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1962 की लडा़ई, थोड़े फैक्ट …

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1962 की लडा़ई, थोड़े फैक्ट ...
1962 की लडा़ई, थोड़े फैक्ट …

स्टेज 1

  1. 1952 में चीन की एक रोड का पता चला जो सुदूर उत्तर में वहां बनी, जो (शायद) भारत की जमीन थी.
  2. शायद इसलिए क्योंकि कश्मीर राजा उसे अपना कहते जरूर थे, लेकिन ब्रिटिश उसे बार्डर अनडिफाइन्ड मानते. नक्शे है बाकायदा बार्डर अनडिफाइन्ड लिखे हुए.
  3. हमने आपत्ति की लेकिन बार्डर ही अनडिफाइन्ड था तो क्लेम पुख्ता कैसे हो ? हमने 1954 में भारत का नया नक्शा जारी किया. वही, जिसे आप बचपन से देख रहे हैं.
Border Nehru ‘Clsimed’ in 1954 map.

स्टेज 2

  1. जब हमने नक्शा खींच दिया, तो वह जमीन भारत माता हो गई. जहां श-जहां कागज पर नक्शा खींच दो, उसे भारत माता मान लिया जाना चाहिए.
  2. जहां तक लाइन हमने खींची 1954 से 1960 तक, वहां तक पहुंचने की कोशिश की. यही फारवर्ड पॉलिसी थी. हम आधा रास्ता चले भी गए. तनाव बढने लगा.
  3. और भी आगे बढते तो चीन की रोड ले लेते तो चीनी रोकने आ गए. तब से वहीं स्टेण्डआफ चल रहा है.
India map of black contour curves of vector illustration
Map of India 1947. Clearly mentioning ‘boundary undefined’ (See top Right). India map of black contour curves of vector illustration.

स्टेज 3

  1. चीन ने कोशिश की. चाउ आए, प्रस्ताव दिया- अरूणाचल के इलाके में हम तुम्हारे नक्शे की लाइन मान लेंगे, अक्सई चिन पर हमारी मान लो.
  2. चीन ने शाक्सम घाटी का मामला पाकिस्तान से ऐसे ही सुलझाया था. नेहरू इस पर सहमत थे, संसद नहीं.
  3. नेहरू ने संसद को समझाया – नॉट ए ग्रॉस इज ग्रोन देयर. और महावीर त्यागी ने सीना ठोककर सिर कटाने वाला बयान दिया.
  4. वैसे भी सर सैनिकों के कटने थे, सांसदों और मीडिया के नहीं. तो संसद के दबाव में यह संभावित समझौता नहीं हो सका. उपर से गोवा जीतकर हर भारतवासी स्वयं को सर्वशक्तिमान मिल्ट्री पावर समझ रहा था. इसे शास्त्रों मे जिंगोइज्म कहा गया है.
  5. चीन मौका देख रहा था. मौका मिला – जब दुनिया क्यूबा मिसाईल संकट मे व्यस्त थी, रूस और अमेरिका परमाणु युद्ध के मुहाने पर थे, ठीक उसी समय चीन ने धावा बोल दिया.

स्टेज 4

  1. इन सीमाओं में सेना जो लगी थी, वो पेट्रोलिंग के लिए बिल्डअप था, युद्ध के लिहाज से नहीं.
  2. ज्यादातर चोटियां जो चीन ने जीतीं, लड़कर नहीं इसलिए जीती कि भारतीय फौजी ‘ग्रुप होने के लिए’ आगे की 4 चोटी छोड़कर पीछे 1 पर जमा होने लगे.
  3. चीन ने ज्यादातर खाली चोटियां कब्जा की. एक चोटी, याने नीचे की पूरी वैली आपके कन्ट्रोल में.
  4. जिंगोइज्म मे सिर कटाने का दावा करने वाले, अब संसद में नेहरू को गरियाने लगे. अटल ने युद्ध के बीच संसद में नेहरू सरकार को इनकैम्पेटेण्ट बताते हुए लंबा भाषण दिया.
  5. नेहरू ने उन्हें गद्दार नहीं कहा, चुपचाप सुना.
Disputed areas, along LAC

