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भारतीय संविधान और संविधान रक्षा करने की प्रतिगामी राजनीति

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भारतीय संविधान के असली लेखक और संविधान रक्षा करने की प्रतिगामी राजनीति
भारतीय संविधान के असली लेखक और संविधान रक्षा करने की प्रतिगामी राजनीति

1947 में जब अंग्रेजी शासकों साम्राज्वादियों ने भारत को ‘आजाद’ करने की घोषणा की थी, तो भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने इस आजादी को ‘झूठी आजादी’ की संज्ञा दी थी. उसने नारा लगाया था- ‘यह आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी है.’ शहीद भगत सिंह ने कांग्रेस द्वारा चलाये जा रहे आजादी के संघर्ष एवं उसकी परिणिति का मूल्यांकन करते हुए कहा था- ‘कांग्रेस जिस तरह आन्दोलन चला रही है, उस तरह से उसका अन्त अनिवार्यतः किसी समझौते से होगा … यदि लॉर्ड रीडिंग की जगह पुरूषोत्तम दास और लॉर्ड इरविन की जगह तेज बहादुर सप्रू आ जायें, तो इससे जनता को कोई फर्क नहीं पड़ेगा और उनका शोषण-दमन जारी रहेगा.’

‘आजाद भारत’ की शासन व्यवस्था को चलाने के लिए एक संविधान सभा को दो कार्य सौंपे गए – (क) भारत के लिए एक संविधान का निर्माण करना और (ख) जब तक एक संसद का गठन न हो जाये, तब तक संसद के रूप में काम करना. इस संविधान सभा में आम जनता के प्रतिनिधियों की भागीदारी नहीं के बराबर थी. इसकी पहली बैठक दिसम्बर 4946 में हुई, जिसकी अध्यक्षता डॉ. सच्चिदानन्द सिंह ने की थी. इस बैठक में मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि शामिल नहीं हुए.

इसकी दूसरी बैठक 11 दिसम्बर, 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई, जिसमें मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि शामिल हुए. बाद में जब मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के लिए अलग संविधान सभा के गठन की मांग की, तो इस सभा का पुनर्गठन करना पड़ा. 6 नवम्बर, 1949 को 299 सदस्यों में से 284 सदस्य उपस्थित थे और उन्होंने ‘आजाद भारत’ के संविधान पर हस्ताक्षर किया. इसके बाद इसे आंशिक रूप से लागू कर दिया गया. वैसे पाठय पुस्तकों में संविधान निर्माण की तिथि 26 नवम्बर, 1949 और इसके लागू होने की तिथि 26 जनवरी, 1950 बतायी जाती है.

भारत के लोगों के अधिकांश हिस्सों में यह जानकारी दी गई है कि डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने संविधान का निर्माण किया लेकिन तथ्य यह है कि प्रेम नारायण रायजादा उर्फ प्रेम बिहारी ने अपने हाथ से अंग्रेजी में भारतीय संविधान की मूल कॉपी लिखी. इस काम में उन्हें कुल छह माह लगे और लिखने में कुल 432 नीबें घिस गई थी. यह पांडुलिपी 233 पन्‍ने की है, जिनका वजन 43 किलोग्राम है. शांति निकेतन के चित्रकारों ने संविधान के कवर से लेकर हर पन्ने को अपनी सुन्दर कला से सजाया.

संविधान का हिन्दी अनुवाद, जो 264 पेज की है, वसंत कृष्ण वैद्य ने तैयार किया, जिसका वजन 44 किलोग्राम है. इसका हैंड मेड कागज रिसर्च सेन्टर पुणे से बना है. बसंत कृष्ण वैद्य एक कैलीग्राफर थे.

प्रेम बिहारी ने संविधान लिखने के एवज में कोई मेहनताना नहीं लिया. लेकिन उन्होंने एक शर्त्त रखी कि हर पन्ने पर अपना हस्ताक्षर और अंतिम पन्‍ने पर अपना एवं अपने दादा जी का नाम लिखूंगा. उन्हें संविधान लिखने का जिम्मा खुद जवाहर लाल नेहरू ने दिया था.

