अडानी ग्रुप में नौकरी करने वालो की संख्या मात्र 23 हज़ार से कुछ ज्यादा है जबकि अडानी ग्रुप के मालिक दुनिया के तीसरे सबसे अमीर आदमी रह चुके हैं. इसकी तुलना में अमेजन जैसी कंपनी जो खुद कोई वस्तु नहीं बनाती है, वो हजारों लाखों कंपनियों से अपने ग्राहकों के लिए उचित मूल्य पर सामान खरीदती-बेचती है. यानी कि एक सप्लाई चेन चलाती हैं, उसके यहां 15 लाख़ 41 हजार इंप्लोई काम करते हैं.
आप जानते हैं ही है कि अमेजन पर ये आरोप लगते हैं कि वो करोड़ों जॉब खाकर ये बिजनेस कर रहे हैं. अमेजन के मालिक जेफ बेजोस फोर्ब्स की लिस्ट में पिछले साल बहुत ऊपर नीचे हुए हैं. एक बार तो वे अडानी से भी नीचे चले गए थे तो क्या आपने कभी ये सोचा कि दुनिया के तीसरे सबसे धनी आदमी के अडानी ग्रुप में इतने कम लोग क्यों काम करते हैं ?
अच्छा एक मजे की बात और समझिए कि गौतम अडानी फोर्ब्स की सूची में 2014 में 609वें स्थान पर थे. जी हां 609 वे स्थान पर. तब अडानी समूह के पास 10 हजार इंप्लोई काम कर रहे थे. 13 सितंबर 2013 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने अपना पीएम उम्मीदवार घोषित किया तब अडानी समूह की कंपनियों का मार्केट कैप 51,573 करोड़ रुपये था. 2013 तक, अडानी समूह की अधिकांश संपत्ति गुजरात में स्थित थी. लेकिन 2022 तक, यह पूरे देश में फैल गया.
लेकिन क्या कमाल की बात है कि इन आठ सालों इसके कर्मचारियों की संख्या में मोटे तौर पर सिर्फ ढाई गुना की वृद्धि हुई. जबकि अदानी की दौलत में इन आठ सालों में 41 गुना वृद्धि हुई. 2022 में अडानी ग्रुप का कुल मार्केट कैप 20.31 लाख करोड़ रुपये के आसपास था. अडानी की कुल दौलत 122.3 अरब डॉलर हो गई. एक बार सोचिए जरूर कि अडानी की दौलत फिर कैसे इतनी बढ़ गई जबकि उसने जॉब तो न के बराबर दिए ?
गुजराती सेठ अडानी देश के लोगों रोजगार देते हैं ? कितना ? एक लाख ? दो लाख ? चार लाख ? दस लाख ? घंटा. पूरे ग्रुप में मात्र 23,000 लोग काम करते हैं. आप कहेंगे कि ये भी ठीक है. नहीं, ठीक नहीं है. बाकी सारी कंपनियों लाखों में रोजगार देती हैं. आइए डिटेल देते हैं.
जिस गुजराती सेठ के लिए एलआईसी का 35000 करोड़ डुबा दिया, वह एलआईसी अकेले 1,15,000 लोगों को नौकरी दे रही है. इसके अलावा एलआईसी के लगभग 14 लाख एजेंट हैं जो अपनी मेहनत से कुछ न कुछ कमाते हैं. मिस्टर ठगेंद्र ने गद्दी संभालते ही गुजराती सेठ को एसबीआई से 6000 करोड़ दिलवाए थे, वह एसबीआई देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक है और 2,45,000 लोगों को पक्की सरकारी नौकरी देता है. गुजराती सेठ से 11 गुना ज्यादा. तो गुजराती सेठ के लिए एसबीआई को क्यों दांव पर लगाया ?
भारत में सबसे ज्यादा रोजगार कौन देता है ? आज भी सबसे ज्यादा सरकारी विभाग. अकेले भारतीय सेना 14,00,000 लोगों को रोजगार देती है. भारतीय रेलवे 12,54,000, अर्धसैनिक बल 8,90,000, डाक विभाग 4,66,000, कोल इंडिया 2,72,000 नौकरी देता है. इन संस्थाओं को जिस गुजराती सेठ के हाथों बेचा जा रहा है वह सिर्फ 23000 रोजगार देता है !
