में बढ़कर 1706 हो गई है.

गौरतलब हो कि एक ओर तो माओवादियों के सैन्य दस्ते पीएलजीए लगातार शासक वर्ग के कारिंदों के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध दर्ज कर रहे हैं, वहीं वे उनसे लगातार अपील भी जारी कर रहे हैं, जिसका एक बेहतर फल मिल रहा है.

माओवादी बार-बार अपने अपील में कहते हैं कि सेना-पुलिस के कर्मी, हमारे भाई-बंधु आपके लिए हमारा एक आह्नान है. आपका आंख-कान, दिमाग है और आप देख-सुन रहे हो और दिमाग के जरिए सोंच भी पा रहे हो कि देश में अमीर और गरीब के बीच खाई रोज दिन बढ़ते ही जा रही है. महंगाई और बेरोजगारी में भारी वृद्धि हुई है तथा हो रही है. मजदूर रोज दिन नौकरी खो रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, शिक्षा का व्यवसायीकरण व भगवाकरण के कारण गरीब घर के लड़का-लड़की शिक्षा से वंचित हो रहे हैं.

दलित आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक, ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी मोदी सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार के दमन अत्याचार का दंश झेल रहे हैं. प्रगतिशील बुद्धिजीवी, पत्रकार, साहित्यकार, कलाकार भी विभिन्न प्रकार के दबाव-धमकी, मार-पीट, गिरफ्तारी और ऐसा कि हत्या का दंश झेल रहे हैं. अतः आप सोचें कि आप अत्याचारियों के साथ रहेंगे या देश की 90 प्रतिशत जनता के साथ. बंदूक का निशाना साधने के लिए पूर्ववत् ही व्यवहार करेंगे या निशाना पूरी तरह विपरीत दिशा में साधेंगे. आप खुद सोचें और आम जनता के हित में निर्णय लें.

यह एक अच्छा संकेत है कि सेना-पुलिस के कर्मियों ने सोचना शुरू कर दिया है और वह आम जनता के पक्ष में निर्णय लें रहे हैं. उम्मीद तो यह भी की जा रही है कि वे ‘निशाना पूरी तरह विपरीत दिशा में भी साधेंगे.’

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