विनोद शंकर
कैमूर की पहाड़ियों में आदिवासी महिला के साथ वन विभाग के पुलिसिया गिरोहों द्वारा सामूहिक बलात्कार और हत्या के खिलाफ पहाड़ गरज उठा है. कैमूर मुक्ति मोर्चा की ओर से जारी एक पर्चे में इसका ऐलान करते हुए चार सूत्री मांगों को उठाया गया है, जिसे लेकर जबरदस्त प्रदर्शन का ऐलान किया गया है. उनकी चार मांगें इस प्रकार हैं –
- राजकली उरॉव के बलात्कारियों को तत्काल गिरफ्तार करके कठोर से कठोर सजा दो.
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सार्वजनिक करो.
- राजकली उरांव के परिजनों को 50 लाख रूपये का मुआवजा दो.
- कैमूर पठाऱ से वन सेंच्यूरी (वन्य जीव अभ्यारण्य) और बाघ अभ्यारण्य को तत्काल खत्म करो.
विदित हो कि 4 जनवरी 2023 को नागाटोली, रोहतास में एक गरीब उरांव आदिवासी महिला की वन विभाग के सिपाहियों द्वारा बलात्कार के बाद हत्या कर दी गयी. इस घटना की सच्चाई व सही तथ्यों को जानने के लिए कैमूर मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता 8 जनवरी को जांच टीम बनाकर नागाटोली गए. जांच के दौरान वहां के लोगों ने बताया कि 4 जनवरी की सुबह 10 बजे के करीब 9-10 महिलाएं जलावन के लिए लकड़ी लेने जंगल गयी थी, तभी वन विभाग के 2 सिपाही व ग्राम-रेहल के रामाशीष यादव (वॉचर) और ग्राम-धनसा के दुलार यादव (वॉचर) ने महिलाओं को लकड़ी लेने से रोकने व उनके साथ छेड़खानी करने की नियत से उन्हें दौड़ाने, पकड़ने व मारने लगे.
इस घटनाक्रम में बाकी महिलाएं तो किसी तरह से भाग गईं लेकिन एक महिला राजकली उरांव उन दरिन्दों की पकड़ में आ गई. उसके साथ लकड़ी लेने गई महिलाओं, जनता व उसके परिजनों का कहना है कि उसको पकड़ने के बाद इन लोगों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार कर उसकी बेरहमी से हत्या कर दी और लाश को बगल में ही कठवतिया खोह में फेंक दिया. इसके बाद दो दिनों तक अमानवीय तरीके से पुलिस ने लाश को यह कहकर नहीं उठाया कि यह रोहतास थाना का नहीं बल्कि नौहट्टा थाना का मामला है. जनता के आक्रोशित होने की वजह से दो दिन बाद लाश को नौहट्टा पुलिस ने उठाया.
इस तरह का यह कोई पहला मामला नहीं है जब पुलिस और वन विभाग के सिपाहियों और वॉचर ने कैमूर पठार की आदिवासी और गैर-आदिवासी जनता पर जुल्म और अत्याचार किया हो, बल्कि यह रोजमर्रा की बात बन गई है. कभी लकड़ी के नाम पर तो कभी खेत में गांछी लगाने के नाम पर, तो कभी महुआ बिनने से रोकने के नाम पर यानी जंगल में ही घुसने से रोकने के लिए आए दिन वन विभाग के सिपाही व उनकी मददगार पुलिस प्रशासन जनता पर अत्याचार और उनका उत्पीड़न कर रहे हैं.
जंगल में जाने पर लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार और छेड़खानी का भी यह कोई पहला मामला नहीं है बल्कि ऐसे कई मामले हैं. ऐसी घटनाएं लोक-लाज के डर से या किसी अन्य कारण व भय से खुलकर बाहर नहीं आ पा रही हैं. चूंकि आदिवासी जनता हजारों साल से इन जंगलों में रह रही है. सदियों से लोग जंगल पर निर्भर रहकर जीवन यापन कर रहे हैं. वे जंगल की रक्षा करते हैं और जंगल उनकी रक्षा करता है.
वे जंगल में आजादी से जीते आएं हैं लेकिन आज वन विभाग आकर कह रहा है कि जंगल उसका है और जंगल में कोई भी बिना उसकी मर्जी के नहीं जा सकता है. तो क्या आदिवासी-गैर आदिवासी जनता वन विभाग की गुलाम हैं कि जो वन विभाग व सरकार कहेगी वही हम करने के लिए मजबूर हैं ? क्या जंगल वन विभाग का है ? नहीं जंगल यहां के रहने वालों का है और वही तय करेंगे की जंगल में कैसे रहना है.
हाल ही में ग्राम बंधा (अधौरा) में एक गरीब खरवार आदिवासी लड़की की जंगल में बलात्कार करके हत्या कर दी गई. इस घटना में भी पुलिस प्रशासन के चरित्र को साफ देखा गया कि वे हत्यारों के साथ कैसे वफादार हैं. कैसे पुलिस ने लाश तक उठाने से इंकार कर दिया था. केस तक दर्ज नहीं किया गया. इससे साफ जाहिर होता कि पुलिस प्रशासन की नजर में गरीब आदिवासियों की लड़कियों, महिलाओं की कोई इज्जत और कद्र नहीं है. बाद में जन संघर्ष के दबाव में केस दर्ज किया गया और एक हत्यारे को गिरफ्तार किया गया. यह घटना भी उसी कड़ी का एक हिस्सा है. आगे इससे भी बुरा हो सकता है.
