स्तालिन
स्तालिन अभी ज़िंदा है हमारे दिल में
हर क़दम एक नया अज़मे-जवां लेके चलो
ज़िन्दगानी के ख़ज़ाने कहीं लुट सकते हैं ?
ज़िन्दगानी से नई ताबो-तवां लेके चलो
सैले-रफ़्तार में दरिया की रवानी खो जाए
अपनी ठोकर में हर इक कोहे-गरां लेके चलो
जगमगा जाए सितारों से ज़मीं दूर नहीं
अपने क़दमों में कोई कहकशां लेके चलो
ज़ुल्मते-आखिरे-शब भी ना रहेगी बाक़ी
और दो-चार कदम मिशले जान लेके चलो
साथियों, हौसलए-शौक को महमेज़ करो
हां क़दम तेज़ करो, तेज़ करो, तेज़ करो
इर्तिका वक़्त का फरमान सुनाता है चलो
हर क़दम माओ हमें राह दिखाता है चलो
स्तालिन हमें मंज़िल पे बुलाता है चलो।
- जां निसार अख़्तर
5 मार्च 1953 को स्तालिन की मृत्यु पर श्रद्धांजलि देते हुए
शब्दार्थ –
अज़्में-जवां = जवान निश्चय
ताबो-तवां = शक्ति
कोहे-गरां = भारी पहाड़
कहकशां= आकाश गंगा
ज़ुल्मते-आखिरे-शब = रात के पिछले पहर का अंधेरा
मिशअले = जीवन ज्योति
महमेज़ = ऐड़ लगाओ
इर्तिका = विकास
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