हेमन्त मालवीय
‘दुनिया में एक ऐसी बीमारी आएगी जिससे करोड़ों अरबों लोग मारे जाएंगे. वक्त रहते हमें इससे बचाव के तुक्के लगाने को टेंट्स लैब्स बिस्तर अस्पताल बनाने चाहिए.’ एक गणितज्ञ ज्ञानी दानी ने बताया जो खुद को हर फील्ड का जीनियस मानता था.
अलबत्ता वह मेडिकल शरीर विज्ञान के बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं जानता था, मगर चूंकि उसके बनाये गए गणितीय आविष्कार की वजह से दुनिया के कई काम बहुत आसान हो गए थे. तो बाकी दुनिया को औऱ खुद बड़े-बड़े डॉक्टरों को यकीन था, उसकी खोज उसके अंदाजे तुक्के 100% से भी ज्यादा सही थे.
उसने सेमिनार किये, डॉक्टरों, मेडिकल साइंसदानों को खूब रिसर्च करने के पैसे दिए और अपने द्वारा की गई मेडिकल रिसर्च की जानकारियां दी. लैब्स बनवाई तो उसी ने डॉक्टरों से नये-नये तुक्के बनवाये. हर तरह के तुक्को को बनाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया.
हर साल की तरह बीमारी आई. बीमारी में पहले भी हजारों लोग मारे जाते थे, बस गिनती नहीं होती थी. पहली बार गणितज्ञ के सुझावों से सहमति रखते हुए गिनती हुई आंकड़े बताए जाने लगे. बीमारी सीजनल थी सो उसमें नई इंटेंसिटी भी थी. दुनिया का ख्याल था ये वही बीमारी है, जिसकी चेतावनी दी जा रही थी. अब तो मानवता ही खतरे में थी.
गणितज्ञ की तो बल्ले-बल्ले हो गई तो उसके सुझाये बदलावों से बने अफलातूनी तुक्कों का ज्यादा से ज्यादा बिना जांच जनता पे प्रयोग किया जाने लगा. तुक्के लगाने वालों को बोला गया – ‘तुम्हें तुक्के न लगे तो मारे जाओगे.’ अधिकांश लोग मरने के डर से डर गए, तुक्के लगवाने लगे. कुछ लोग असहमत थे, उनको कहा गया – ‘तुम मानवता के दुश्मन हो. तुमने तुक्के नहीं लगवाये. तुम तो खुद भी मरोगे औऱ दुसरों को भी मरवाओगे.’
क्योकि प्रयोग था, शुरू-शुरू में अचानक हजारों लोग टपाटप मरने लगे. वजह बीमारी की आक्रामकता को बताया गया. सप्लाई रोकी गई. तुक्कों के फार्मूलों की मात्राओं में परिवर्तन हुआ. लाखों लोगों को अनगिनत साइड इफेक्ट जाहिर हुए. लोग अचानक दम तोड़ने लगे. दूसरे चरण के नाम फिर तुक्कों में और नये परिवर्तन किये गए.
लोगों के मरने की दर कम तो हुई मगर कभी रुकी नहीं. अधिकांश जनता पहले चरण में जिन तुक्कों को लगवा चुकी थी, कुछ में परिणाम जल्द सामने आए, बाकी झेल गए. मगर तुक्के तो अभी भी शरीर में मौजूद थे.
आज भी अचानक से लोग गिर जाते हैं. वही बात जो तब बीमारी के समय अस्पताल में नाते रिश्तेदार कहते थे – ‘अरे अभी पल भर पहले तो ठीक था, एक ही पल में गिर के खत्म हो गया.’ धीरे-धीरे ऐसे ही करोड़ों लोग मारे गए. मारे जा रहे हैं. आखिर तुक्के शरीर में कहीं न कहीं मौजूद हैं.
तो आखिरकार उस ज्ञानी जीनियस गणितज्ञ या पागल की बात ही सच हुई – ‘करोड़ों-अरबों लोग मारे जा सकते हैं.’ खतरे की चेतावनी देने औऱ बचाव के लिए तुक्के सुझाने के लिए उसे मानवता का मसीहा माना गया !
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