संविधान की पांडुलिपी चमड़े की काली जिल्द में है, जिस पर सोने की कारीगारी की गई है. अंग्रेजी एवं हिन्दी की पांडुलिपियां संसद की लाइब्रेरी में दो विशेष बसों में रखी हुई हैं. इन दोनों बसों में नाइट्रोजन भरी है ताकि पांडुलिपियों में खराबी न आये. ये दोनों पारदर्शी कांच के विशेष बक्से अमेरिका की कैलिफोर्निया की एक कम्पनी से मंगवाये गये थे.

इस संविधान में राष्ट्रपति को एक झंडा दिया गया था, जिस पर सारनाथ का सिंह स्तंभ और कमल कलश, अजंता की गुफाओं का हाथी और लाल किला के तराजू के निशान थे. सिंह स्तंभ एकता, कमल कलश समृद्धि, हाथी शौर्य और शक्ति तथा तराजू अर्थव्यवस्था एवं न्याय के प्रतीक थे. इस झंडे को 26 जनवरी, 1950 को राष्ट्रपति के दरबार भवन में गवर्नर जनरल के झंडे को उतारकर फहराया गया. यानी ‘आजादी’ 15 अगस्त, 1947 को मिली और राष्ट्रपति भवन में 26 जनवरी, 1950 तक ब्रिटिश गर्वनर जनरल का झंडा फहराया जाता रहा.

संविधान जिस कमरे में बनाया गया, वह संविधान क्लब बन गया. भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंट बेंटन (12 फरवरी, 1947 से 15 अगस्त, 1947 तक) ही आजाद भारत के पहले गर्वनर जनरल के रूप में 15 अगस्त, 1947 से 24 जून, 1948 तक काम किया. इसके बाद 22 जून, 1948 से 1950 तक सी. राजगोपालाचारी गवर्नर जनरल बने. वे 1959 में स्वतंत्र पार्टी के संस्थापक भी बने.

सी. राज गोपालाचारी के बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की संवैधानिक नियुक्ति 26 जनवरी, 1950 को की गई. इसके बाद 13 मई, 1952 को उन्हें प्रथम आम चुनाव के बाद (जो 25 अक्टूबर, 1951 से 24 फरवरी, 1952 के बीच हुआ था) राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई.

सी. राज गोपालाचारी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह महात्मा गांधी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था. इस प्रकार वे महात्मा गांधी के समधी थे.

इस संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे और इसकी ड्राफ्टिंग कमिटी (प्रारूप समिति) के अध्यक्ष डॉ. भीम राव अम्बेडकर को बनाया गया था. प्रारूप समिति में अम्बेडकर के अलावा 6 अन्य सदस्य भी शामिल थे.

इस संविधान को भारत की जनता की तरफ आत्मसात किया गया. इसकी प्रस्तावना की शुरूआत ‘हम भारत के लोग’ से की गई. इस प्रस्तावना की मुख्य बातें इस प्रकार हैं –

  1. इसमें न्याय, समता, स्वतन्त्रता एवं बंधुत्व का समावेश किया गया.
  2. भारत को एक पूर्ण सम्प्रभुता सम्पन्न एवं लोकतान्त्रिक गणराज्य घोषित किया गया.
  3. 1976 को आपातकाल के दौरान 42 वें संशोधन के जरिये इसमें (समाजवादी एवं ‘पंथ निरपेक्ष’ पद भी जोड़े गए. इस तरह भारत को एक ‘समाजवादी’ देश बना दिया गया.

इस संविधान के भाग III में देश के आम नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किये गए. संविधान का पहला संशोधन नेहरू सरकार के कार्यकाल में 10 मई, 1951 को ही किया गया. इस संशोधन के जरिये अभिव्यक्ति के अधिकार’ और ‘कानून के समक्ष समानता’ जैसे मौलिक अधिकारों को सीमित किया गया. अब तक इस संविधान में एक सौ से ज्यादा संशोधन किए जा चुके हैं.

डॉ. अम्बेडकर को इस संविधान का निर्माता कहा जाता है और चौक-चौराहों पर हाथ में इस संविधान की किताब लिये उनकी आदमकद मूर्त्तियां भी लगाई जाती हैं लेकिन तथ्य यह है कि खुद डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने 1953 एवं 1955 में इस संविधान को जलाने की बात राज्यसभा में की.

