शकील अख्तर
मुद्दा मनीष सिसोदिया नहीं हैं. आम आदमी पार्टी भी नहीं है. सवाल संवैधानिक ऐजेन्सियों का दुरुपयोग है. अल्लामा इकबाल के साथ थोड़ी सी रियायत लेते हुए –
‘न समझोगे तो मिट जाओगे ओ विपक्ष वालों
तुम्हारी दास्तां तक न होगी दास्तानों में !’
2014 में सरकार बदलते ही मनमोहन सिंह के यहां सीबीआई पहुंचना कांग्रेसी शायद भूल गए हैं. मगर अभी केन्द्रीय गृहमंत्री रहे पी. चिदम्बरम की गिरफ्तारी और उनके साथ दुर्व्यवहार करने को भी क्या कांग्रेसी भूल गए ? सुबह कांग्रेस के नेता जश्न में डूबे थे. मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी का समर्थन कर रहे थे. मगर शाम होते-होते कांग्रेस को समझ में आ गया कि यह किसी पार्टी या व्यक्ति पर हमला नहीं है, यह टेस्ट केस है कि विपक्ष में कितनी हिम्मत बची है ? कितना प्रतिरोध कर सकती है ?
कांग्रेस के महासचिव और कम्यूनिकेशन डिपार्टमेंट के इन्चार्ज जयराम रमेश ने गिरफ्तारी का विरोध करके अपने रायपुर महाधिवेशन की उस भावना को व्यक्त कर दिया कि विपक्षी एकता आज की सबसे बड़ी जरूरत है. कांग्रेस में हमेशा दुविधा की भरमार होती है. आज जब उसे विपक्षी एकता की सबसे ज्यादा जरूरत है तो उसे एकला चलो की और धकेला जा रहा था. और 2004 से 14 तक जब अकेले मजबूत होने का समय था तब उसे मिलजुल कर काम करने के जाल में फंसा रखा था.
कांग्रेस में आज इन्दिरा गांधी के समय की तरह कोई दृढ़ निश्चयी केन्द्रीय नेतृत्व नहीं है जो सही, समयानुकूल एक फैसला लेने के बाद उसे नीचे तक पहुंचा दे. राहुल के अति उदार और अनिश्चित रवैये की वजह से कई बार गलत मैसेज सर्कुलेटेड हो जाता है.
मनीष सिसोदिया दिल्ली के उप मुख्यमंत्री हैं. उनसे लगातार महीनों पूछताछ हुई. अगर सीबाआई चाहती तो आगे भी कर सकती थी, मगर उन्हें गिरफ्तार करना और फिर रिमांड पर लेने का क्या मतलब है ? देश की राजधानी के उप मुख्यमंत्री से थाने में पूछताछ !
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पत्रकार रहे अनुराग ढांडा का यह कहना सही है कि अगर आबकारी का मामला होता तो हरियाणा में दिन रात ठेके खुलते हैं वहां जांच होती. गुजरात में सैंकड़ों लोग जहरीली शराब से मर गए वहां जांच होती. अनुराग का दावा है कि यह शिक्षा का नया और सफल मॉडल है, जिससे भाजपा डर गई. हर मां बाप और बच्चे भी अब शानदार सरकारी स्कूल की बात करने लगे हैं. यह भाजपा के शिक्षा, चिकित्सा के निजीकरण पर बड़ी चोट है.
अनुराग ढांडा इसका एक राजनीतिक पक्ष भी बताते हैं कि एमसीडी में हमारा मेयर और डिप्टी मेयर नहीं बनता तो यह गिरफ्तारी नहीं होती. पहले पंजाब में हम भाजपा और अकालियों का विकल्प बन कर आए और फिर दिल्ली में हमारे एक भी पार्षद को बीजेपी वाले डरा और तोड़ नहीं पाए. उसी की खीझ और बदला है मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी.
अनुराग कहते हैं कि हरियाणा में हमने भाजपा सरकार की चूलें हिला दी हैं. वह हमें डराना चाहती है. और आम आदमी पार्टी को ही नहीं सारे विपक्ष को. हर जगह जांच ऐजेन्सियों का दुरुपयोग हो रहा है. विपक्षी नेताओं के यहां छापे पड़ रहे हैं. उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है. इसके खिलाफ लड़ना होगा. किसी के भी चुप रहने और डरने से काम नहीं चलेगा.
बात सही है. आज प्रधानमंत्री मोदी इतने ताकतवर हो गए हैं कि कोई भी पार्टी या तीसरा मोर्चा उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में नहीं हरा सकता. केवल संयुक्त विपक्ष ही आगामी लोकसभा चुनाव में उनका मुकाबला कर सकता है. वह जैसा कि कहते हैं कि खेल में कौन किसी का गुइंया ! वैसे ही राजनीति में कौन किसके साथ परमानेंट दोस्ती या विरोध. कोई कभी सोच सकता था कि कांग्रेस शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाएगी ? या भाजपा कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर सरकार चलाएगी ?
