Home कविताएं वैलेंटाइन्स-डे पर विनोद शंकर की तीन कविताएं

वैलेंटाइन्स-डे पर विनोद शंकर की तीन कविताएं

6 second read
0
0
136
विनोद शंकर

प्यार में मेरी कामना
बस यही रही की
तुम सिमट न जाना मुझ तक
और मैं तुम तक
हम दोनों एक-दूसरे की बातों और
आदतों में उलझ कर न रह जाए
इसलिए मैं सिर्फ़ प्यार नहीं
तुमसे संसार की भी बात करता रहा
कभी किताब तो कभी फूल
तो कभी जंगल-पहाड़ों की बात करता रहा
ताकी इसी बहाने
हम दोनो एहसास कर सके की एक-दूसरे की तरह
हमें इनकी भी जरुरत है

मेरी हमेशा कोशिश रहती है
तुम्हारे हिस्से में
मुझसे ज्यादा प्यार, सम्मान और खुशियां आए

मै चाहता हूं
हम प्यार में जीते हुए खुदी में न भूल जाए
बल्कि एक-दूसरे के सहयोग से
पूरी दुनिया को जान जाए
की क्या अच्छा है और क्या बुरा है
इस तरह हम भी उनके साथ खड़ा हो सके
जो दुनिया को सुन्दर बनाने में लगे हैं.

2

आज मैंने उसकी आंखों में प्यार देखा अपने लिए
तो लगा कि जन्नत देख रहा हूं
तब से मैं अपने अंदर
कितना भरा-भरा महसूस कर रहा हूं
लग रहा है कि मेरी सारी ख्वाहिश ही पूरी हो गई हो
अब मुझे उस से कुछ ही नहीं चाहिए
सिवाय इन प्यार भरी आंखो के !

ये एहसास की कोई हमें प्यार करता है
हमें पागल बना देता है
जिन्दगी में कुछ करने के लिए
बशर्ते कि आप भी उसे प्यार करते हो
और इसी पागलपन में होते है बड़े काम
आकर लेती है कोई बड़ी रचना
जो मानवता को और आगे ले जाती है.

बिना प्यार के नहीं संभव है जीवन
क्रांति की तो बात ही छोडिये
श्रम के कोख से पैदा हुआ
यह पहला बच्चा है
जिसने हमारी सभ्यता की नींव रखी है
इसकी जडें न तो वेद में है और न ही कुरान में है
और नहीं बाइबिल में है
इसकी जड़ें तो इंसान के उस हाथ में है
जिसने पहली बार हल की मुट्ठी पकड़ा
अजंता-अलोरा की गुफाओं में भित्ति चित्र बनाया
हम उसी कि संतान हैं.

हमारे रग-रग को प्यार है
मजदूरों और किसानों से
श्रम करने वाले सारे इंसानों से
इसी प्यार की बदौलत हम खड़ा करेंगे
सभ्यता की नई ईमारत
जिसमें अफ्रीका के नीग्रो
इंग्लैंड के गोरो
बस्तर के गोंड
और पूना के चित्तपावन ब्राम्हण
चीन के मंगोल
जर्मनी के आर्यो के बीच
कोई भेद नहीं होगा.

3

तुम्हारा नाम लेते ही
तुम्हें देखते ही
मेरे दिल कि धड़कन
बढ़ जाती है
सांसें जोर-जोर से
चलने लगती है
न जाने ऐसा क्या जादू
किया है तुमने मुझ पर
मैं तुम्हारे प्यार में पंक्षी बन कर
उड़ने लगता हूं
और घूम आता हूं पूरी दुनिया

वो जगह जहां तुम्हारी यादें हैं
मेरे लिए तीर्थ स्थल बन जाती है
मै उसे वैसे ही श्रद्धा और प्यार से देखता हूं
जैसे मुसलमान मक्का-मदीना
और हिन्दू अपने धाम को देखते हैं
तुम हो तो
मुझे जरूरत नहीं होती
किसी अल्लाह और भगवान की
मुझे तुम्हारी आंचल में ही
जन्नत की खुशी मिलती है.

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…