सुब्रतो चटर्जी
ट्रेजेडी को परिभाषित करते हुए अरस्तू ने कहा था कि ट्रैजिक हीरो में एक ट्रैजिक फ्लॉ या चरित्रगत दोष होता है, जो उसके पतन का कारण बनता है. इस चारित्रिक दोष के वावजूद, ट्रेजेडी का नायक अन्य सारी विशेषताओं से सुशोभित होता है जो उसे साधारण मनुष्यों की दुनिया में असाधारण रूप से स्थापित कर देता है. यही कारण है कि जब ट्रैजिक हीरो का पतन होता है तब यह पतन लोगों के अंदर करुणा और भय का संचार करता है. इसे catharsis कहते हैं और ट्रैजिक हीरो की कमजोरी को hubris कहते हैं.
कालांतर में शेक्सपीयर ने हीरो विलन के चरित्र का निर्माण किया. वैसे यह परंपरा क्रिस्टोफ़र मार्लो के डॉ. फॉस्टॉस के साथ ही शुरू हो गई थी. मैक्बेथ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. डन्सिनान के क़िले की तरफ़ बढ़ते जंगल के पीछे छुपे शत्रु सेनाओं की पहचान डायन त्रिमूर्ति की भविष्यवाणी में छुपे अनिष्ट की आशंका ढंक लेती है और मैक्बेथ का क्रिमिनल माइंड युद्ध भूमि में जाने के पहले ही हार जाता है. मानसिक स्तर पर हार ही ज़मीनी स्तर पर हार का मुख्य कारण होता है और मनुष्य की अनागत परिस्थितियों के पहचान की सीमित क्षमता उसके पतन का कारण बनता है.
नाटकीय संदर्भ में एक विलन अपनी आत्मा से संवाद के ज़रिए हीरो बनने के गुण प्राप्त कर लेता है और हम चकित रह जाते हैं कि जो शख़्स tomorrow and tomorrow and tomorrow जैसे monologue को ज़ुबान दे सकता है, वह कैसे अपनी पत्नी के evil design से खुद को बचा नहीं पाता.
राजनीति कठोर यथार्थ की दुनिया है, जो कि मैक्बेथ के क़िले की पथरीली फ़र्श जैसी सख़्त है. यह फ़र्श राजा डंकन की हत्या की तरफ़ बढ़ते मैक्बेथ के कदमों को प्रतिध्वनित भी करता है और आसमान पर टिमटिमाते तारे उस जुर्म का गवाह भी बनते हैं. मैक्बेथ के हाथों में पकड़े हुए छुरे को वह हवा में झूलते हुए पाता है, जिसकी नोक खुद मैक्बेथ की तरफ़ रहता है और उसमें से लहू टपकता है. इसे dichotomy कहते हैं, जब आपका seer self आपके doer self से जुदा हो कर आपको टोकता है. इस अनुभव के लिए जो सबसे ज़रूरी चीज है वह है ज़मीर, जिसके बगैर आदमी सिर्फ़ एक ढांचा है और कुछ नहीं.
इक्कीसवीं सदी सोलहवीं सदी से बहुत अलग है. इस सदी में व्यक्तिगत महात्वाकांक्षा का आकार सारी मर्यादाओं के परे चला गया है. इयुजीन ओ नील जैसे अमरीकी ट्रैजिक नाट्यकारों ने परिस्थितियों को हीरो बनाकर व्यक्ति की महत्ता को गौण कर दिया, लेकिन हीरो फिर भी अपने पतन की परिस्थितियों में करुणा का पात्र रह गया.
इस संदर्भ में देखें तो अदानी की पतन की गाथा को आप बेहतर समझेंगे. बंबई का एक मामूली सा हीरा व्यापारी, जो कि माशा-रत्ती में चोरी करने में माहिर था, उसे कुछ अंतरराष्ट्रीय ताक़तों ने एक और नरसंहारी फ्रॉड के संपर्क में लाया और उसके vaulting ambition ने सारी नैतिक मर्यादाओं को ताक पर रख कर भारत की पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता और संस्कृति को बाज़ार के सहारे वध करने को निकल पड़ा.
क्रिमिनल जोड़ी ने तिकड़म, झूठ, फ़रेब, बेईमानी, मक्कारी, देशद्रोही आचरणों का ऐसा जाल फैलाया जो कि इंद्रजाल से भी ज़्यादा मरीचिका साबित हुआ. प्रधानमंत्री खुद उसके दलाल बनकर विदेशों की यात्रा करने लगे और उसे ठेके दिलवाने लगे. भारत सरकार LOC के ज़रिए फ्रॉड अदानी की गारंटी लेने लगी. न्यू यॉर्क के Dow Jones Index में देखते देखते ही एक फ्रॉड की शेयरों की तूती बोलने लगी.
ठीक इसी समय काल का पहिया घूमता है. Michael Henchard जब Mayor of Casterbridge नामित होता है, ठीक उसी समय मेले में जुए में हारी हुई उसकी पत्नी दरवाज़े पर आकर खड़ी हो जाती है और tragic flaw को हम Irony of fate में बदलते हुए देखते हैं. शेक्सपीयर से थॉमस हार्डी तक का सफ़र एक पल में पूरा हो जाता है, जिसे पूरा करने के लिए इतिहास के तीन शताब्दी लग गए थे. इसे कहते हैं स्पीड. मनुष्य के इतिहास में जो कुछ भी घटित हुआ है और जो कुछ भी घटित हो रहा है, उनके बीच एक अद्भुत निरंतरता है, जिसे हम historicism कहते हैं.
इसका एक मात्र कारण यह है कि समाज और सभ्यता के आधारभूत मूल्य कभी नहीं बदलते. सदियों के अनुभव और प्रयोग से मानव सभ्यता जिन समावेशी जीवन के लिए ज़रूरी नतीजों पर पहुंची है, उनका विकल्प नहीं है, इसलिए व्यक्ति को समाज से बड़ा होने की अनुमति नहीं मिली है. ऐसे में जब कुछ तत्व आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक रूप से येन तेन प्रकारेण खुद को समाज के बनाए नियमों के उपर खुद को स्थापित करने की कोशिश करते हैं तब सिस्टम उनको उनकी औक़ात दिखा देता है, चाहे वह हिटलर हो या नरेंद्र मोदी, अंबानी हो या अदानी.
हमारी बुर्जुआ पूंजीवादी व्यवस्था भी एक सीमा के बाहर किसी फ्रॉड को बर्दाश्त नहीं करती है, क्योंकि यह भी एक आत्मघाती सोच है, जिसे हम Order कहते हैं वह एक गतानुगतिक व्यवस्था को जारी रखने की मुहिम भर है. राजतंत्र में सेनापति का राजा बनना घोर अव्यवस्था है, इसलिए मैक्बेथ को डंकन के पुत्रों के हाथों मरना ही होगा. लोकतंत्र में व्यक्ति का जनता के उपर स्थापित करना भी घोर अव्यवस्था है, इसलिए हरेक मोदी और अदानी को जनता और बाज़ार के हाथों ख़त्म होना ही होगा, चाहे वो मुसोलिनी की तरह किसी चौराहे पर लटका दिया जाये या हिटलर की तरह किसी बंकर में.
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