आज हिन्दुस्तान में कितने नौजवान हैं जो देश को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से पागल हुए फिर रहे हैं ? चारों ओर काफी समझदार आदमी नजर आते हैं, लेकिन प्रत्येक का अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारने की चिन्ता हो रही है. तब हम अपने हालात, देश की हालात सुधारने की क्या उम्मीद रखें.
कारावास की काल-कोठरियों से लेकर झोंपड़ियों तथा बस्तियों में भूख से तड़पते लाखों-लाख इंसानों के समुदाय से लेकर, उन शोषित मजदूरों से लेकर जो पूंजीवादी पिशाच द्वारा खून चूसने की क्रिया को धैर्यपूर्वक या कहना चाहिए, निरूत्साह होकर देख रहे हैं तथा मानव-शक्ति की बर्बादी देख रहे हैं, जिसे देखकर कोई भी व्यक्ति, जिसे तनिक भी सहज ज्ञान है, भय से सिहर उठेगा, और अधिक उत्पादन को जरूरतमन्द लोगों में बांटने के बजाए समुद्र में फेंक देने को बेहतर समझने से लेकर राजाओं के उन महलों तक – जिनकी नींव मानव की हड्डियों पर पड़ी है … उसको यह सब देखने दो और फिर कहे – ‘‘सब कुछ ठीक है.’’ क्यों और किसलिए ? यही मेरा प्रश्न है. तुम चुप हो ? वे लोग जो महल बनाते और झोपड़ियों में रहते हैं, वे लोग जो सुंदर-सुंदर आरामदायक चीजें बनाते हैं, स्वयं पुरानी और गंदी चटाईयों पर सोते हैं. ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए ? ऐसी स्थितियां यदि भूतकाल में रही है तो भविष्य में क्यों नहीं बदलाव आना चाहिए ? यदि हम चाहते हैं कि देश की जनता की हालत आज से अच्छी हो तो यह स्थितियां बदलनी होगी. हमें परिवर्तनकारी होना होगा.
पाठक यह सब हाल पढ़कर देख सकते हैं कि उनका क्या फर्ज है. क्या उन्होंने उस आजादी के लिए, जिसलिए कि हजारों-लाखों हिन्दुस्तानियों ने सर लगा दिये थे और हजारों लगाने के लिए तैयार बैठे थे, आज तक कुछ किया है या नहीं ? यदि आज तक उन्होंने कुछ नहीं किया तो वे कौन-सा मुहूर्त देख रहे हैं ? आजादी की जंग में शामिल होने के लिए तो साल के 365 दिनों में 365 ही पवित्र है. हर पल भारत माता तुम्हारा इंतजार कर रही है कि तुम उसकी जंजीरें तोड़ने के लिए अपना फर्ज पूरा करते हो या नहीं. क्या इंसान बनकर आजादी हासिल करोगे ? इसी सवाल के जवाब से भारत का भविष्य निर्भर करता है.
प्रयत्न तथा प्रयास करना मनुष्य का कर्तव्य है, सफलता तो संयोग तथा वातावरण पर निर्भर है.
कार्यकत्र्ताओं के सामने सबसे पहली जिम्मेदारी है जनता को जुझारू काम के लिए तैयार व लामबंद करना. हमें अंधविश्वासों, भावनाओं, धार्मिकता या तटस्थता के आदर्शों से खेलने की जरूरत नहीं है. हमें जनता से सिर्फ प्याज के साथ रोटी का वायदा ही नहीं करना. हम कभी भी उनके मन में भ्रमों का जमघट नहीं बनने देंगे. क्रांति जनता के लिए होगी. कुछ स्पष्ट निर्देश यह होंगे –
1. सामंतवाद की समाप्ति.
2. किसानों के कर्जें समाप्त करना.
3. क्रांतिकारी राज्य की ओर से भूमि का राष्ट्रीयकरण ताकि सुधरी हुई व साझी खेती स्थापित की जा सके.
4. रहने के लिए आवास की गारंटी.
5. किसानों से लिए जाने वाले सभी खर्च बंद करना. सिर्फ इकहरा भूमि-कर लिया जायेगा.
6. कारखानों का राष्ट्रीयकरण और देश में कारखाने लगाना.
7. आम शिक्षा.
8. काम करने के घंटे जरूरत के अनुसार कम करना.
जनता ऐसे कार्यक्रम के लिए जरूर हामी भरेगी. सबसे जरूरी काम इस समय यही है कि हम लोगों तक पहुंचे. थोपी हुई अज्ञानता ने एक ओर से और बुद्धिजीवियों की उदासीनता ने दूसरी ओर से – शिक्षित क्रांतिकारियों और हथौड़े-दरांतेवाले उनके अभागे अर्धशिक्षित साथियों के बीच एक बनावटी दीवार खड़ी कर दी है. क्रांतिकारियों को इस दीवार को अवश्य ही गिराना है.
S. Chatterjee
March 23, 2018 at 4:30 pm
संपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्रांति का कोई विकल्प नहीं है। सुंदर लेख