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फासीवादी व्यवस्था को भारत में स्थायित्व प्रदान करने के लिए धर्म और छद्म राष्ट्रवाद से बेहतर और क्या हो सकता है ?

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फासीवादी व्यवस्था को भारत में स्थायित्व प्रदान करने के लिए धर्म और क्षद्म राष्ट्रवाद से बेहतर और क्या हो सकता है ?
फासीवादी व्यवस्था को भारत में स्थायित्व प्रदान करने के लिए धर्म और क्षद्म राष्ट्रवाद से बेहतर और क्या हो सकता है ?
राम अयोध्या सिंह

नरेंद्र मोदी जी के अब तक के प्रधानमंत्रित्व काल में कभी भी यह नहीं देखा और नहीं सुना है कि प्रधानमंत्री जी का कोई संबंध किसी पढ़े-लिखे, विद्वान, बुद्धिजीवी, साहित्यकार और वैज्ञानिक से भी है. पर, उनकी मित्रता सूची में भ्रष्ट, लूटेरों, मूर्ख, अज्ञानी, अपराधियों, गुंडों, जालसाजों, घोटालेबाज और भगोड़े भरे हुए हैं. आखिर किसी प्रधानमंत्री का व्यक्तियों की पसंदगी कुछ तो कहता ही है. क्या इसके बाद भी यह साबित करना जरूरी है कि मोदी सरकार अपराधियों की सरकार है, जो पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हित के लिए बहुसंख्यक भारतीयों की जिंदगी और भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है ?

क्या दुनिया को यह पता नहीं है कि भारत के प्रधानमंत्री के संबंध किन लोगों के साथ हैं और वे किसके लिए काम कर रहे हैं ? 56 इंच का सीना और प्रतिदिन अट्ठारह घंटे तक काम करने का मतलब भी अब लोग समझने लगे हैं. प्रधानमंत्री का यह सारा परिश्रम मुट्ठीभर पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हित साधन के लिए ही है. इससे बहुसंख्यक भारतीय जनता को कोई मतलब नहीं है. जनता का मतलब इतना ही है कि अपने आका पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के लिए जो कुछ भी मोदी जी कर रहे हैं, जनता चुपचाप आंख मूंदकर सोयी रहे, इसके खिलाफ कोई आवाज़ न उठाये, कोई आलोचना न करे, कोई संघर्ष या जनांदोलन न करे, बस मोदी का नाम जपती रहे और ताली बजाती रहे. सरकार के काम में जनता की दख़ल किसी भी हाल में असहनीय है. सरकार के काम में जनता का किसी भी तरह का हस्तक्षेप नाकाबिले बर्दाश्त है.

मोदी जी ने बिल्कुल साफ-साफ बंटवारा कर दिया है कि पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों को क्या मिलेगा और जनता को क्या मिलेगा. देश की सारी संपत्ति, संपदा और प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही देश के सारे सार्वजनिक उपक्रम, कल-कारखाने, कंपनियां, निगम और आवागमन के सारे साधनों, रेलवे स्टेशनों, बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर अंबानी और अडानी जैसे पूंजीपति मित्रों का अधिकार होगा, और जनता के लिए गरीबी, भूखमरी, मंहगाई, लाचारी, बेबसी, मूर्खता, अज्ञानता, गाय, गौमूत्र, गोबर, मंदिर, राममंदिर, काशी, मथुरा, उज्जैन और दूसरे तीर्थस्थल, हिन्दू और मुसलमान तथा भारत और पाकिस्तान हैं. इससे अलग कुछ भी देखने के लिए जनता को मनाही है.

मैंने बचपन से ही यह देखा है कि गंदे और गलत काम करने वाले के विरोध में खड़ा होने के लिए लोग अक्सर ही तैयार नहीं होते. पर, किसी गरीब, कमजोर और शरीफ व्यक्ति को समझाने के लिए भीड़ जुट जाती है. गुंडे, बदमाश और लंपटों के विरुद्ध खड़ा होने या आवाज उठाने से लोग हिचकिचाने लगते हैं. एक अजीब माहौल बनाया जाता है, जिसमें सही, शरीफ या कमजोर के पक्ष में शायद ही कोई खड़ा होता है, उल्टे इन्हें ही लोग समझाने लगते हैं कि ‘क्या करियेगा, बदमाश से मुंह लगने से कोई फायदा है ! लंगटा आदमी से दूर रहने में ही भलाई है. आप भी चुप लगा जाईये. इज्जत आपकी जायेगी. लंपट आदमी को इज्जत की क्या परवाह है. शरीफ होकर लंगटा से क्या लग रहे हैं ?’