भारत में और भी उद्योगपति हैं. उनके द्वारा दिये गए रोजगार के आंकडों को देखिए –
- टाटा समूह – 9,35,000
- इंफोसिस – 3,46,000,
- Larsen & Toubro – 3,06,000
- महिंद्रा समूह – 2,60,000,
- विप्रो – 2,50,000,
- रिलायंस ग्रुप – 2,30,000,
- माइक्रोसॉफ्ट – 2,21,000,
- HDFC – 1,41,000,
- HCL 2,22,270
- Quess Corporation – 3,83,000
- अमेरिकी कंपनी Accenture भारत में 3 लाख और
- अमेजन इंडिया 1 लाख लोगों को रोटी दे रही है.
भारत का सबसे बड़ा धनकुबेर गुजराती सेठ रोजगार सिर्फ 23000 को नौकरी क्यों दे रहा है ? ठगेंद्र के चमचे कह रहे हैं कि गुजराती सेठ को कुछ मत कहो, रोजगार देता है. कहीं छुईमुई मुरझा गया तो रोजगार चला जायेगा ! 23000 रोजगार देने वाले भ्रष्टाचारी को बचाना है, और साढ़े 12 लाख रोजगार देने वाले रेलवे को उसी भ्रष्टाचारी के हाथ बेच देने पर मौन साध जाना है ?
ठगेंद्र गुजराती सेठ को क्यों बचा रहे हैं ? क्योंकि गुजराती सेठ के सारे कारनामों के तार ठगेंद्र से जुड़े हैं. यहां रोजगार नहीं, भ्रष्टाचार बचाना है. लेकिन अब पाप का घड़ा भर गया है. जुगलबंदी की पोल खुलने लगी है. बांग्लादेश वाले कह रहे हैं कि हमसे अडानी की महंगी बिजली खरीदवाने का समझौता करवाया गया.
कुछ महीने पहले श्रीलंका वाले कह रहे थे कि अडानी को पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट पीेएम मोदी के कहने पर श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति राजपक्षे ने दिलाया था. आस्ट्रेलिया वाले तो सालों से कह रहे हैं कि अडानी हमारे यहां कोयला खदानों से कोयला निकालकर पर्यावरण खराब कर रहा है.
पेट्रोल-डीजल सस्ता क्यों नहीं कर रही है मोदी सरकार ?
क्या आप जानते हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले भारत के आयात में रूसी कच्चे तेल का हिस्सा केवल 0.2 प्रतिशत था लेकिन पिछले महीने जनवरी, 2023 में यह बढ़कर 28 प्रतिशत हो गया है. जी हां 28 प्रतिशत ! भारत की मोदी सरकार बेंट क्रूड की तुलना में रूस से कच्चा तेल बेहद सस्ते दामों पर खरीद रही है.
रूस युक्रेन युद्ध के शुरुआत के समय तो रूस भारत को 35 डॉलर प्रति बैरल तक की छूट दे रहा था, उस वक्त इंटरनैशनल मार्केट में कच्चे तेल (Crude oil) के दाम आसमान पर थे. सितंबर 2022 से रूस अपने तेल को ब्रेंट क्रूड के मुकाबले 20 डॉलर प्रति बैरल सस्ता बेच रहा था.
दिसंबर में रूस ने भारत को रोजाना 11.9 लाख बैरल कच्चे तेल की सप्लाई की. जनवरी में रूस से भारत का कच्चे तेल का आयात बढ़कर 12.7 लाख बैरल प्रतिदिन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. यानी लगातार सस्ते दामों पर देश को कच्चा तेल मिल रहा है. इस दौरान बेंट क्रूड के दाम भी घटे हैं लेकिन आम जनता के लिए पेट्रोल डीजल के कीमतों में कोई कटौती नहीं की गई ! आम जनता को इस तरह से लूट कर सरकार किसकी जेब भर रही है ?
- गिरीश मालवीय व अन्य
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