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अडानी-मोदी क्रोनी कैपिटलिज़्म : यह कैसा राष्ट्रवाद है तुम्हारा ?

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अडानी-मोदी क्रोनी कैपिटलिज़्म : यह कैसा राष्ट्रवाद है तुम्हारा ?
अडानी-मोदी क्रोनी कैपिटलिज़्म : यह कैसा राष्ट्रवाद है तुम्हारा ?
श्याम सिंह रावत

हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडाणी ग्रुप पर लगे वित्तीय गड़बड़ी और खातों में हेराफेरी के आरोप के बाद यह चौतरफा संकट में घिर गया है. इस समूह को दुनिया भर से लगातार झटके लग रहे हैं. इससे गौतम अडाणी के न केवल विदेशों में चल रहे कारोबार पर संकट गहराने लगा है, बल्कि वैश्विक रेटिंग एजेंसियों द्वारा स्तर गिरा देने से इस समूह में निवेश करने वालों का रास्ता भी बंद हो गया है. इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ना लाजिमी है –

  • बांग्लादेश ने अडाणी पॉवर लिमिटेड के साथ 2017 के बिजली खरीद समझौते में संशोधन की मांग की है. बांग्लादेश पॉवर डेवलपमेंट बोर्ड के अनुसार कोयले से पैदा होने वाली बिजली काफी महंगी है. बांग्लादेश ने भारत के झारखंड में अडाणी के संयंत्र के लिए खरीदे जाने वाले कोयले की अत्यधिक कीमत का पेंच फंसा दिया है.
  • ऑस्ट्रेलिया में अडाणी ग्रुप ब्रैवस नाम से वहां के क्वींसलैंड राज्य में कारमाइकल कोयला खदान, उससे जुड़ी एक रेल लाइन और नॉर्थ क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल का संचालन करता है, जो क्वींसलैंड का कोयला निर्यात के लिए एक प्रमुख बंदरगाह है. कंपनी के पास वहां एक सोलर फार्म भी है. अब ऑस्ट्रेलिया के कॉरपोरेट नियामक ने कह दिया है कि वह हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट की समीक्षा करेगा. ऑस्ट्रेलिया में पिछले कुछ सालों से पर्यावरणीय एक्टिविस्ट्स अडाणी ग्रुप का बड़े पैमाने पर विरोध कर रहे हैं. वे संगठित होकर ‘स्टॉप अडाणी’ नाम से एक कैंपेन चला रहे हैं.
  • फ्रांस की एनर्जी कंपनी टोटल एनर्जी ने अडाणी ग्रुप को बड़ा झटका दिया है. टोटल एनर्जी अडाणी ग्रुप में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है. टोटल एनर्जी ने अडाणी ग्रुप के हाइड्रोजन प्रोजेक्ट में निवेश को होल्ड पर डाल दिया है और कहा है कि जब तक अडाणी ग्रुप की कंपनियों पर हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोप की जांच नहीं हो जाती, तब तक वह आगे निवेश नहीं करेगी.
  • ग्लोबल इंडेक्स प्रोवाइडर मॉर्गन स्टैनली कैपिटल इंटरनैशनल (MSCI) ने अडाणी ग्रुप की चार 4 कंपनियों—अडाणी एंटरप्राइजेज, अडाणी टोटल गैस, अडाणी ट्रांसमिशन और ACC की सिक्योरिटीज के फ्री-फ्लोट स्टेटस में कटौती की है. एमएससीआइ ने कहा है कि गौतम अडाणी ग्रुप की कई कंपनियों के शेयरों को अब फ्री फ्लोट कैटेगरी से बाहर निकाला जा रहा है. यह कदम MSCI इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में अडाणी समूह के प्रभाव पर बुरा असर डालेगा.
  • मूडीज (Moody’s rating) ने अडाणी ग्रुप को झटका देते हुए इसकी 8 कंपनियों की रेटिंग में बदलाव किया है. अडाणी की 4 कंपनियों में से 4 कंपनियों को स्थिर से नकारात्मक रेटिंग में बदल दिया गया है.
  • इंग्लैंड में हिंडेनबर्ग रिपोर्ट से मचे हंगामे के बाद अडाणी ग्रुप के 20,000 करोड़ रुपए के एफपीओ (वापस ले लिया है) से जुड़ी ब्रिटिश कंपनी एलारा कैपिटल पीएलसी के कार्यकारी निदेशक और पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के छोटे भाई लॉर्ड जो जॉनसन को वहां मचे हंगामे के बाद पद से इस्तीफा देना पड़ा.
  • सिटी ग्रुप, उसके बाद क्रेडिट सुइस और फिर स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने भी अडाणी समूह को झटका दिया है. स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने अडाणी ग्रुप की कंपनियों के बॉन्ड्स को मार्जिन लोन पर कोलैटरल के रूप में स्वीकार करना बंद कर दिया है.
  • गौतम अडाणी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा नियामक ढांचे पर वित्त मंत्रालय, सेबी से भी जानकारी मांगी है और केंद्र सरकार से पूछा है कि ‘आप कैसे भारतीय इन्वेस्टर को प्रोटेक्ट करेंगे ?’

अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों में गिरावट को लेकर संसद में भी मामला उठा. विपक्षी दलों ने इस पर चर्चा और संयुक्त संसदीय दल से मामले की जांच की मांग की लेकिन भ्रष्टाचारियों और अपराधियों की ‘धुलाई मशीन’ के नाम से कुख्यात हो चुकी भाजपा सरकार और उसके मुखिया ने न केवल आंख, कान और मुंह बंद कर लिये, बल्कि चोरी और हेराफेरी पकड़ी न जाये इसीलिए तो जांच कराने की मांग अनसुनी ही नहीं कर दी बल्कि कार्यवाही से भी निकाल दी गई.

अपने मुंह मियां मिट्ठू बनकर खुद को राष्ट्रवादी बताते हुए भी देश की जड़ों में मट्ठा डालने वाले स्वघोषित प्रधानसेवक की करतूतों से सारी दुनिया में कैसा डंका बज रहा है, यह सब देख रहे हैं.

 

यह तो सबको मालूम हो ही गया है कि हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के अनुसार कैरेबियाई देशों से लेकर मॉरीशस, ब्रिटिश आइलैंड्स, बहामास और यूएई तक में बनाई गई 36 शेल (फर्जी) कंपनियों के माध्यम से गौतम अडाणी ने अपने भाई विनोद अडानी से मिलकर कालाधन भारत स्थित अपनी कंपनियों में निवेश किया है. यहां कुछेक ऐसी शेल (फर्जी) कंपनियों के बारे में जानते हैं. हिंडेनबर्ग रिसर्च में जिन 36 सेल विदेशी कंपनियों द्वारा अडाणी की कंपनियों में निवेश करने का जिक्र आया है, उनमें से कुछ ये हैं —

  • क्रिस्टा फंड्स—₹13,778 करोड़ अडाणी की कंपनी में निवेश किया है जो उसकी कुल कैपिटल का 99.94% है.
  • मार्शल ग्लोबल कैपिटल—₹2,580 करोड़ अडाणी की कंपनी में निवेश किया है, जो उसकी कुल कैपिटल का 99.73% है.
  • एशिया इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन—कुल कैपिटल ₹9,808 करोड़ है, जिसका 99.36% हिस्सा अडाणी की कंपनी में निवेश किया है.
  • लिमिटेड इन्वेस्टमेंट फंड—₹11,881अडाणी की कंपनी में निवेश किया है, जो उसकी कुल कैपिटल का 99.21% है.
  • पीपीएमएस इन्वेस्टमेंट फंड—₹14,897 करोड़ अडाणी की कंपनी में निवेश किया है, जो उसकी कुल कैपिटल का 98.80% है.
  • फलूश ग्लोबल फंड—₹2,580 करोड़ अडाणी की कंपनी में निवेश किया है, जो उसकी कुल कैपिटल का 98.12% है.
  • एलारा कैपिटल— ₹27,000 करोड़ अडाणी की कंपनी में निवेश किया है, जो उसकी कुल कैपिटल का 98.5% है.
  • न्यू‌ लियाना इन्वेस्टमेंट—₹2,087 करोड़ अडाणी की कंपनी में निवेश किया है, जो उसकी कुल कैपिटल का 97.97% है.
  • अल बुला इन्वेस्टमेंट—₹12,846 करोड़ अडाणी की कंपनी में निवेश किया है, जो उसकी कुल कैपिटल का 96.98% है.
  • वेस्पारा फंड—₹10,017 करोड़ अडाणी की कंपनी में निवेश किया है, जो उसकी कुल कैपिटल का 91.35% है.

रिपोर्ट के अनुसार अपनी कुल कैपिटल का 99.94, 99.73 और 99.36% तक हिस्सा अडाणी समूह में निवेश करने वाली इन फर्जी कंपनियों में से कुछ के पास कोई दफ्तर, वेबसाइट और कर्मचारी तक नहीं हैं. कुछ के तो पते तक नहीं मिले.

मतलब यह कि गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी के संचालन में इन सभी कंपनियों का काम और कुछ नहीं सिर्फ गौतम अडाणी द्वारा बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों से लिये गये कर्ज़ का खातों में हेराफेरी और अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों का फर्जीवाड़ा करना है.