23 सितम्बर, 1953 को (संविधान लागू होने के करीब साढ़े तीन साल बाद ही) उन्होंने कहा- मेरे मित्र मुझसे कहते हैं कि मैंने संविधान बनाया है. लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि इसे जलाने वाला पहला व्यक्ति मैं ही होऊंगा. मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह किसी के लिए अच्छा नहीं है.’ इसके बाद 19 मार्च, 1955 को राज्यसभा में डॉ. अनूप सिंह ने उनके.इस बयान को तब उछाला, जब संविधान के चौथे संशोधन पर चर्चा चल रही थी.

इस संशोधन के जरिये निजी सम्पत्ति के अधिकार को सीमित करना था. तब अम्बेडकर ने जबाब देते हुए कहा- ‘मैं संविधान को जलाना चाहता हूं.– अभी मेरे मित्र ने कहा. पिछली बार मैं जल्दी में था, लेकिन आज मेरे पास मौका है. संविधान को जलाने के पीछे कारण यह है कि हमने भगवान को रहने के लिए मंदिर बनाया कि भगवान आकर उसमें रहने लगें, लेकिन हुआ क्या ? वहां भगवान की जगह राक्षस आकर रहने लगे. हमने यह मंदिर राक्षस के लिए तो नहीं बनाया था. हमने तो इसे देवताओं के लिए बनाया था. अब हमारे पास इसे तोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं है. इसलिए मैंने कहा था कि मैं संविधान को जला देना चाहता हूं.’

सचमुच इस संविधान के तहत हमारे देश में जो बुर्जुआ लोकतंत्र बना, उस पर यहां के सम्राज्यवाद परस्त शोषक वर्ग काबिज हो गए. वे संविधान लागू होने से लेकर आज तक देश की मेहनतकश जनता के खून-पसीने की कमाई को लूटते आ रहे हैं. चाहे कांग्रेस का शासन हो या जनता पार्टी, यूपीए, एनडीए या किसी संयुक्त गठबंधन का. सभी के शासन काल में आम जनता की गाढी कमाई लूटी गई है, उन्हें गरीबी एवं फटेहाली में जीने को बाध्य किया गया है और दूसरी ओर टाटा, बिड़ला, अम्बानी, अडानी जैसे लूटेरे अमीरों को मालमाल किया गया है. आज भारत में गरीबी एवं भूखमरी चरम सीमा पर है और दूसरी ओर अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.

लेकिन आश्चर्य है कि हाल के वर्षों में डॉ. भीम राव अम्बेडकर को कॉर्ल मार्क्स के समकक्ष खड़ा करते हुए ‘जय भीम, लाल सलाम’ के नारे लगाये जा रहे हैं. इसकी शुरूआत जेएनयू के वामपंथी छात्र संगठनों ने की थी, लेकिन आज देश के अधिकांश नक्सलवादी ग्रुपों द्वारा यह नारा लगाया जा रहा है.

अभी हमारे देश में अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक किसान,/फार्मर्स आन्दोलन चल रहा है. इस आन्दोलन के नेतृत्वकारी समूह में वामपंथी एवं नक्सलबाड़ी धारा के कई नेतागण शामिल हैं. इन्होंने भी 14 अप्रैल, 2021 को डॉ. अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर ‘संविधान बचाओ दिवस’ मनाया.

‘जय भीम, लाल सलाम’ का नारा लगाना और ‘संविधान बचाओ दिवस’ मनाना निश्चित रूप से भारतीय वामपंथ एवं क्रान्तिकारी राजनीति के प्रतिगामी कदम हैं. देश का दुर्भाग्य है कि आज देश की अधिकांश क्रांतिकारी ताकतें ‘देश बचाओ’ या ‘भारत बचाओ” के नाम पर शासक वर्गों के संविधान और जनतंत्र बचाने की बात कर रहे हैं. भारत के क्रान्तिकारी धारा के कम्युनिस्टों को ‘लाल सलाम’ और ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के नारों को लोकप्रिय बनाना चाहिए और एक जनपक्षीय संविधान बनाने के लिए नई संविधान सभा की गठन की जोरदार मांग करनी चाहिए.

  • अरूण प्रकाश

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