राजनीति में ऐसी उलटबांसिया बहुत होती रहती है. हमने 1989 के लोकसभा चुनाव में एक ही मंच पर भाजपा और सीपीएम दोनों के झंडे साथ लहराते देखे हैं. लेकिन 2014 के बाद तो यह चमत्कार ऐसे होने लगे हैं कि सारे समान विचार या नेचुरल एलाइंस की धारणाएं चकनाचूर हो गई हैं.
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना जो एक दूसरे को स्वाभाविक मित्र कहते थे वे दुश्मनों की तरह लड़े और पंजाब में भाजपा अकाली का सबसे पुराना गठबंधन टूट गया. कांग्रेस से गुलाम नबी आजाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे लोग टूटे जिनके बारे में 9 साल पहले कोई सपने में नहीं सोच सकता था.
तो राजनीति इन दिनों बहुत अलग स्टेज पर पहुंच गई है. इसे वापस जनता के साथ जोड़ने से पहले कई बाधाएं तोड़ना होंगी. राहुल बार-बार कहते हैं, अभी सोनिया गांधी ने भी कहा कि संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा कर लिया गया है. झूठे सवालों को सच के मुद्दों बेरोजगारी, महंगाई, चीन के दबाव पर हावी कर दिया गया है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तो यह कहकर देश के पूरे आत्म सम्मान को दांव पर लगा दिया कि वह बड़ी इकानमी है, हम उससे कैसे लड़ सकते हैं ? मतलब डर कर ही रहना है. राहुल ने इस पर रायपुर महाधिवेशन में अच्छा प्रहार किया कि यह कौन सा राष्ट्रवाद है कि ताकतवर से डरना और कमजोर को डराना !
लेकिन यह सब मुद्दे जनता के बीच जा नहीं पा रहे हैं. मीडिया इन्हें दिखाता बताता ही नहीं है. मीडिया हर चीज वह छुपा लेता है जो भाजपा के खिलाफ जा सकती हो. मगर एक चीज वह नहीं छुपा पाता. यही विपक्ष को समझना चाहिए. वह चीज है चुनावों की जीत. उसे यह बताना पड़ता है.
अभी जैसा रायपुर में प्रियंका ने बड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि केवल एक साल बचा है. कांग्रेस को खासतौर पर और विपक्ष को भी यह ध्यान में रखना चाहिए कि समय बहुत तेज गति से बीत रहा है. 2024 सिर पर खड़ा है. अगर यह हार गए तो फिर खूब आपस में लड़ते रहना, कोई पूछने वाला नहीं होगा.
कांग्रेस आज आश्चर्यजनक ढंग से पूछ रही है कि नीतीश का भाजपा से क्या संबंध रहा ? अरे संबंध ! वे तो भाजपा के पार्ट और पार्सल थे. पूरी राजनीति भाजपा के साथ की, 1977 से. वे तो उससे टूटकर तुम्हारी तरफ आए हैं. और आप उनसे पूछ रहे है कि आपकी राजनीति क्या है ?
कमाल है कांग्रेस के नेता भी. वे यह भूल गए कि 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले जब नीतीश कांग्रेस के घोर विरोधी थे तब राहुल ने उनके काम काज की प्रशंसा की थी. ठीक चुनाव से पहले राहुल ने दिल्ली के होटल अशोक में एक बड़ी प्रेस कान्फेंस की थी. उन दिनों राहुल आज की तरह इफरात में प्रेस कान्फ्रेंसे नहीं करते थे, इसलिए उसका बड़ा महत्व था. वहां वे नीतीश को फीलर दे रहे थे.
और आज जब नीतीश खुले आम एक हफ्ते में दूसरी बार कांग्रेस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं तो कांग्रेस मुंह से तो विपक्षी एकता, तीसरा मोर्चा भाजपा का मददगार बोले जा रही है मगर अपने हाथ पीछे रखकर बांधे हुए हैं.
कांग्रेस सबसे बड़ा विपक्षी दल है. इसलिए जिम्मेदारी भी उसकी सबसे ज्यादा है. उसे आगे बढ़कर विपक्षी एकता का अलख जगाना होगा. सीधा सवाल है कि अकेले लड़कर वह कितनी सीटें पर जीत लेगी ? और अगर मोदी की हैट्रिक हो गई तो फिर उसके बाद कांग्रेस और दूसरा विपक्ष कहां देखने को मिलेगा ? वह जैसे आजकल की भाषा में कहते हैं कि किस गोले पर !
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