नतीजा यह होता है कि गलत, गंदे और बदमाश लोगों का मनोबल बढ़ जाता है, और कमजोर, शरीफ, सभ्य और सुशील व्यक्ति हतोत्साहित हो जाता है. लोगों की यह मानसिकता और प्रवृत्ति अंततः बदमाशों को प्रोत्साहित करने का आधार तैयार करते हैं. जब गलत व्यक्ति को यह विश्वास हो जाता है कि उसके खिलाफ कोई बोलने वाला नहीं है, तो उसकी कारगुज़ारियां बढ़ती जाती हैं, और वह बेलौस और बेखौफ होकर गलत रास्ते पर चलता रहता है.

एक तरह से उसे अपने गलत काम की सामाजिक स्वीकृति मिल जाती है. एक बार जब वह अपने दुष्कर्म के लिए स्वीकृति पा लेता है, तो फिर आगे का रास्ता उसके लिए आसान हो जाता है. एक तरह से समाज पर उसका दबदबा कायम हो जाता है, और पूरे समाज को वह हांकने लगता है. वह आगे-आगे बढ़ता जाता है और लोग उसके पीछे-पीछे चलने लगते हैं. इस तरह वह समाज का अगुआ बन जाता है, जो समय के साथ उसे नेता बनाने में सहायक होता है.

यह स्थिति मैंने अपने परिवार, गांव और जवार से लेकर शहरों तथा उससे भी आगे राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर भी देखी है, और यह स्थिति आज भी कायम है. किसी गुंडे या बदमाश के खिलाफ मुंह खोलने के लिए कोई तैयार नहीं होगा, पर गुंडे और बदमाशों के समर्थन में बोलने वालों की भीड़ जुट जाती है. दबंगई के आगे शराफत दम तोड़ देती है. शायद यह भारतीयों के मन में गहरे समाये डर या मानसिक नपुंसकता के कारण होता है, जो किसी को दबंगों के सामने मुंह खोलने की भी इजाजत नहीं देता. भारतीय स्वाभावत: दब्बू और निरुत्साहित होते हैं, जिनके पास इतना भी मनोबल नहीं होता है कि वे गलत को गलत कह सकें.

भारत की इतनी बड़ी आबादी पर इतने अत्याचार और जुल्म होते रहते हैं, पर प्रतिरोध और प्रतिकार के उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं. प्रतिरोध और प्रतिकार का अभाव गलत और गंदे काम करने वाले का मन बढ़ा देते हैं, और मनबढ़ू लोग निशंक भाव से अपने दुष्कर्मों का अंजाम देने लगते हैं. सबसे सहज बोल जो उनके मुंह से निकलेगी वह यही होता है कि ‘अब लंगटा से के बोले जाव. आपन इज्जत बचावे के बा, त ओइसन आदमी से दूरे रहे पड़ी, ना त इज्जत ना बांची.’ इस तरह से हर कोई अपनी इज्जत बचाने के क्रम में सबकी इज्जत गुंडों के हाथों नीलाम कर देता है. आज पूरा भारतीय समाज इसी मानसिकता का खामियाजा भोग रहा है.

अक्सर ही मैंने देखा है कि लोग यह कहते मिल जाएंगे कि भगवान आपका भला करें. भगवान भारत को एक समृद्ध, सुखी और समृद्ध राष्ट्र बनाएं या फिर भगवान ने चाहा तो भारत विश्वगुरु और विश्वशक्ति बनकर रहेगा. इसी तरह की और भी बातें लोगों के मुंह से सुनने को मिलती हैं. लगता है कि भगवान कहने वाले के अधीन हैं जो उनके कहते ही सबका मंगल और कल्याण कर देंगे. उनके कथनानुसार भारत के विकास और इसकी समृद्धि भी भगवान के ही एजेंडे में है और उसकी ही यह जिम्मेवारी भी हैं.

