तुम हमें अर्बन नक्सल क्यों कहते हो ?
क्या तुम यह सोचते हो कि
हमें अर्बन नक्सल कह देने भर से
हमारा जीवन जीने का हक़ ख़त्म हो जाएगा ?
या हमें इस देश का नागरिक नहीं माना जाएगा ?
या हमारे साथ संवैधानिक तरीके से
पेश आने की संविधान की मजबूरी
ख़त्म हो जाएगी ?
या हमें मनुष्य नहीं माना जाएगा ?
क्या अर्बन नक्सल कह देने भर से
हमें रौंद डालने का हक तुम्हें मिल जाता है ?
क्या इसलिए तुमने यह शब्द गढ़ा है
ताकि बौद्धिकता की लिंचिंग मूर्खता के हाथों हो सके
और अन्धे राष्टंवाद की फसल तुम लहलहा सको
जबकि तुम कुछ भी साबित नहीं कर पाये हो अब तक
ना तुमने हमारे अपराध ही बताये हैं
क्या तुम हमारे अपराध बताना
ज़रूरी नहीं समझते
जबकि उजागर हैं तुम्हारे अपराध
पूरी दुनिया के सामने
उन्तालीस शव
यह महज़ कोई संख्या नहीं है
जिसे तुमने इन्द्रावती में बहाया था
बल्कि लोकतंत्र के अबतक का निचोड़ है
जो तुमने देश को दिया है
रात भर ख़ून रिसता रहता है यहाँ
जंगल के पोर पोर से
एक नदी यह भी है
जो इन्द्रावती के नीचे बह रही है
इन्द्रावती बनकर
कविता पूरी कैसे हो
शुरू तक करना कठिन हो गया है
यह ख़ून से भरा समय है
एक शब्द भी पूरा लिख नहीं पाता कि तभी
ख़ून की बूंद टपक पड़ती है
और शब्द ख़ून की नदी में बदल जाता है
आधी रात यह कैसा दर्द है
जो रीढ़ से उठता है कराहता
और कविता को चीरता गुज़र जाता है.
- रंजीत वर्मा
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