जिसकी जांच भारत के वाणिज्य मंत्रालय, रिजर्व बैंक, सेबी और ईडी को करनी चाहिए थी लेकिन इन सबने आंखें बंद कर ली. और जब हिंडेनबर्ग रिसर्च ने दो साल परिश्रम कर इस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश किया है तो सरकार ने मौन साध लिया है.

इससे तो साफ ज़ाहिर है कि दुनिया के सबसे बड़े नालायक सहित ये सभी गौतम अडाणी को दुनिया का सबसे बड़ा रईस बनाने का अभियान चलाये हुए हैं, इनका यही फर्जीवाड़ा पकड़ा गया है.

अमेरिकी समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने ख़बर दी है कि सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया यानी सेबी ने अडाणी की कंपनियों के शेयरों की ख़रीद-फ़रोख़्त में जांच शुरू कर दी है. जांच इस पर होगी कि क्या अडाणी के शेयरों को ख़रीदने वाली कंपनियां बेमानी हैं ? दरअसल ये कंपनियां अडाणी की ख़ुद की हैं.

आपको याद होगा कि हफ़्ते भर पहले अडाणी ने ढाई सौ करोड़ डॉलर का शेयर इश्यू मार्केट में निकाला था और फिर उसे वापस ले लिया था. ये जांच इसी शेयर इश्यू की ख़रीद के बारे में है. जांच के घेरे में मॉरिशस में बनाई गई दो कंपनियां हैं. आरोप है कि ये दोनों अडाणी की बेनामी कंपनियां हैं.

आख़िर क्यों सेबी इस पर जांच कर रहा है ? इसका जवाब सीधा है, अगर सेबी इन आरोपों की जांच नहीं करता है तो सेबी की क़ाबिलीयत और निष्पक्षता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल खड़े हो जाएंगे. अगर विदेशी निवेशकों को यह लगने लगेगा कि भारत का रेगुलेटर निष्पक्ष नहीं है और ईमानदारी से काम नहीं करता है तो अरबों-खरबों का निवेश ख़तरे में पड़ जाएगा.

दरअसल यह कहानी मोदी के हाथ से बाहर निकल गई है. अडाणी को अगर वापस उसी स्तर पर आना है जिस पर वो दो हफ़्ते पहले थे तो उन पर लगे सभी आरोपों का खंडन होना होगा, ये संभव नहीं है. क्योंकि अडाणी पर लगे सभी आरोप सही हैं और भारत के भीतर मोदी कितना भी ड्रामा कर लें, और उनकी सरकार अडाणी को कितना भी बचा ले, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाज़ार और ख़ास तौर से पश्चिम के मुल्कों में अडाणी की साख तब तक चौपट रहेगी जब तक वह अपने आप को निर्दोष नहीं साबित कर पाते हैं.

जाँच के घेरे में मॉरिशस की जो दो कंपनियां हैं उनमें एक है एलारा कैपिटल जिसमें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के भाई डायरेक्टर थे और जिन्होंने पिछले दिनों उस पद से इस्तीफ़ा दे दिया. क्योंकि ये भ्रष्टाचार कई देशों में हुआ है इसलिए आने वाले दिनों में विदेशी मुल्कों की एजेंसियां भी अपनी जांच शुरू कर सकती हैं.

जांच शुरू करके सेबी फंस गया है. इस जांच पर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार और निवेशकों की नज़र रहेगी. अगर ज़रा भी यह लगता है सेबी की जांच फ़्रॉड है और अडाणी को बचाने में लगी है तो फिर उसका असर उल्टा पड़ेगा. मोदी चाहे जो कर लें अब अडाणी का वापस उस स्तर पर आना बहुत मुश्किल होगा. इसका सीधा असर यह होगा कि जो उम्मीदें मोदी ने अडाणी से लगायी थी कि वो भारत के उद्योग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा देंगे, उम्मीदें अब पूरी नहीं होगी.

पिछले 8 सालों में मोदी ने जो एक काम नहीं किया वो है लेवल प्लेइंग फ़ील्ड बनाने का. करना ये था कि उद्योग नीति बेहतर करते जिससे कि बिज़नेस बढ़ाने का सबको चांस मिलता. पूंजीवाद का यही नियम होना चाहिए. इसे ही फ़्री मार्केट कहते है लेकिन मोदी ने कैपिटलिज़्म की जगह क्रोनी कैपिटलिज़्म लगा दिया, इसका ख़ामियाज़ा अब हिंदुस्तान भरेगा.

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ROHIT SHARMA

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