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अदानी के बाद वेदांता : क्या लोकतंत्र, क्या सत्ता और क्या जनता–सब इस पूंजीवाद के गुलाम हैं

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अदानी के बाद वेदांता : क्या लोकतंत्र, क्या सत्ता और क्या जनता–सब इस पूंजीवाद के गुलाम हैं
अदानी के बाद वेदांता : क्या लोकतंत्र, क्या सत्ता और क्या जनता–सब इस पूंजीवाद के गुलाम हैं
सौमित्र राय

भारत का विदेशी मुद्रा 11 हफ्ते के सबसे न्यूनतम 561.267 अरब डॉलर हो गया. देश के सोने का भंडार भी 1.045 अरब डॉलर घटकर 41.817 अरब डॉलर रह गया है. अदाणी सेठ के गिरते शेयर्स के बीच अब यह सवाल राजनीतिक होना चाहिए कि NSE और सेबी ने सेठ की 5 कंपनियों को निफ्टी के इंडाइसेस में क्यों जोड़ रखा है. इसी निफ्टी में भारत की 16% इक्विटी और म्यूचुअल फंड का 41 लाख करोड़ रुपया पड़ा है.

अगर 31 मार्च तक अदानी की कंपनियों को निफ्टी से नहीं खदेड़ा तो शेयर बाजार डूबा समझें. आप अदाणी सेठ की गिरती दौलत गिनते रहिए, उधर एलआईसी को रोज़ 1000 करोड़ का नुकसान हो रहा है. ये पैसा पाई–पाई जमा कर कल को सुरक्षित रखने के लिए लोगों ने जमा किया है. एलआईसी डूब रही है. जनता अदाणी के भागने का इंतजार कर रही है. भारत सनातनी मूर्ख रहा है और रहेगा.

  • एलआईसी का शेयर 24 जनवरी को 702.20 रुपये पर बंद हुआ था, जबकि 27 फरवरी को ये 566 रुपये के निचले स्तर तक पहुंच गया है. शेयर वैल्यू 19.39% गिरी है.
  • एसबीआई का शेयर 24 जनवरी को 594.35 रुपये पर बंद हुआ था. 27 फरवरी को इसने 519.05 रुपये के निचले स्तर को छुआ. शेयर प्राइस 12.66% गिर गया है.
  • बैंक ऑफ बड़ौदा का शेयर 24 जनवरी को 177.95 रुपये पर बंद हुआ था, जबकि 27 फरवरी को ये 153.60 रुपये तक लो लेवल तक जा चुका है. शेयर वैल्यू में 13.68% की गिरावट आई है.
  • पंजाब नेशनल बैंक के शेयर प्राइस में भी 14.95 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. ये 24 जनवरी को 55.50 रुपये के भाव पर बंद हुआ था. 27 फरवरी को इसने 47.55 रुपये का लो लेवल दर्ज किया है.

एलआईसी के शेयर लगभग 17% टूटे हैं. महीने भर में एलआईसी का मार्केट कैप करीब 75 हजार करोड़ रुपये घट गया है. इस साल 24 जनवरी को एलआईसी का मार्केट कैप 4,44,141 करोड़ रुपये था, जो शुक्रवार 24 फरवरी को 3,69,790 करोड़ रुपये पर रह गया. एलआईसी ने बांबे स्टॉक एक्सचेंज को बताया था कि उसका सबसे बड़ा निवेश अदानी पोर्ट्स में था. इस कंपनी में 9.1% हिस्सेदारी थी.

अदानी समूह की छह अन्य कंपनियों में इसकी 1.25% से 6.5% तक की हिस्सेदारी थी. अदानी समूह में दिसंबर के अंत तक बीमा कंपनी के इक्विटी और ऋण के तहत 35,917 करोड़ रुपये हैं. इसमें इक्विटी की कुल खरीद वैल्यू 30,127 करोड़ रुपये है, जबकि 27 जनवरी, 2023 को इसका मार्केट वैल्यू 56,142 करोड़ रुपये पर था, जो घटकर 27000 करोड़ रुपए हो चुका है. कुल मिलाकर खेला हो गया है – 75 हजार करोड़ का नुकसान.

ये साल 2015 की बात है. विदेशी बैंकों में काला धन वापस लाने और देश के हर नागरिक को 15–15 लाख देने का जुमला फेंककर नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे. उसी साल उन्होंने देश के 10 कोल ब्लॉक्स की नीलामी की. बंगाल का सरिसतोली खदान भी उनमें से एक था. तारीख थी 31 जनवरी 2015. आरपी संजीव गोयनका ने बोली लगाने वालों का एक ग्रुप बनाया. 5 में से 3 कंपनियां उसमें शामिल हो गईं.

4 बिलियन डॉलर के गोयनका ग्रुप में शामिल 3 कंपनियों में से एक फर्जी यानी शेल कंपनी थी. दूसरी ने बोली नहीं लगाई और तीसरी कंपनी कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉर्पोरेशन (सीईएससी) थी. मोदी सरकार ने पूरी नीलामी में सीएजी के प्रोटोकॉल को कचरे के डिब्बे में डाल रखा. अब यहां से खेल शुरू होता है.

