गिरीश मालवीय
वेदांता वाले अनिल अग्रवाल तो देश के बहुत बड़े दानदाता बनते थे, उनको पैसे की कौन सी कमी पड़ गयी भाई ? जी हां, आप चौंक जाएंगे जब आप आपको पता चलेगी इनसाइड स्टोरी ऑफ़ वेदांता. वेदांता के पास दो सोने के अंडे देने वाली मुर्गियां है – एक है बालको और दुसरी है हिंदुस्तान जिंक.
आज वेदांता मुश्किल में है. वेदांता के शेयर लगातार गिर रहे हैं. दरअसल अपनी उधारिया चुकाने और एक्स्ट्रा फंड जुटाने के लिए अपनी कंपनी की कुछ हिस्सेदारी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को बेचना चाहती हैं, लेकिन सरकार ने उसे ऐसा करने से रोक दिया है.
दरअसल मोदी सरकार खुद अपना हिस्सा बेचना चाह रही है इसलिए अभी उसने अभी अग्रवाल जी को अपने बैड एसेट की खरीद हिंदुस्तान जिंक से करवाने से रोक दिया है. सरकार की हिंदुस्तान जिंक में 29.54 फीसदी हिस्सेदारी है और वेदांता के पास हिंदुस्तान जिंक में 64.92 फीसदी हिस्सेदारी है.
पर सन 2000 में ऐसा नहीं था. अटल सरकार ने भारत अल्यूमीनियम कंपनी लि. (बाल्को) तथा हिंदुस्तान जिंक लि. अनिल अग्रवाल को ओने पौने दाम में बेच दिए. अनिल अग्रवाल मेटल के स्क्रैप का बड़ा धंधा करते थे. उनके पास स्टरलाइट कम्पनी हुआ करती थी.
अटल बिहारी की सरकार ने विनिवेश मंत्रालय बनाकर अनिल अग्रवाल को बाल्को के 51 फीसदी शेयर मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ मात्र 551.5 करोड़ रुपये में दिए थे. इस पर भी खूब बवाल हुआ था और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. इसके विरोध में बाल्को में 67 दिन की हड़ताल चली.
कारवां ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि वेदांता ने बालको के अंतर्गत 2009-10 से 2016-17 की अवधि के सात में से पांच वर्षों में 8674 करोड़ रुपए के बराबर के उत्पादन की कम रिपोर्ट बनाई और सरकार को जमकर चूना लगाया.
हिंदुस्तान जिंक यानी HZL की कहानी और भी दिलचस्प है. आज भी ये कम्पनी दुनिया की टॉप-3 जिंक खनन कंपनियों में से एक है. हिंदुस्तान जिंक की शुरुआत 1966 में हुई थी. यह दुनिया की 10 प्रमुख चांदी उत्पादक कंपनियों में भी शामिल है.
वर्तमान में, यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ओपन-पिट खदान और राजस्थान के रामपुरा अगुचा में दुनिया की सबसे बड़ी जिंक खदान का संचालन करती है, जिसमें कुल जस्ता और सीसा उत्पादन क्षमता 10 लाख टन है.
2002 में अटल सरकार ने रणनीतिक विनिवेश की योजना के तहत इसकी 26% हिस्सेदारी अनिल अग्रवाल को बेचने का फैसला किया. अनिल अग्रवाल ने 26% शेयर सरकार से और 20% आम शेयरधारकों से खरीदे थे. 2003 में सरकार ने उसे 18.92% और शेयर बेच दिए.
इस तरह से 64 फीसदी शेयर खरीदने में अनिल अग्रवाल को महज 1500 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ा, जबकि उस समय इसका बाजार मूल्य करीब एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर था.
दरअसल HZL के अधिपत्य में जो खदानें थी, उसमें हजारों करोड़ का खनिज था. डील के वक्त कंपनी के पास 117 मिलियन टन खनिज रिजर्व में था. इसका खुलासा सौदे में हुआ ही नहीं था. बाद में, लंदन मैटल एक्सचेंज ने 117 टन खनिज की कीमत 60 हजार करोड़ आंकी थी.
2013 में सीबीआई ने इस मामले में संदिग्ध वित्तीय अनियमितताओं के आधार पर प्रांरभिक जांच शुरू की. सीबीआइ ने जब अपने स्तर पर मूल्यांकन कराया तो हिंदुस्तान जिंक की कुल संपत्ति का मूल्य एक लाख करोड़ से अधिक निकला.
जांच में पता चला कि स्टरलाइट कंपनी को ओवरटेक करने के लिए संबंधित विभागों और अधिकारियों ने मिलकर एक निजी कंपनी से संपत्ति और शेयर का मूल्यांकन कराया. इस कंपनी ने स्टरलाइट को फायदा पहुंचाने के लिए काफी कम कीमत आंकी. सीबीआई की जोधपुर ब्रांच ने तीन महीने तक छानबीन कर डायरेक्टर को रिपोर्ट दिसंबर 2013 में ही सौंप दी थी.
2014 की मई में मोदी प्रधानमंत्री बने और अटल सरकार में HZL के विनिवेश में कथित अनियमितताओं के बावजूद सीबीआई ने प्रारंभिक जांच बंद करा दी गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सजग नजर आईं. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 18 नवंबर 2021 के अपने फैसले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पर आपत्ति जताई थी.
उन्होंने सवाल किया था कि हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) की बिक्री में कई गड़बड़ियां दिख रही हैं, फिर भी सीबीआई किस आधार पर प्राथमिक जांच (PE) को बंद करने का आवेदन दे रहा है ?
आपको हैरानी होगी कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में क्या जवाब दिया ! मोदी सरकार ने अपनी ही संस्था सीबीआई को झूठा बता दिया.
फरवरी 2022 में सरकार ने कोर्ट में एक बेहद अप्रत्याशित रुख दिखाते हुए केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अटल बिहार वाजपेयी सरकार में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (HZL) की बिक्री को लेकर सीबीआई ने शीर्ष अदालत को गलत जानकारी दी है.
मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के सामने विचाराधीन है जब तक फैसला आएगा सब गुड गोबर हो जाएगा. साफ दिख रहा है कि दोनों सरकारी कंपनियों के बेचने में जबरदस्त घोटाला हुआ और आज इन्हीं दोनों कंपनियों के दम पर इतरा रहे अनिल अग्रवाल ऊपर ही ऊपर देश के सबसे बड़े दानदाता होने का ढोंग करते हैं और अंदर ही अंदर शेयर गिरने पर कर्जा मांगते हैं.
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