यही जज्बा
यही तेवर
यही लाठी डंडा
अब न्याय दिलाएंगे
इसी से मनचलों के होश ठिकाने आयेंगे
बहुत हो गया कोर्ट-कचहरी
बहुत हो गया अपनी सुरक्षा के लिए
दर-दर ठोकरे खाना
कभी पिता
तो कभी भाई
तो कभी पति
तो कभी राज्य सत्ता के सामने गुहार लगाना
जब ये देह हमारी है
जब ये देश हमारा है
जब ये विश्वविद्यालय हमारा है
तब इसकी गरिमा और मान सम्मान के रक्षा के लिए
हम अब कहीं नहीं जाएंगे
न्याय करेंगे खुद हम
अच्छे-बूरे का भेद बतलायेंगे
कैद हो चुकी अपनी पहचान को
आजाद कर परचम-सा लहराएंगे
डर-डर कर जीना हो गया बहुत
अब हम सभी बूरे लोगों को डराएंगे
अपने आत्म सम्मान के लिए किसी से लड़ जाएंगे
ये सदी हमारी है
हम नया इतिहास लिख के जाएंगे
अपने पैरो पर खड़ा हो कर एक नई दुनिया बनाएंगे
ये जंग जो शुरु हुआ है बीएचयू में
उसे देश के कोने-कोने में फैलायेंगे
हम वारिस है सावित्रीबाई फूले,
फतिमा शेख और क्लारा जेटकीन की
अपनी मुक्ति तक लड़ते जायेंगे !
- विनोद शंकर
1.2.2023
अपने मान सम्मान के लिए संघर्षरत बीएचयू की लडकियों को समर्पित एक कविता
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