सीईएससी के पास 2014 तक वही खदान थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने कोयला घोटाले में रद्द कर दिया था. मोदी सरकार ने खदान उसी के हवाले कर दी. सीएजी ने 2016 में संसद में रखी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि नीलामी की प्रक्रिया में विसंगतियों के चलते सरकारी खजाने को चूना लगा. बाद की नीलामी में भी बोली लगाने वाली कंपनियों ने अपनी सहायक कंपनियों को आगे किया, ताकि न्यूनतम दाम पर खजाना हड़प सकें.

हिंडाल्को, आदित्य बिरला, वेदांता और जिंदल के नाम सीएजी की रिपोर्ट में अब धूल खा रहे हैं. मोदी सरकार ने सीएजी की रिपोर्ट को बकवास बताया और सीएजी ने भी साष्टांग होकर सरिसतोली को एक केस स्टडी बना दिया. कुछ माह बाद मोदी सरकार ने माना कि नीलामी में गलती हुई है. फिर नियम ऐसे बदले गए कि बोली लगाने वाले चोरों की लॉटरी लग गई.

तब देश की मीडिया तलवा चाटने की अभ्यस्त हो चुकी थी. तमाम संपादक आम चूसकर खाने जैसे सवाल उठा रहे थे. लिहाज़ा किसी ने धांधली पर ध्यान नहीं दिया. आज अदानी की पोल खुली तो सबकी नींद उड़ी है. दरअसल, मोदी सरकार तो कॉर्पोरेट्स के लिए, कॉर्पोरेट्स के द्वारा और कॉर्पोरेट्स को मुनाफा पहुंचाने के लिए ही 18 घंटे काम कर रही है. जनता को क्या मिलता है ? सिर्फ जुमला.

अदाणी सेठ झारखंड के अपने गोड्डा पावर प्लांट से बांग्लादेश को महंगी बिजली बेचकर चूना लगाने की फ़िराक में थे. गोड्डा प्लांट के लिए मोदीजी की मेहरबानी से अदाणी सेठ के खीसे में आयात कर की बचत हुई. फिर इसी मोदी सरकार ने सेठ को जीएसटी से भी फायदा पहुंचाया, जो करीब 30% था.

सहमति के खंड 13.1 में अदाणी सेठ को बांग्लादेश को बताना चाहिए था कि उन्हें मोदी सरकार से टैक्स में कितनी छूट मिल रही है. सेठ ने नहीं बताया. सोचा होगा कि मोदीजी के नाम से ही बांग्लादेशी डर जायेंगे. भारत की तरह बाखुशी महंगी बिजली जलाएंगे. खैर, सौदा अब रद्द होने की कगार पर है और अदाणी सेठ जल्द ही दिवालिया होने के रास्ते पर हैं.

इसकी टोपी उसके सर- वाली कहावत तो सुनी ही होगी. मोदी राज के 8 साल में यह भारत में भयानक रूप से बढ़ी है. अंधे पूंजीवाद का इस दौरान एक ही काम रहा है- बैंकों से लोन लेकर पूंजी बनाओ और घाटा होने पर सरकार को ही टोपी पहना दो. लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद तमाम बड़े कॉर्पोरेट्स ही नहीं, बल्कि सरकार खुद भी डरी हुई है.

अदानी की ही तरह वेदांता भी एक बड़ी डूबती नाव

ताजा मामला वेदांता का है. अदानी सेठ की तरह ही वेदांता भी एक बड़ी डूबती नाव है. उस पर 7.7 बिलियन डॉलर का कर्ज है. बीते दिनों जब एसएंडपी ने कंपनी की माली हालत पर चिंता जताई तो वेदांता ने फट से झूठ बोला कि पिछले 11 माह में कंपनी ने 2.2 बिलियन डॉलर का लोन चुकाया है.

दरअसल, ऐसा कुछ हुआ नहीं है. हुआ यह कि वेदांता अफ्रीका में तांबे की एक खदान को बेचना चाहती है. उसने मोदी सरकार से खरीदे हिंदुस्तान जिंक को टोपी पहनाने की सोची और 2.2 बिलियन डॉलर में खदान खरीदने का दबाव डाला.

हिंदुस्तान जिंक में वेदांता की 64% और सरकार की 30% हिस्सेदारी है. सरकार हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद इस कदर डरी हुई है कि उसने पैसा लगाने से साफ मना कर दिया. सरकार ने कहा कि चूंकि यह संबंधित पार्टी से ही किया हुआ सौदा है, इसलिए वह इसमें हाथ नहीं डालेगी. तो फिर ? इंतजार कीजिए वेदांता के भी अदानी होने का.

भारत के प्रधानमंत्री यह दिखाने में ज़रा भी चूकना नहीं चाहते कि देश में अघोषित इमरजेंसी लगी है. देश में असम एक डिटेंशन कैंप है. हिटलर की तरह का. जहां राजनीतिक बंदियों को रखा जाता है. गिरफ्तारी कहीं भी, कभी भी हो सकती है. चाहे उसके लिए फौज ही क्यों न बुलानी पड़े. इन सबके बावजूद 56 इंची में इतनी हवा नहीं कि आपातकाल घोषित कर दे. वरना, यह आफ़तकाल है.

भयानक पूंजीवाद इस देश को पूरी तरह से लील चुका है. यहां से बच निकलने का कोई रास्ता नहीं है. क्या लोकतंत्र, क्या सत्ता और क्या जनता–सब इस पूंजीवाद के गुलाम हैं. मुझे बार–बार गांधीजी का असहयोग आंदोलन याद आता है.

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