आप सब को यह समझना होगा कि बिहार सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार दोनों ने मिलकर कैमूर पठार की जनता को यहां से उजाड़ने की एक साजिश रची है और उस साजिश का नाम है – ‘कैमूर बाघ अभ्यारण्य.’ कैमूर पठार पर फासीवादी मोदी सरकार और बिहार सरकार भारत का सबसे बड़ा बाघ अभ्यारण्य को मंजूरी दे चुकी है. बाघ अभ्यारण्य को दो भागों में बांटा गया है. पहला ‘कोर एरिया’ है जो 450 वर्ग किलोमीटर का होगा. यह बाघ अभ्यारण्य का मुख्य इलाका होगा. इसमें पड़ने वाले सभी गांवों को किसी न किसी बहाने आज नहीं तो कल हटाया जाएगा. इस पूरे इलाके की घेराबन्दी की जायेगी.
दूसरा एरिया ‘बफर जोन’ होगा जिसका एरिया 950 वर्ग किलोमीटर का होगा. इसमें शुरू में तो गांवों को नहीं हटाया जाएगा. लेकिन जंगल में घुसने पर तत्काल प्रतिबन्ध लगा दिया जाएगा. बाघ अभ्यारण्य में बाघों की सुरक्षा के नाम पर वन विभाग जंगल के चप्पे-चप्पे पर वन विभाग के सिपाहियों और वॉचरों को जंगल में घर बनाकर दिया जा रहा है. जहां रात दिन जंगल में सिपाही आपको किसी न किसी बहाने जाने से रोकेंगे. महिलाओं के साथ छेड़खानी, बलात्कार और अत्याचार आम बात बन जाएगी. जंगल में जाना और मुश्किल हो जाएगा.
बाघ की सुरक्षा के नाम पर बनाया गया स्पेशल टाईगर प्रोटेक्शन फोर्स (एस0टी0पी0एफ0) का निर्माण किया जा रहा है. जो जंगल में बाघों की सुरक्षा के नाम पर रहने वाली सेना पूर्णतया अत्याधुनिक हथियारों से लैश होगी. इस वजह से जंगल में युद्ध की स्थिति सरकार व वन विभाग पैदा करने जा रहे हैं. कैमूर पठार पर खोले जा रहे कई पुलिस थाने भी इसी का हिस्सा हैं. जो महिलाओं के साथ आज नागाटोली में हुआ है वह इसके बाद हर गांव में होने लगेगा.
फासीवादी मोदी सरकार ने वनाधिकार अधिनियम 2006, पेशा कानून 1996 ,पांचवीं अनुसूची को ताक पर रखते हुए वनाधिकार अधिनियम 2019 लाई है, जिसमें आदिवासियों और वनवासियों से जंगल पर से सारे अधिकार छीन लिए हैं. वन विभाग के सिपाहियों को इतना अधिकार दे दिया है कि वे अगर किसी को जंगल में घुसने पर गोली भी मार देंगे तो उन पर केस नहीं होगा. पहले जांच कमेटी बैठेगी और तब जांच के बाद ही कोई केस होगा. तब सोचिए कि वन विभाग हमारे साथ क्या-क्या कर सकता है. महुआ-पियार तो जंगल से चुनने की बात ही छोड़िए जंगल में घुसने मात्र से ही हम लोग अपराधी मान लिए जाएंगे.
क्या हमारी मां-बहनों की इज्जत और उनका आत्मसम्मान नहीं है ? आखिर कब तक हम लोग यह अत्याचार सहते रहेंगे ? कब तक कैमूर पठार की जनता का शोषण होता रहेगा ? कहते हैं अत्याचार करने वाले से ज्यादा अत्याचार सहने वाला दोषी होता है इसलिए अपने जल-जंगल-जमीन, आत्मसम्मान, स्वाभिमान, इज्जत और अधिकार के लिए हमें वन विभाग और सरकार के खिलाफ संघर्ष की इस आग में कूदना ही होगा क्योंकि बिना संघर्ष के किसी को भी न्याय नहीं मिल सकता और ना ही मिला है.
यही वक्त है जब राजकली उरांव के बलात्कारियों और हत्यारों के साथ-साथ वन विभाग और इस फासीवादी राज्य सत्ता के खिलाफ इस युद्ध में कूद पड़ें. इन्हें ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाय. ऐसे में हमारा संगठन सभी आदिवासी, गैर आदिवासी, छात्रों, नौजवानों, बुद्धिजीवियों व पत्रकारों से यह अपील करता है कि राजकली उरांव को न्याय दिलाने और जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए कैमूर पठार पर चल रही इस लड़ाई में बढ़-चढ़कर भाग लें और भारी से भारी संख्या में इस संकल्प जन सभा में शामिल हों.
जारी पर्चे में कैमूर मुक्ति मोर्चा सभी जनता से अपील करती है कि इस प्रतिरोध मार्च और सभा में अपने परंपरागत हथियारों जैसे-टांगी, तीर-धनुष, बलुहा आदि अवश्य लेकर आयें क्योंकि यही हमारी पहचान है और वन विभाग हमारे परंपरागत हथियारों को छिनकर हमारी इसी पहचान पर हमला कर रहा है.
Read Also –
कैमूर : पुलिसिया गैंग द्वारा 30 वर्षीय आदिवासी महिला की बलात्कार और हत्या के खिलाफ उबला पहाड़
आदिवासी इलाकों में स्थापित पुलिस कैम्प यानी आदिवासियों की हत्या करने की खुली छूट के खिलाफ खड़े हों !
झारखंड : आदिवासी पर हो रहे हैं पुलिसिया दमन – किस्कू की अवैध गिरफ्तारी पर खामोश सरकार
आदिवासी सुरक्षा बलों के कैम्प का विरोध क्यों करते हैं ?
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]