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स्वघोषित ईसा मसीह को सूली पर चढऩे कहा गया तो जान बचा थाने में जा छुपा

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स्वघोषित ईसा मसीह को सूली पर चढऩे कहा गया तो जान बचा थाने में जा छुपा
स्वघोषित ईसा मसीह को सूली पर चढऩे कहा गया तो जान बचा थाने में जा छुपा

अफ्रीका के केन्या में एक ईसाई पादरी अपने चर्च के भक्तों के बीच यह दावा करते रहता था कि वह ईसा मसीह है. दावा तो अच्छा था, इसके चलते अंधभक्तों को एक रोजगार मिल गया रहता, और वे इस पादरी के पैरों पर पड़े रहते, लेकिन अफ्रीकी कम पढ़े-लिखे और पिछड़े जरूर दिखते हैं, लेकिन वे अधिक समझदार निकले. उन्होंने यह तय किया कि अगर यह पादरी ईसा मसीह है तब इसे आने वाले ईस्टर त्योहार पर ईसा मसीह की जिंदगी की तरह सूली पर चढ़ा देना चाहिए. और जिस तरह ईसा मसीह उसके तीसरे दिन फिर से जिंदा होकर लोगों के बीच आ जाएंगे.

अब उन्होंने इस पादरी से जिद करना शुरू किया कि चूंकि वह ईसा मसीह है, इसलिए उसे सूली पर चढऩे में दिक्कत नहीं होनी चाहिए क्योंकि वह तीन बाद जिंदा होकर लौट आएगा. अब ऐसे में यह पादरी भागकर पुलिस तक गया, और उसने कहा कि उसे अपने मानने वालों से अपनी जान को खतरा है. उसने कहा कि खासकर आने वाली ईस्टर को देखते हुए साल के इस वक्त में वह डरा-सहमा है. केन्या से आई खबरें बताती हैं कि उसके समुदाय के लोग सिर्फ यही चाहते थे कि वह जो दावा करता है उसे साबित करे ताकि वे भी जान सकें कि सच क्या है ! इस पादरी के बहुत से मानने वाले हैं, और उसने एक चमत्कार दिखाते हुए कुछ समय पहले शादी के एक समारोह में पानी को चाय में बदल दिया था.

ईश्वरीय, जादुई और चमत्कारी दावे करने वालों का यही हाल करना चाहिए. इस पादरी के साथ किसी ने हिंसा शुरू भी नहीं की थी, और दहशत में इसके होश ठिकाने आ गए. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगातार भारी चर्चा में बने रहने वाला, दावे करने वाला और लोगों के तौलिए उतारने वाला एक पाखंडी बाबा अभी बुरी तरह उजागर हुआ जब उसका भाई एक पिस्तौल लेकर एक दलित परिवार की शादी में गया, और बजते हुए संगीत का विरोध करते हुए उसने लोगों को गंदी गालियां दीं, धमकाया और परले दर्जे की दलित प्रताड़ऩा की.

दूसरी तरफ यह बाबा जो कि नाटकीय और जादुई अंदाज में करिश्मे दिखाने का दावा करता है, बीमारियां ठीक करने का दावा करता है, अपने भाई की इस करतूत से अनजान बैठा हुआ था. पूरे वारदात का वीडियो सामने आने के बाद अब भाई गिरफ्तार है, और बाबा की बोलती बंद है. वरना अभी पिछले ही हफ्ते की बात है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और भूतपूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सारे विवादों के बीच भी जाकर इस बाबा के पैरों पर बैठे थे, और एमपी के गृहमंत्री भी बाबा की चरणरज पाकर धन्य थे.

ऐसे ताकतवर बाबा का भांडाफोड़ करने के लिए भी एक वारदात काफी थी, और कुछ तर्कवादियों ने यह सवाल खड़ा कर दिया था कि त्रिकालदर्शी होने का दावा करने वाला यह बाबा अपने ही भाई के जुर्म को नहीं देख पाया, और अपने असर से भाई को ही ऐसा गंदा जुर्म करने से नहीं रोक पाया. लोगों को याद होगा कि एक लडक़ी के साथ बलात्कार के जुर्म में जेल में बंद आसाराम को हिन्दुस्तान की किसी अदालत ने जमानत और पैरोल के लायक भी नहीं पाया.

एक दूसरा बाबा, फिल्मी सितारों जैसी नौटंकी से जीने वाला राम-रहीम भी बलात्कार और दूसरी हिंसा के जुर्म में जेल काट रहा है, और सरकार और अदालत की मेहरबानी से बार-बार लंबी-लंबी पैरोल पा रहा है. इसी तरह का एक बाबा रामफल पुलिस कार्रवाई के खिलाफ हिंसा के जुर्म में जेल में पड़ा हुआ है. बहुत से और बाबा या दूसरे पादरी अब तक भांडाफोड़ से बचे हुए हैं, और जेल के बाहर हैं.