भईया, पहले यह बताओ कि भगवान ने यह जिम्मा खुद ही उठाया है कि किसी ने उसे सौंप दिया है ? यह तथ्य तो कहीं लिखित में है नहीं. कालांतर से ऐसे कहने वाले यही कहना चाहते हैं कि भारत का विकास किसी व्यक्ति, व्यक्तियों और सरकार की जिम्मेवारी नहीं, बल्कि भगवान की है. इसलिए भारत का गरीब और पिछड़ा रहना भी भगवान की ही मर्जी है. इसमें आदमी क्या कर सकता है ?

ऐसे लोग बड़े ही शातिर होते हैं और बड़ी आसानी से अपनी जिम्मेदारी भगवान पर डालकर निश्चिंत हो जाते हैं. अब जब भगवान ही नहीं चाहते तो भला आदमी क्या कर सकता है ? इन धूर्तों के लिए भगवान शब्द ऐसा रक्षा-कवच है, जिसकी आड़ में सारे गुनाह छिपाए जा सकते हैं. क्या भगवान तुम्हारे आका हैं या कि नौकर हैं, जो तुम्हारे आदेश या प्रार्थना सुनते ही लोगों के कल्याण में लग जाएंगे और भारत दुनिया का सबसे सुखी, समृद्ध और विकसित राष्ट्र बन जाएगा ? क्या भगवान अंधे हैं कि उन्हें यह दिखाई नहीं पड़ रहा है कि भारत को कौन लूट रहा है और कौन बेच रहा है ?

क्या भगवान इस तथ्य से अब तक अनजान हैं कि सारे पतितों, लूटेरों, भ्रष्टाचारियों, घूसखोरों, जमाखोरों, मुनाफाखोरों और देश को विनाश के गर्त में धकेलने वाले कौन हैं ? क्या वह इन राष्ट्रद्रोहियों और लूटेरों को अब तक सजा नहीं दे सकता था, या कि भारत से उसे कोई दुश्मनी है कि इसे वह किसी भी हाल में सुखी, समृद्ध और विकसित होने देना नहीं चाहता है ? अगर सचमुच ऐसा होना होता तो न जाने कब का भगवान भारत को आधुनिक, प्रगतिशील, विकसित और शक्तिशाली राष्ट्र बना चुके होते ! क्यों लूटेरों को बचाने के लिए भगवान के मुखौटे का इस्तेमाल कर रहे हो ? सच तो यह है कि ये लूटेरे ही भगवान बने हुए हैं, और भारत को सुखी, समृद्ध, खुशहाल, संपन्न और विकसित राष्ट्र बनाने के लिए इन लूटेरे भगवानों को ही मारना होगा.

कर्नाटक के बंगलुरू शहर में मलाली मस्जिद को संघी और भाजपाई हिन्दू गुंडों ने अपने कब्जे में लेकर वहां पूजापाठ शुरू कर दी, और मुसलमानों को भविष्य में वहां नमाज पढ़ने पर पाबंदी लगा दी है. यह सब राज्य की राजधानी में सरकार की नाक के नीचे हुआ और प्रशासन तमाशबीन बना रहा. सांप्रदायिकता का यह खेल आखिर कहां तक जायेगा ? सच्चाई तो बस यही है कि भाजपा के लिए चुनावी राजनीति का आधार ही सांप्रदायिकता है.

मतदाताओं का सांप्रदायिकता ध्रुवीकरण के माध्यम से अपने पक्ष में गोलबंदी और लामबंदी एक मात्र राजनीतिक रणनीति भाजपा के पास है. कर्नाटक में इसी साल विधानसभा का चुनाव होने जा रहा है, और 2024 में लोकसभा का चुनाव है. इन चुनावों में अपनी सफलता सुनिश्चित करने के लिए ही भाजपा अपने सांप्रदायिक एजेंडे को तीव्रता से अमलीजामा पहना रहा है. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के माध्यम से फासीवादी व्यवस्था को भारत में स्थायित्व प्रदान करने के लिए धर्म और क्षद्म राष्ट्रवाद से बेहतर और क्या हो सकता है ?

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