स्टेज 5

  1. क्यूबा संकट 13 दिन चला. पूरे 13 दिन चीन बढता रहा. क्यूबा संकट सुलझा, चीन ने स्टॉप कर दिया. उसे मालूम था, नेहरू की फोन लाइन अब काम करने लगेंगी.
  2. अगले 18 दिन नेहरू ने चौतरफा अंर्तराष्ट्रीय दबाव बनवाया. रूस ने चीन पर दबाव बनाया, चीन टालमटोल करता रहा. तो केनेडी ने अपना किट्टीहॉक का बेड़ा भेजने का आदेश दिया.
  3. जैसे ही अमेरिका ने आदेश दिया, खबर सुनते ही चीन ने एकतरफा युद्ध विराम किया और ….
  4. किट्टीहांक बेड़ा निकल पाता, उसके पहले (जो कम लोगों को ही पता है कि) चीन जीती हुई 90 प्रतिशत पहाड़ियां छोड़कर भाग गया.
  5. चीन का जमीन छोड़कर लौट जाना, जबरदस्त कूटनीतिक जीत थी. लेकिन हम हार की निराशा मे ऐसे डूबे कि सबकुछ नजरअंदाज कर नेहरू को ब्लेम करते रहे. 1962 के लिए नेहरू को ब्लेम करना एक फैशन है. कांग्रेस भी चुपचाप स्वीकार लेती है।

स्टेज 2 को वापस पढिये.

युद्ध के पहले, लद्दाख से 300 किमी आगे बढते हुए हमनें लाखों स्कवेयर किलोमीटर कब्जा किया था. कश्मीर राजा की आखरी चौकी लद्दाख थी. इसके आगे, पूर्व दिशा में अगर एक इंच भी भारत भूमि है तो वह नेहरू की विजय है.

आज भारत की सीमा, लद्दाख से पूर्व में आगे कोई 260-70 किमी है. यानी, 1962 के बाद 30-35 किमी खो दिया गया है. ज्यादातर पिछले 20 सालों में … और विश्वास कीजिए, इसमें भी अधिक खोया है 2014 के बाद…और ये वो भूमि थी, जो नेहरू ने जीती (या कब्जा की) थी.

अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं जिंगोइज्म से तय नहीं होती. इससे केवल घरेलू वोट मिल सकते हैं. जिनके लिए वोट महत्वपूर्ण है, वो जिंगोइज्म को बढावा देते हैं. जिनके लिए शांति और शांति मे होने वाला विकास महत्वपूर्ण है, वे किसी समझौते तक पहुंचने की कोशिश करते हैं.

1962 भारत की जनता, नेताओं का एक गुट और मीडिया के जिंगोइज्म का नतीजा था. आज फिर घर घुसकर मारने, एक के बदले दस सिर लाने वाला बकवाद हावी है. आपको जमीन नहीं, ज्यादा से ज्यादा सिर चाहिए. चीन को जमीन चाहिए, सिर खोने के लिए उसके पास एक्सपेण्डेबल पॉपुलेशन बहुत है.

इन वास्तविकताओ को समझना जरूरी है. आप मुझे चीन समर्थक, नेहरू का चमचा वगैरह कह सकते हैं लेकिन इस आलेख को दो बार पढें, समझे और अपना ओपिनियन बनाएं. आपके भीतर का जिंगोइज्म शांत होगा, तो कोई कूटनीतिक पहल कामयाब हो सकेगी.

अंत में यह कहना चाहूंगा कि मौजूदा सरकार सबसे बेहतर सरकार है जो हमें इस अंतहीन युद्ध और तनाव से निकाल सकती है. यह कूटनयिक बुद्धि से शून्य इवेन्टबाज सरकार है. यह चीन को उसकी इच्छित जमीन भी देगी, आपको पता भी नही चलने देगी और बदले मे एक दो ‘लाठी-बल्लम विडियो’ वायरल कर, जीत का इवेन्ट बना देगी.

चीन को जमीन मिलेगी, आपको कटे सिरों की गिनती. पार्टी को सत्ता और मीडिया को विज्ञापन. एवरीबडी विल बी हैपी. ऐसी बेशर्मी भरी सरकार भारत को दोबारा नहीं मिलेगी.

  • मनीष सिंह

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