लोगों की जिंदगी को इस तरह के धार्मिक पाखंडी जिस हद तक बर्बाद करते हैं, उसके खिलाफ विज्ञान और इंसानियत पर भरोसा रखने वाले लोगों को खड़ा होना चाहिए. लेकिन दिक्कत यह है कि बेंगलुरू से लेकर पुणे तक जो सामाजिक आंदोलनकारी पाखंड के खिलाफ खड़े होते हैं, उन्हें या तो मार डाला जाता है, या अनगिनत मुकदमों में अदालत में घसीट दिया जाता है.

सरकारों का हाल यह है कि कई पार्टियों की सरकारें आईं-गईं लेकिन गौरी लंकेश या गोविंद पानसारे के कातिलों का अब तक कुछ पता भी नहीं चला है. अब ऐसे में पड़ोस के पाकिस्तान में होने वाली धर्मान्ध हत्याओं और हिन्दुस्तान में होने वाली ऐसी अंधविश्वासी हत्याओं में फर्क क्या है ?

दिक्कत यह भी है कि हिन्दुस्तान में अनगिनत नेता, अफसर, जज, और बड़े-बड़े मीडिया मालिक ऐसे ही बड़े-बड़े पाखंडियों के भक्त हैं, और सरकारें वोटरों से इस कदर सहमी रहती हैं कि वे किसी पाखंड के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं करतीं हैं.

अभी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पिछले हफ्ते ही अखबारों के पूरे पहले पन्ने पर एक स्वघोषित चमत्कारी बाबा का ईश्तहार छपा जिसमें बड़ी-बड़ी लाइलाज बीमारियों को चमत्कार से ठीक करने का दावा किया गया. इस बाबा की तारीफ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बयान छपा, और अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन की तस्वीर छपी. अमरीकी सरकार की सीनेट में इस बाबा के स्वागत का दावा करते हुए गोरे लोगों की एक फोटो छपी, लेकिन पुलिस में शिकायत करने के बावजूद पुलिस ने इस गैरकानूनी दावे के खिलाफ कुछ नहीं किया.

दावा करने वाले बाबा को यह भी होश नहीं है कि अमरीकी सरकार अलग है, और वहां की सीनेट अलग है. अमरीका में सरकार की सीनेट जैसी कोई चीज नहीं है लेकिन पुलिस में शिकायत करने वाले छत्तीसगढ़ के एक अकेले अंधविश्वास-विरोधी आंदोलनकारी डॉ. दिनेश मिश्र ने समय रहते पुलिस को बताया, लेकिन उनकी बात अनसुनी रह गई. पिछले बरस भी इसी बाबा के ऐसे ही पाखंडी कार्यक्रम में इलाज के चमत्कारी दावे के खिलाफ उन्होंने शिकायत की थी, और उस पर उनका बयान लेने पुलिस ने उनसे दस महीने बाद संपर्क किया था, जबकि बाबा का कार्यक्रम चार दिन में निपट चुका था.

हिन्दुस्तान में सरकार हांकने वाली पार्टियां इस कदर अनैतिक हो चुकी हैं कि वोटों के अलावा उन्हें कुछ भी नैतिक नहीं लगता. ऐसे में लोगों को ही अदालतों में जाकर बाबाओं के साथ-साथ उनके चरणों पर पड़े हुए मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को भी उजागर करना चाहिए. जिनकी जिंदगी की सांस वोटों से चलती है, उनसे कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती. उन्हें कटघरे में घसीटने से कम कुछ नहीं किया जा सकता. लेकिन सवाल यह है कि डॉ. दिनेश मिश्र जैसे एक व्यक्ति को प्रदेश के सारे अंधविश्वास से लडऩे का जिम्मा देकर फिर पूरा प्रदेश पाखंडियों के प्रवचन में मंजीरा बजाता रहे, तो इससे बात बननी नहीं है.

यह सिलसिला इसलिए खत्म करना चाहिए कि ऐसे बाबा लोगों से संघर्ष की इच्छाशक्ति छीन लेते हैं, उन्हें चमत्कारों में बांध लेते हैं, और यह एक बड़ी वजह रहती है कि सत्ता पर काबिज नेता, और अफसर उन्हें यह पाखंड जारी रखने देते हैं क्योंकि इससे जनता बेअसर होते चलती है, और वह संघर्ष के बजाय एक निरर्थक भक्ति को ही सारा समाधान मान लेती है. सत्ता के ऐसे संरक्षण के खिलाफ और अधिक लोगों को उठ खड़ा होना चाहिए.

अफ्रीका के केन्या में जब लोग इस पाखंडी और स्वघोषित ईसा मसीह के खिलाफ उठ खड़े हुए, और उसे सूली पर चढऩे के लिए कहा, तो उसके सारे दावों की हवा निकल गई, और अपनी ही भक्तों को छोडक़र वह पुलिस थाने में जा छुपा. हिन्दुस्तान में भी जगह-जगह ऐसे बाबाओं को घेरकर सवाल होने चाहिए, उनके अवैज्ञानिक और गैरकानूनी चमत्कारी दावों पर उनके खिलाफ रिपोर्ट होनी चाहिए, तब जाकर देश की जनता को अंधविश्वास के शिकंजे से निकाला जा सकेगा.

  • सुनील कुमार

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