डोम का बच्चा
समा जायेगा संकरे
मैनहोल में
आकंठ पांक में डूबकर
खोल देगा जाम
स्वतंत्र कर देगा
गंदे जल को
बहने की खातिर
फेफड़ों में कैद कर लेगा
कार्बन मोनो ऑक्साईड
फिर भी
बच कर बाहर आ जायेगा
खुली हवा में
वह अजातशत्रु.
जिन फुटपाथों, सड़कों पर
तुम चलते हो दिन रात
ठीक तुह्मारे पैरों के नीचे
तुह्मारे अलक्ष्य में
बिछी हैं अनगिनत सुरंगें
मौत से लैस
जिनमें उतरता है डोम.
दिनशेष बेला में
अपने अछूत देह को
नदी में बहाकर
निकल पड़ता है
मृदंग की थाप पर
महुआ की तलाश में
डोम गाता है
डोम नाचता है
सबकुछ भूलकर
उसका वैश्विक मन
तुह्मारी तरह स्पृहा और घृणा
नहीं पालता
मर चुका है कबका
उसके पिटारे का साप
वह जा चुका है
मल और निर्मल के परे
तुह्मारी शुचिता को
अक्षुण्ण रखने की ज़िद में.
- सुब्रतो चटर्जी
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