हिमांशु कुमार
हम कुछ ऐसे लोगों के बारे में इतिहास में पढ़ते हैं, जो आम लोगों से ज्यादा हिम्मत वाले थे. और जिन्होंने ऐसे काम किये उन्हें भूलना मुश्किल है. कई बार लगता है ऐसे लोग हमारे समय में क्यों नहीं होते ? मैं आजकल महसूस करता हूं कि सोनी सोरी एक ऐसा ही व्यक्तित्व है. उदहारण के लिए कल का ही वाकया ले लीजिये.
सोनी को पता चला कि पड़ोस के जिले में तीन गांवों के अनेकों आदिवासियों को अर्ध सैनिक बलों और पुलिस के सिपाहियों नें पीटा है. हालांकि सोनी सोरी को अगले दिन सुबह दिल्ली के लिए निकलना था लेकिन उन्होंने सोचा कि मैं रात तक वापिस लौट कर रायपुर के लिए निकल जाऊंगी.
जो लोग नहीं जानते उन्हें बता दूं कि सोनी सोरी छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के गीदम कसबे में रहती हैं. वहां से नज़दीकी रेलवे स्टेशन रायपुर का है, जो 400 किलोमीटर दूर है.
सोनी सोरी चिंतागुफा गांव में पहुंची. वहां आदिवासियों ने सोनी को बताया कि एक हफ्ते पहले हमारे गांव से बीस लोगों को पुलिस ने पकड़ा था. इन लोगों को थाने में ले जाकर पुलिस ने बुरी तरह मारा. 20 साल की लडकी को निवस्त्र कर के सिपाहियों ने उसके ऊपर बैठ कर पीटा. वह लडकी गर्भवती है उसे रक्तस्राव शुरू हो गया है.
13 आदिवासियों को पीटने के बाद भगा दिया गया, लेकिन सात आदिवासियों को नहीं छोड़ा गया. वे सात आदिवासी अब कहां हैं किसी को नहीं पता. गांव के आदिवासियों ने सोनी से मदद के लिए कहा. आदिवासियों ने कहा – ‘आप हमें कानूनी मदद दीजिये.’
सोनी इन आदिवासियों के साथ रायपुर जाने के लिए निकली. रास्ते में पुलिस ने सोनी सोरी को रोक लिया. सोनी सोरी की गाडी में छह आदिवासी पीड़ित भी थे. पुलिस इन आदिवासियों को अदालत जाने से रोकना चाहती थी. सोनी सोरी की गाडी रोक कर इन आदिवासियों को थाने के भीतर ले जाकर पुलिस ने बहुत धमकाया.
इन पीड़ितों में दो युवतियां हैं, जिनकी उम्र बीस साल से भी कम है. एक बुज़ुर्ग महिला और भी हैं, दो बुज़ुर्ग हैं जो पचास साल से ज्यादा उम्र के हैं. रात भर पुलिस इन आदिवासियों को धमकाती रही कि ‘तुम लोग सोनी सोरी के साथ मत जाओ. तुम लोग बोल दो कि सोनी सोरी हमें ज़बरदस्ती लेकर जा रही है. बोल देना कि सोनी सोरी जंगल में नक्सलियों से मिलने गयी थी.’
आदिवासियों नें कहा कि – ‘नहीं सोनी सोरी को हमने अपनी मदद के लिए बुलाया था. सोनी जंगल में नहीं गयी बल्कि हमारे गांव में हमसे मिलने आई. हम अपनी मर्जी से सोनी के साथ जा रहे हैं.’
आदिवासी डरे नहीं. पुलिस ने सारी रात सोनी सोरी और इन छह आदिवासियों को थाने में रोक कर रखा. अभी यह सभी लोग गीदम पहुंचे हैं. मैं जब इस सब के बारे में सोचता हूं तो मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि कोई व्यक्ति इतना साहसी कैसे हो सकता है ?
आदिवासियों की मदद करने के लिए पुलिस ने चिढ कर सोनी सोरी के निर्दोष पति को पुलिस ने जेल में डाल दिया. जब अदालत ने उसे रिहा करने का आदेश दिया तो पुलिस ने सोनी के पति को पीट पीट कर मार डाला.
सोनी सोरी को पुलिस ने थाने में ले जाकर निवस्त्र करके बिजली के झटके दिए और उसके गुप्तांगों में पत्थर ठूंस दिए. पुलिस के द्वारा इतनी क्रूरता झेलने के बाद भी कोई महिला इतनी निडर हो सकती है, इसी पर मुझे आश्चर्य है.
सारी रात थाने के बाहर छह आदिवासियों के साथ बैठे रहना वो भी उस महिला के द्वारा जिसे पुलिस द्वारा इतनी क्रूरता झेलनी पड़ी हो. थानेदार ने सोनी पर नज़र रखने के लिए चार महिला कांस्टेबल की ड्यूटी लगाईं.
सोनी ने उन चारों महिला कांस्टेबल से कहा कि आप लोग बैठ जाइए पूरी रात खड़े खड़े आप थक जायेंगी. थानेदार ने गुर्रा कर कहा कि ‘नहीं, ये रात भर खडी रहेंगी. ये मेरा हुकुम है.’
सोनी सोरी ने कहा कि थानेदार साहब आप भी तो ड्यूटी पर हैं. फिर आप क्यों कुर्सी पर बैठे हुए हैं ? थानेदार सोनी को घूरता हुआ थाने के भीतर चला गया. यह सब देख कर महिला कांस्टेबल को बहुत आश्चर्य हुआ कि कोई महिला इतनी सह्दृय और हिम्मती कैसे हो सकती है ?
रात में पुलिस कांस्टेबल सोनी से पूछ रही थी – ‘क्या हम भी आपके साथ काम कर सकती हैं ?’ बस्तर में आदिवासी अब मुसीबत में सोनी को ही याद करते हैं. मैं कई बार सोनी से हंसते हुए कहता हूं – ‘भारत माता को तो मैं नहीं जानता लेकिन सोनी अब तुम बस्तर माता बन गयी हो.’
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