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नीच से कैसे जीतोगे…?

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नीच से कैसे जीतोगे...?
नीच से कैसे जीतोगे…?
आभा शुक्ला

आप मेरा क्या कर लोगे…! मै हूं ही नीच…!

ज्यादा डिग्री मांगोगे मेरी तो रो दूंगा…! जलील मै हूं ही…! नौटंकीबाज मेरे जैसा दूसरा नहीं…! शर्म मुझे आती नहीं…! धूर्तता मेरी रग रग में है…! हमारीपन में मैं डबल एमए हूं…!

तो क्या ही बिगाड़ लोगे मेरा शोर मचा के…? मेरी सेहत पर घंटा फर्क नहीं पड़ेगा…! और अगर ज्यादा शोर मचाओगे तो कह दूंगा कि मेरी जान को खतरा है…!

अब बताओ…? कैसे जीतोगे मुझसे…?

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‘नीच’ शब्द का अर्थ गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में कुछ इस तरह से परिभाषित किया है –

श्लोक – ‘जेहि तें नीच बड़ाई पावा। सो प्रथमहिं हतिताहि नसावा…’

अर्थात – नीच व्यक्ति वो होता है, जो प्रतिष्ठा पाने के बाद सबसे पहले उसी व्यक्ति को नष्ट करने की कोशिश करता है जिसकी मदद से वो ‘बड़ा’ बनता है.

आपकी ही धार्मिक पुस्तक से उठाया था, सोचा आपके साथ शेयर कर लूं…!

शेयर करने का अभिप्राय आप अपने अनुसार समझ सकते हैं. कुछ चोर की दाढ़ी में तिनका ढूंढ ही लेंगे…!

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ROHIT SHARMA

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